दादरी।( देवेंद्र सिंह आर्य देहात संवाददाता ) यहां स्थित गांव छाँयसा में आर्य समाज के प्रति समर्पित रविंद्र आर्य के परिवार में चले सामवेद पारायण यज्ञ में ब्रह्मा रहे आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान महेश क्रांतिकारी ने उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि ईश्वर ने पूरी सृष्टि रचने के बाद यानी पशु-पक्षी, कीट-पतंग, पहाड़, समुद्र, नदी-नाले, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, आकाश आदि सब रचने के पश्चात् मानव की उत्पत्ति तिब्बत के पठार पर पृथ्वी के अन्दर कृत्रिम गर्भाशय बनाकर अनेक युवा स्त्री-पुरुषों की उत्पत्ति की।
अपने प्रवचन को जारी रखते हुए श्री क्रांतिकारी ने कहा कि इसके बाद यह वेद-ज्ञान, पिता अपने पुत्रों को, गुरु अपने शिष्यों को सुनाते रहे और इस प्रकार यह वेद-ज्ञान लाखों, करोड़ों वर्षों तक चलता रहा, इसीलिए इस वेद-ज्ञान को श्रुति भी कहते हैं यानी सुनकर दूसरों को सुनाना। तत्पश्चात् लाखों, करोड़ों वर्षों बाद जब कागज़, स्याही, कलम आदि का आविष्कार हो गया तब इनको चार पुस्तकों में लिपिबद्ध कर दिया, जिनको वेद कहते हैं।
महेश क्रांतिकारी ने कहा कि वेद का तात्पर्य ज्ञान है । यह ज्ञान ईश्वर ने सृष्टि के आदि में एक विधान के रूप में मनुष्य-मात्र को दिया। जिस प्रकार सरकारी विधान से राष्ट्र चलता है, उसी प्रकार यह ज्ञान मनुष्यों के लिए विधान है। इनमें ईश्वर ने क्या काम मनुष्य को करना चाहिए, क्या काम नहीं करने चाहिए लिखा है। किन कार्यों के करने से मनुष्य अपने जीवन में उत्तरोतर उन्नति व समृद्धि को प्राप्त करता है और अपने जीवन को सुखी व सम्पन्न बनाता है। जो व्यक्ति वेदानुसार अपने जीवन को चलाता है, वह मनुष्यों के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम को भली प्रकार करते हुए मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है जो जीव का अन्तिम लक्ष्य है। मोक्ष प्राप्ति के लिए ही ईश्वर जीव को इस धरती पर भेजता है।