सोनिया गांधी ने पिछले दिनों एक राष्ट्रीय समाचार पत्र मे एक लेख लिखा है। इस लेख मे वैसे तो कई कई विडंबनापूर्ण बाते हैं किंतु मैं मुख्यतः दो विषयों पर केंद्रित कर पाया हूं। एक देश मे लोकतंत्र की हत्या व दूजा विषय है देश की समूची मातृशक्ति की अस्मिता, कार्यक्षमता व आगे बढ़ने को शाहीन बाग जैसे बदनुमा दाग से जोड़ना। भारतीय नारी को शाहीन बाग जैसे प्रेरणा बिंदु दिखाना किसी श्रीमती गांधी के बस की बात नही हो सकती, यह केवल केवल और केवल किसी एंटोनियों माइनो के बस मे ही हो सकता है। वैसे तो यह लेख क्या है नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली के हज जाने की हसरत की दास्तां है। इस दास्तां को पढ़कर पिछले दिनों हुआ एक दिलचस्प किस्सा याद आ गया। हुआ यह कि उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इलाहाबाद जिसे अंग्रेजी मे आज भी अल्लाहाबाद लिखा जाता है; का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया। मुस्लिम आक्रमणकारी अकबर द्वारा रखे गए गुलामी के प्रतीक इस नाम को बदलकर भारतीय संस्कृति से जुड़ा नामकरण करने से देश के
कांग्रेसी, कम्युनिस्ट, सेकुलरों व तथाकथित बुद्धिजीवियों के पेट मे मरोड़ उठना स्वाभाविक ही था। मरोड़ उठा भी, पेट दर्द हुआ भी किंतु इस बार सेकुलरों की शैली कुछ अलग थी। वे उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय मे इस नामकरण के विरुद्ध याचिका लेकर गए किंतु इस बार वे नीले सियार बनकर कोर्ट गए अर्थात सांस्कृतिक झंडा उठाकर गए। कांग्रेसी व कम्युनिस्टों की जो गैंग प्रयागराज नामकरण के विरुद्ध न्यायालय गई थी उन्होने बड़ा ही हास्यास्पद व शर्मनाक तर्क रखा कि इलाहाबाद या अल्लाहाबाद नाम अकबर द्वारा दीन ए इलाही धर्म के नाम पर नहीं रखा गया था बल्कि यह नाम तो ऋषि मनु की सुपुत्री इला के नाम पर रखा गया था अतः इस नाम को न बदला जाये और भारतीय संस्कृति की रक्षा की जाये। इस प्रकार इलाहाबाद नाम को बनाए रखने के पक्ष मे उन ऋषि मनु का नाम ले आया जिन्हे इन सेकलरों ने पानी पी पी कर अब तक करोड़ो गालियां दी है और करोड़ों देने वाले हैं। तात्पर्य यह कि ये कथित सेकुलर कांग्रेसी और कम्युनिस्ट भारतीय संस्कृति के विरोध के लिए सांस्कृतिक आधारों व तर्कों का उपयोग भी बड़ी भली भांति ही नहीं बल्कि बेशर्मीपूर्वक कर सकते हैं। यह लेख भी इलाहाबाद नाम के पक्षधरों की भांति ही अपनाया गया एक पैतरा मात्र है।
संस्कृति का जैसा झंडा प्रयागराज नामकरण के कोर्ट केस मे इस सेकुलर टीम ने उठाया था, लोकतंत्र का वैसा ही झंडा अपने लेख मे श्रीमती सोनिया गांधी ने उठाया है। समूचे देश के लोकतंत्र को उठाकर दिल्ली के एक कमरे मे बंद कर देने वाली इन्दिरा जी की वंशज, दो ढ़ाई दशक मे अपनी पार्टी मे परिवार से इतर एक अदद अध्यक्ष तक को विकसित न कर पाने वाली महिला लोकतंत्र के लिए लेख लिखे तो इस प्रकार के किस्से स्मरण आना स्वाभाविक ही है। मुझे आश्चर्य है कि इस लेख मे दर्जनों बार लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस अध्यक्ष को पल भर के लिए भी आपातकाल के अत्याचार और आपातकाल मे बंद किए हुये भारत के दिग्गज जननेताओं की याद न आई।
शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन मे जिसमें कांग्रेस बड़े ही हिचक-ठिठक कर कभी सम्मिलित दिखने का प्रयास करती थी तो कभी दूरी बनाती थी किंतु अंततः वह शाहीन बाग का एक केंद्रबिंदु बन गई थी। शाहीन बाग जैसे देश के सर्वाधिक विवादित प्रदर्शन के विषय मे सोनिया गांधी ने जो लिखा है वह इस देश की मातृ शक्ति के इतिहास को लज्जित करने वाला है। सोनिया जी ने लिखा कि – The protests at Shaheen Bagh and at other countless sites across the country demonstrated how dominant male power structures can be persuaded to play a supporting role, leaving the centre stage to women. शाहीन बाग और देश भर के अन्य अनगिनत स्थलों पर हुए विरोध प्रदर्शनों ने दिखाया कि महिलाओं को केंद्र में रखकर किस तरह पुरुष सत्ता संरचनाओं को सिर्फ एक सहायक भूमिका में रखा जा सकता है। इटली से पधारी श्रीमती सोनिया गांधी, आपको अब तक भारतीय मातृशक्ति की मर्यादा, महिमा व ममता तीनों का आभास नहीं हो पाया है। भारत मे नारीशक्ति प्रारंभ से समाज के केंद्र मे है। आपने सच ही लिखा है कि शाहीन बाग ने सिद्ध किया कि किस प्रकार महिलाओं द्वारा पुरुषों को साइडलाइन किया जा सकता है। शाहीन बाग का नेतृत्व परोक्ष अपरोक्ष रूप से आपके नेतृत्व मे जो लोग कर रहे थे उनसे भारतीय समाज मे इस प्रकार के वर्ग संघर्ष फैलाने के अतिरिक्त कोई आशा भी नही की जा सकती। मैं आपके समक्ष दावा कर सकता हूं कि कोई प्रगतिशील से भी प्रगतिशील भारतीय नारी परूषों को साइडलाइन करने का कार्य नहीं करती बल्कि परिवार, समाज व राष्ट्र को स्त्री-पुरुष के समन्वय के माध्यम से आगे बढ़ाने का कार्य करती है। कतई आश्चर्य न हुआ कि सोनिया जी ने भारतीय मातृशक्ति के जागरण हेतु रानी लक्ष्मीबाई, चेनम्मा, दुर्गावती जैसे सैकड़ों नामों को छोड़कर शाहीन बाग मे बैठी बदनाम महिलाओं का नाम लिया।
राष्ट्रीय प्रतीको के प्रयोग के विषय मे भी आपकी मानसिकता सम्मान की नहीं अपितु यूज एन थ्रो की लगती है। It was also notable for its proud use of national symbols, including the Constitution and its Preamble, the national flag, and our freedom struggle.
सोनिया जी ने लिखा कि – इस आंदोलन का विशेषता थी कि इसमें संविधान और इसकी प्रस्तावना, राष्ट्रीय ध्वज और हमारे स्वतंत्रता संग्राम जैसे देश को गौरवपूर्ण प्रतीकों इस्तेमाल किया। यह पंचतंत्र की नीले सियार की कहानी को दोहराने जैसा है। राष्ट्रीय प्रतीको का उपयोग करने मात्र से आप राष्ट्रीय नहीं हो जाते, उसके लिए आपको केवल राष्ट्रवादी नहीं बनना पड़ता बल्कि आपको राष्ट्र मे रमना पड़ता है, उसमें घुल जाना पड़ता है।
वैसे सोनिया जी के इस लेख का चाल चरित्र और चेहरा लेख मे “ऊमर खालिद” का नाम लेते से ही स्पष्ट हो जाता है। “सिमी” जैसे अवैध, प्रतिबंधित संगठन का नेतृत्व करने वाले परिवार के लड़के व संसद पर बमबारी करने “अफजल गुरु” के पक्षधर ऊमर खालिद का नाम जपकर सोनिया गांधी ने अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की दिशा स्पष्ट कर दी है।
प्रवीण गुगनानी
विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार (राजभाषा)
guni.pra@gmail.com 9425002270