मुजफ्फर हुसैन
पिछले अध्याय में यह बात स्पष्टï की जा चुकी है कि हजरत इब्राहीम मध्य एशिया से निकले हुए तीनों धर्म यहूदियत, ईसाइयत और इसलाम के पितामह हैं। वे तीनों के आदर्श हैं। मुसलिम जिन्हें इब्राहीम कहते हैं, यहूदी और ईसाई उनका उच्चारण अब्राहम करते हैं। हजरते ईसा अब्राहम के पुत्र आहजिक (इसहाक) वंशज हैं, जबकि इसलाम के प्रणेता हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब इस्माइल के। हजरते इब्राहीम से कुरबानी की घटना जुड़ी हुई है। उनके प्रिय पुत्र इस्माइल के स्थान पर एक भेड़ आ गयी, जिस पर छुरी चल गयी। इसलिए इस मान्यता को बल मिलता है कि ईश्वर को पशु की कुरबानी स्वीकार है। बलि और कुरबानी के बीच क्या अंतर है, इसको हम पिछले पृष्ठों पर स्पष्टï कर चुके हैं। बलि देवता के लिए दी जाती है, जबकि कुरबानी केवल ईश्वर के लिए। इसमें शब्दों का और आस्था का अंतर हो सकता है, लेकिन दोनों ही प्रकार की क्रिया में पशु के मारे जाने का अर्थ निहित है। हजरत इब्राहीम द्वारा की गयी इस कुरबानी को प्रत्येक वर्ष हज यात्रा के समय याद किया जाता है और उनकी इस क्र्रिया को सुन्नते इब्राहीम के नाम से दोहराया जाता है। जो हज यात्रा के लिए गये हैं, वे ही कुरबानी नही करते, बल्कि जो अपने जीवनकाल में हज संपन्न कर चुके हैं, वे भी इसे दोहराते हैं। इस संबंध में अनेक बातें सामने आती हैं, जिनके एक यह भी है कि जिस मुसलमान के पास इतनी धनराशि है कि वह कुरबानी कर सकता है तो अपने अल्लाह को खुश करने के लिए कुरबानी करनी चाहिए। कुरबानी की इस परंपरा ने हलाल घोषित किये गये पशुओं को बड़े पैमाने पर हलाल करने की छूट दे दी है। सामान्य मनुष्य के मन में यह बात बैठ गयी है कि जब स्वयं ईश्वर पशु को काटन की आज्ञा देता है तब उसके इनकार करने अथवा अवैध घोषित करने का प्रश्न ही पैदा नही होता। लेकिन कुरबानी के पीछे जो दर्शन है, उसे जब समझते हैं तो बहुत सारे प्रश्न खड़े हो जाते हैं। कुरबानी का अर्थ होता है-त्याग और बलिदान। सवाल यह है कि क्या हम स्वयं त्याग करते हैं या फिर किसी मूक जानवर को उसके शरीर के त्याग के लिए बाध्य करते हैं?
पवित्र कुरान की सूरा अस्सफात में कहा गया है-
मैं अपने ईश्वर के पास जाउंगा, वह मुझे निश्चित ही पुत्र के जन्म का आशीर्वाद देगा।
इसलिए उसने मुझे मुत्र प्रदान करने की खुशखबरी दी।
जब उनका पुत्र बड़ा होकर उनके काम में हाथ बांटने लगा तब एक दिन पिता ने अपने पुत्र से कहा कि मैंने सपने में देखा कि मैं तुम्हें ईश्वर पर न्यौछावर कर रहा हूं। अब बताओ, तुम्हारा क्या विचार है? पुत्र ने कहा, ओ मेरे पिता तुम वही करो जिसे करने का सपने में आदेश दिया गया है। तुम देखोगे के मैं ईश्वर के आदेश का पालन करूंगा।
इसलिए वे दोनों (पिता और पुत्र) ईश्वर के प्रति समर्पित हो गये। उन्होंने कुरबानी के लिए बेटे को नीचे लिटा दिया।
हमने आवाज सुनी-ओ इब्राहीम तुमने सपने को साकार कर दिया। यह तो तुम्हारी परीक्षा थी, तुम अपनी परीक्षा में सफल हुए और तुमने हमें प्रसन्न किया और हमारा आशर्वाद प्राप्त किया। इस कार्य से वे असंख्य दुख और पीड़ा से दूर रहेंगे। उनके आने वाले वंशज इससे लाभान्वित होंगे। इब्राहीम पर हमारी सलवात और सलाम पहुंचे।
इब्राहीम अरबस्तान में छलदीस नामक स्थान पर पैदा हुए थे, जो युफ्रेटस नामक नदी के निचले भाग में बसा हुआ है। यह पर्शियन गल्फ से सौ मील से अधिक दूरी पर नही होगा। उस भाग में सूर्य, चंद्र और तारों की पूजा होती थी। इब्राहीम ने अपने प्रारंभिक जीवन में इसका विरोध किया। वे अपने मंदिरों में देवियां रखते थे, जो संभवत: स्वर्ग की ओर उड़ने वाली आत्माओं का प्रतिनिधित्व करती थीं। जब उन्होंने मूर्तियां तोड़ी, उस समय वे युवा थे। इसके बाद उन्हें क्रांतिकारी कहा जाने लगा।
इसके लिए उन्हें दंडित करने हेतु आग में उठाकर फेंक दिया गया लेकिन ईश्वरीय आदेश से आग ठंडी हो गयी और इब्राहीम सुरक्षित बच गये। तब उन्होंने अपने पुरखों की धरती छोड़ दी और सीरिया के रेगिस्तान को छोड़कर हरे भरे प्रदेश में आ गये। यह इब्राहीम की हिजरत थी।
उन्होंने अपना घर औरर अपने लोग छोड़ दिये, क्योंकि अपने पुरखे और अपने लोगों के बजाए उनको सच प्यार था। उनका विश्वास केवल अल्लाह में था और अल्लाह के ही मार्गदर्शन में वे महान सभ्यता की नींव रख रहे थे।