आज का चिंतन-08/08/2013
फिर देखें इसका चमत्कार
– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
मन-मस्तिष्क और चेतन-अवचेतन को शुद्घ-बुद्घ बनाए रखने और संकल्प को बलवान बनाने के लिए यह जरूरी है कि अपने दिमाग में जो भी बात आए, उसे यथोचित स्थान पर पहुंचाने में तनिक भी विलंब नहीं करें और तत्काल सम्प्रेषित करें।बाहरी दुनिया के लिए तैयार और अपने मन-मस्तिष्क से बाहर निकल कर किसी लक्ष्य की ओर प्रक्षेपित होने वाले प्रत्येक विचार को लक्ष्य समूह तक पहुंचाने में तनिक भी विलंब न करें फिर चाहे वह सामने वाले को अच्छे लगे या बुरा। औरों के अच्छे -बुरे की सोच कर अपने विचारों को कैद रखना अपनी सेहत और जीवन दोनों के लिए अच्छे नहीं हुआ करता है।आजकल हममें से अधिकतर लोगों की परेशानियों, समस्याओं और तनावों का मूल कारण यही है कि हम अपने अच्छे -बुरे के बारे में सोचते तो हैं लेकिन इसे अभिव्यक्त कर पाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। और यही कारण है कि जमाने या हमसे संबंधित लोगों के प्रति अपने नजरिये को हम व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसे में औरों से संबंधित यह वैचारिक भण्डार हमारे अपने मन-मस्तिष्क में जमा होता चला जाता है और कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि चेतन या अवचेतन दोनों में जरा भी स्थान नहीं बचा रहता। यहीं से शुरू हो जाती है हमारी आत्मघाती स्थिति।इसलिए जिसके बारे में जो धारणा हो, उससे सामने वाले को अवगत जरूर कराएं, चाहे वह कितना ही बड़ा आदमी यों न हो। इसके साथ ही मन में उमड़ने-घुमड़ने वाले विचारों को बाहर निकलने का मार्ग दें और हमारे व्यक्तिगत या सार्वजनिक जीवन, अपने नौकरी-धंधों, लोक व्यवहार तथा सामुदायिक गतिविधियों के बारे में जो विचार आएं, उन्हें बेबाक और स्पष्ट शदों में उनके सामने परोसने में कोई संकोच नहीं करें। निर्भीक होकर साफ-साफ कहें और खुद मुक्त हो जाएं। यह वह प्रक्रिया है जब हम अपने विचार औरों में स्थानान्तरित कर खुद कई समस्याओं से स्वत: मुक्त हो जाते हैं और सदैव ताजगी व भीतरी आनंद का अनुभव करते रहते हैं।
हम यदि किसी भी प्रकार के चोर-उचकों, बेईमानों, भ्रष्टाचारियों, अनाचारियों, रिश्वतखोरों और कमीनों से जब भी किंचित मात्र भी परेशान हों, चुपचाप नहीं बैठे रहें बल्कि ऐसे लोगों के सम्मुख मुखर होकर अपनी नाराजगी का इजहार करें।असल में आज के जमाने में हिंसक जानवरों और असुरों का अस्तित्व रहा नहीं, ये सारी पशुता और आसुरीभाव इन्हीं लोगों में आ गया है जो अच्छे लोगों को बिना वजह परेशान करते हैं, दु:ख पहुंचाते हैं और तरकी को बाधित करने की हरचंद कोशिश करते हैं।यह बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जो लोग हमारी जिन्दगी और हमारे काम-काज के प्रति नकारात्मक सोचते हैं, बाधाएँ डालते हैं और हमें किसी न किसी प्रकार से परेशान करने को ही फर्ज समझ बैठे हैं, उन लोगों के समक्ष अपनी बात भयमुक्त होकर करें।हम कई बार उन लोगों के पॉवर और जात-जात के कद-पद और मद को देखकर इसलिए उनके सामने मुँह नहीं खोलते कि कई हमारा नुकसान न कर दें। ये लोग साठ साला बाड़ों के मालिक हो सकते हैं या फिर पांच साला। कई बार दोनों ही किस्मों के लोग हमारे सामने हो सकते हैं।हम जिन लोगों को पॉवरफुल समझते हैं वे असल में आत्मविश्वासहीन ज्यादा होते हैं और ऐसे लोगों को जो कुछ कहा जाए, वह भले ही उनके बनावटी और आडम्बरी अभिनयी चेहरों पर दिख न पाए, लेकिन उनके मन-मस्तिष्क में घर कर जाती है और अपना हर विचार उनके जेहन में चिंता व तनाव के बीज रोपने में समर्थ हो ही जाता है। जो जिस अनुपात में भ्रष्ट, दोहरे चरित्र वाला, व्यभिचारी और पाखण्डी होता है उसका आत्मविश्वास उसी अनुपात में क्षीण होता है, भले ही वह हराम का माल खा-खाकर कितना की गुलाबी गालों वाला या मोटा-तगड़ा साण्ड जैसा यों न दिखे।ऐसे में कोई शुचितापूर्ण या सत्य बात ऐसे लोगों को कह दी जाए तो हमारे शद वज्र की तरह उनके आभामण्डल को भेद कर मन में जगह बना लेते हैं और परमाणु से भी ज्यादा घातक मार करने लग जाते हैं। वे लोग ऊपर से भले ही अपने आपको तीसमार खां समझें, मगर हमारे सत्य विचारों की बिजली उनके दिमाग में हमेशा कौंधनी शुरू हो जाती है।मानवीय मूल्यों और प्रकृति प्रवाह के विरूद्घ दुष्कर्म करने वाले इन दुराचारियों के आत्मविश्वास का क्षरण करने में उनकी आत्मा और परमात्मा दोनों पीछे नहीं रहते। इसलिए निडर होकर अभिव्यक्ति करें और मस्त रहें। तनावों को स्वयं के पास कभी न रहने दें, इसे उन लोगों तक तत्काल पहुंचाएं जो इसके हकदार हैं।