डॉक्टर आर्य का इतिहास सम्बन्धी लेखन हमें भरता है गर्व और गौरव से : सुरेश चव्हाणके
अजय आर्य
नोएडा। यहां स्थित सुदर्शन न्यूज़ चैनल के मीडिया मंदिर में दशहरा के पावन पर्व पर आयोजित एक देशभक्ति पूर्ण कार्यक्रम में डॉ राकेश कुमार आर्य ने सुदर्शन न्यूज़ चैनल के प्रधान संपादक श्री सुरेश चव्हाणके को अपनी पुस्तक ‘भारतीय क्षात्र धर्म और अहिंसा’ व ‘भारतीय इतिहास के कुछ स्वर्णिम पृष्ठ’ प्रस्तुत की। जिन के संबंध में श्री चव्हाणके ने कहा कि डॉक्टर आर्य का लेखन हमें गर्व और गौरव से भरता है। उनकी लेखनी से इतिहास के अज्ञात पृष्ठों को जन सामान्य के सामने लाने में हमें सहायता मिली है। इस अवसर पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि केवल श्रीराम जी के पराक्रम की ही विजयादशमी मनाते रहेंगे, या हम भी पराक्रम दिखा कर अपने आस-पास के दशानन को जलाएँगे ?
प्रभु श्रीराम जी से ज्यादा बड़ा संकट हम पर है। हमारी बहन, बेटी ही नही, माँ और मौसी के साथ दादी तक को भी हम बचा नही पा रहे हैं। हम तो बलात्कारी को जला भी नही सकते। पहले पुलिस और फिर न्यायालय का गैगरेप हमें ही झेलना पड़ता है। हमारे इन रावनो को जलाना हमारी प्राथमिकता क्यों नहीं हैं?
इस संबंध में श्री चव्हाणके ने अपने ट्विटर और ब्लॉग में लिखा है कि न हमारी नारी सुरक्षित है और ना ही हमारी संस्कृति। इन पर होते हमले और आक्रमण का हम विरोध भी नही कर सकते, क्योंकी हमारे सभ्यता को असभ्य तरीक़े से विकृत दिखाना उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं। स्वतंत्रता के अति का रावन ज्यादा ख़तरनाक हैं या पुतले का?
एक माँ सीता ले लिए इतना बड़ा धर्मयुद्ध हुआ, पर आज भी वो रावण उसी तरह से वेश बदल कर, हाथों में कलावा बांध कर, छद्म नाम रख कर बार बार और हर दिन आता है.. उसी अंदाज़ में, वो रावण हमारी बहन – बेटियों को लव जिहाद कर के उठा कर लेकर जाता है और हम उस से बहन वापस लाने की डील, अर्थात सौदा करते हैं। मुँह छिपा कर मामला दबाने का प्रयास करते हैं। बहुत ही हुआ तो उस रावण को जलाने के बजाय पुलिस स्टेशन जलाते हैं। ध्यान रहे, कायरों की न श्री और न स्री सुरक्षीत रहतीं हैं। फिर भी हम निकले हैं रावण के पुतले जलाने…।
सीमा पर खड़े शत्रु की फूल माला ले कर आरती तक उतारने को तैयार ग़द्दार नेता और जनता का वेश बना कर उनके समर्थक जिस देश में करोड़ों की संख्या में हों, वह सुरक्षित है, ऐसा कहने वाले अर्थात गहरी नींद में सोये 100 करोड़ लोग जहाँ हो वह रावण को क्यों जला रहा है, ये समझ के बाहर की बात है..
सच में हमे राम नाम को लेने तक का अधिकार भी है क्या ? धर्म के नाम पर देश तोड़ कर देने के बावजूद भी जहाँ के लाखों मंदिरों पर आज भी मस्जिदें और महजबी इदारे खड़े हों, उसके बाद भी उसे स्वतंत्रता कहा जाता हो, उससे बड़ा मूर्ख भला कौन हो सकता है ? आज भी हज़ारों मंदिरों में आरती तो दुर, दीया, धूप तक नही होने दी जा रही। ऐसा करने का प्रयास किया जाता है तो मिलने वाली दंगों की धमकी से नपुंसक लोग पीछे हट जाते हैं। वह केवल निर्जीव पुतले जलाने में ही पौरुष्य मानते हैं !
अपने खेत के एक इंच पर भी अगर हमारा ही सगा भाई हल चला दे तो हम खून – ख़राबे पर उतर आते है, लेकिन उसी देश और उसी भूमि पर करोड़ों विदेशी घुसपैठियों ने किए हुए क़ब्ज़े पर चुप बैठते है। सरकार पर निर्भर रहते है, और सरकारें अदालतों के आदेश पर निर्भर रहते हैं.. हम तो रावण से ज्यादा बड़े अपराधी है..
अंग्रेजों ने कानून और बंदूक़ के डर से हमारा धन लूटा, पर आज हम उन्हीं गोरों के ब्रांडिंग और दुष्प्रचार के आगे हार कर अपना पैसा उन विदेशी कंपनियों को देकर आते हैं। इससे खुद को मॉडर्न समझने लगते हैं .. जिसे स्वदेश में बने उत्पादकों पर विदेशी ठप्पा देखे बिना खरीदारी का सुकून न मिलता हो उसे मैं आजाद कैसे कहूँ ? और ऐसे गुलामों ने रावण जलाने से क्या होगा?
सिर्फ विदेशी उत्पाद ही नही, जहाँ धर्म भी इंपोर्टेड किए जाते हो और करोड़ों देशी लोग विदेश की तरफ़ मुँह करके विदेशी भगवान को पूजते हों, यहाँ के भगवानों को पराया और उसे पुजने वाले को दुष्मन समजते हो, वहाँ श्रीराम के वंशजों के पास कोई योजना ही ना हो, तो वह रावण को विदेशी कैसे कह सकते हैं ?
जो चंद कौड़ियों के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में अपना धर्म त्याग कर अन्य मजहब अपना लेते हों, वह करोड़ों ही नही अरबों की संख्या में भी क्यों न हों, उनका एक दिन समाप्त होना तय है। ना हम अपने सगे को ना उसको ख़रीदने वालो को रोक पाने का साहस करते हैं, तो वह रावण को जलाना तो दूर, रावण को देखने तक का अधिकारी है ?
जहाँ चंद लाभों के लिए हर कोई अपने आपको पिछड़े से पिछड़ा साबित करने लिए एक दूसरे को रौंद रहा हो, क्या वह महान श्रीराम जी का वंशज होने का दावा कर सकता है ? जिन प्रभु श्रीराम की शिक्षा थी कि ‘श्रेष्ठता की तरफ बढो’.. ऐसे में उनके विचारो के ठीक विपरीत जाने वाले आखिर रावण को जलाने की सोच भी कैसे सकते हैं ?
जहाँ नौकरशाही पर क़ब्ज़ा करने का खुला फतवा देने वाला स्वतंत्र हो और उनके एलान को प्रमाणों के साथ समाज को दिखाने और ऐसे कब्जे के होने से पहले उसको रोकने का प्रयास करने वाला स्टे से पाबन्द हो, तो ऐसे देश में पहले रावण जले या ऐसा अंध तंत्र ? ये इस दशहरे में जरूर तय करना चाहिए.. तभी रावन जलाने के लिए सोचना चाहिए, नहीं तो जिवीत तंत्र और दुष्मनो से मुँह मोड़ कर मरे हुए रावन के पुतलों को जलाना ही पुरुषार्थ माना जाऐगा य, जो मृत समाज को पैदा भी करेगा और मृत ही रखेगा।
इस लिए रावन को वहीं जलाएँ जो पहले श्रीराम जी के मार्ग पर चले।