पाकिस्तान और भारत की विदेश नीति , भाग -1
भारत की पाकिस्तान के प्रति विदेश नीति पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय में बहुत अधिक उतार रही । नेहरू जी पाकिस्तान को छोटा भाई मानकर दुलार करने का प्रयास करते रहे । जबकि पाकिस्तान ने भारत के प्रति घृणा को त्यागा नहीं । नेहरू जी की मृत्यु के तुरन्त पश्चात पाकिस्तान ने लाल बहादुर शास्त्री जी के शासनकाल में 1965 में भारत पर आक्रमण कर दिया। इसके पश्चात इन्दिरा गांधी के शासनकाल में 1971 में फिर भारत को पाकिस्तान से युद्ध लड़ना पड़ा । इतना ही नहीं, नेहरू के शासनकाल में भी 1947 में ही पाकिस्तान से भारत को एक युद्ध करना पड़ गया था। भारत जहाँ पाकिस्तान के प्रति दुलार का दृष्टिकोण अपनाता रहा वहीं पाकिस्तान ने भारत को मिटाने के लिए अपने यहाँ अनेकों आतंकी संगठनों को या तो शरण दी या उन्हें जन्म दिया। इन संगठनों में सबसे प्रमुख संगठन है – जैश-ए- मोहम्मद । इसकी स्थापना सन् 2000 में मसूद अजहर ने की थी । इसने भारत में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया है। कहने के लिए तो पाकिस्तान ने इस पर 2002 में ही प्रतिबन्ध लगा दिया था ,लेकिन इसके उपरान्त भी इसकी गतिविधियां निरंतर जारी रही हैं। प्रतिबन्ध के पश्चात इसका नाम ‘खुद्दाम उल इस्लाम’ कर दिया गया था।
पाकिस्तान में भारत विरोधी गतिविधियों में लगा हुआ दूसरा संगठन है – लश्कर-ए-तैयबा । हाफिज सईद ने इसे 1987 में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से आरम्भ किया था। वर्तमान में यह लाहौर से संचालित हो रहा है। पीओके में यह भारतविरोधी आतंकी प्रशिक्षण शिविर भी चला रहा है। भारत में कई बड़े हमलों में इस संगठन का हाथ रहा है।
इसके पश्चात हिजबुल मुजाहिद्दीन नाम का आतंकी संगठन है जिसे 1990 में मोहम्मद अहसान डार ने स्थापित किया था । जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों में इस संगठन का हाथ रहा है ।
आतंकी बुरहान वानी की मृत्यु के पश्चात जाकिर मूसा को हिज्बुल का कमांडर बनाया गया है । चौथा आतंकी संगठन जमात-उद-दावा है । हाफिज सईद ने 2008 में जमात-उद-दावा की स्थापना की। इनके अतिरिक्त
अल कायदा, तहरीक-ए-तालिबान, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार, अल बद्र, जमात-उल-मुजाहिदीन, लश्कर-ए-जब्बार, हरकत उल जिहाद-अल-इस्लामी, तहरीक-उल-मुजाहिदीन, मुत्ताहिदा जिहाद काउंसिल, अल उम्र मुजाहिदीन, जम्मू कश्मीर इस्लामिक फ्रंट और दुख्तरान-ए-मिल्लत भी भारत विरोधी गतिविधियों के लिए जाने जाते रहे हैं । इस प्रकार पाक अखबार ‘डॉन’ के अनुसार पाकिस्तान में 48 आतंकी संगठन हैं ,जो किसी न किसी प्रकार से भारत को नष्ट करने की योजनाओं में संलिप्त रहते हैं।
इन आतंकी संगठनों के कारण ही भारत में कई बड़े आतंकी हमले हुए हैं। जिनमें मुंबई हमला, जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला, भारतीय संसद पर हमला, अक्षरधाम मंदिर हमला, उड़ी हमला , फिर पंजाब में पठानकोट स्थित वायुसेना के ठिकाने पर हमला आदि प्रमुख हैं।
एक अध्ययन में पाकिस्तान में पल रहे इन आतंकी संगठनों को तीन भागों में बांटा गया है।पहले, आतंकी संगठन वे हैं जिनका जन्म पाकिस्तान की ही धरती पर हुआ है । इनकी संख्या 12 है । जबकि दूसरे आतंकी संगठन वे हैं जिनका जन्मदाता तो कोई और देश है , पर उनकी सारी गतिविधियां पाकिस्तानी धरती से चलती है । ऐसे संगठनों की कुल संख्या 32 है । तीसरे आतंकी संगठन कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं। इस प्रकार के संगठनों की कुल संख्या 4 है।
पाकिस्तान में पल रहे इन आतंकी संगठनों के बारे में यहाँ पर उल्लेख करने का हमारा उद्देश्य केवल एक है कि जिस देश में इतने आतंकी संगठन हमारे देश को तोड़ने के लिए चल रहे हों उसके प्रति हमारी विदेश नीति निश्चय ही बहुत सावधानी भरी होनी चाहिए । वर्तमान में भारत पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में आयी कड़वाहट का कारण केवल एक ही है कि भारत की वर्तमान मोदी सरकार पाकिस्तान की हर गतिविधि पर सावधानी से नजर रखती है। अब भारत की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि पाकिस्तान पहले अपने यहाँ पल रहे आतंकी संगठनों का विनाश करे तभी उससे मित्रता पूर्ण संबंध स्थापित किए जा सकते हैं। कुल मिलाकर भारत की पाकिस्तान के प्रति विदेश नीति इस समय राजनीति के इस मूल सिद्धांत पर केंद्रित हुई दिखाई दे रही है कि राष्ट्रहित सबसे पहले हैं । मित्रता का प्रदर्शन करना या किसी पड़ोसी देश के प्रति मित्रता का हाथ बढ़ाना बहुत अच्छी बात है, परन्तु यदि मित्रता हमारे लिए ही घातक हो तो उस मित्रता से तो शत्रुता लाख गुणा उत्तम है। यही कारण है कि पाकिस्तान के प्रति अब मित्रता को नहीं, शत्रुता को प्राथमिकता दे रहा है भारत।
वास्तव में पाकिस्तान ने 1947 में ही जम्मू कश्मीर में हिंसा के बीज बो दिए थे। भारत सरकार के लचीले दृष्टिकोण के कारण पाकिस्तान द्वारा बोये गए इन बीजों का समूल नाश नहीं हो सका। यदि सरकारें पहले दिन से घृणा के बीजों का समूल नाश करने के लिए प्रयास करतीं तो स्थिति इतनी विस्फोटक नहीं हो पाती।
मोदी सरकार जिस प्रकार की कठोरता पाकिस्तान के प्रति दिखा रही है इसका अभिप्राय यह नहीं है कि नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान से शत्रुता पालने में ही भारत का हित समझती है, अपितु इसका अर्थ है कि पाकिस्तान की जैसी भावना है उसका वैसा ही प्रत्युत्तर भारत की ओर से दिया जाना चाहिए। 2014 में जब नरेंद्र मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क के सदस्य देशों को आमंत्रित किया था । यहाँ तक कि उसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी आमंत्रित किया गया था। उनका यह सद्भावपूर्ण दृष्टिकोण यह प्रकट करता था कि वह सभी देशों के साथ सद्भावपूर्ण मैत्री सम्बन्ध बनाकर रखना चाहेंगे। 2015 में वह लाहौर की यात्रा पर गए।
अत्यंत दु:ख का विषय है कि पाकिस्तान ने भारत के प्रधानमन्त्री श्री मोदी के इस सद्भावपूर्ण दृष्टिकोण का स्वागत नहीं किया। उसने अपने राजनीतिक चरित्र का परिचय देते हुए आतंकवाद का पूर्ववत पोषण जारी रखा । इतना ही नहीं, पठानकोट हमला करके उसने यह भी दिखा दिया कि भारत के सद्भाव का उसके पास केवल यही एकमात्र उत्तर है। इसके पश्चात प्रधानमन्त्री श्री मोदी ने पाकिस्तान के प्रति कड़ा दृष्टिकोण अपनाना आरम्भ किया। जिसकी परिणति ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के रूप में भी देखी गई।
भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे इस गतिरोध का लाभ चीन ने उठाना आरम्भ किया । उसने धीरे-धीरे पाकिस्तान की पीठ सहलानी आरम्भ की और उसके प्रति झूठी सहानुभूति प्रकट करते हुए अपनी मित्रता का जादू उस पर चला दिया । वैसे भी चोर चोर मौसेरे भाई कहे जाते हैं। तिब्बत को निगलकर चीन ने भारत के साथ अपनी लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर लम्बी सीमा स्थापित कर ली थी। नेहरू जी के शासनकाल में घटी यह घटना भारत के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी । वर्तमान समय में चीन ने भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर अपनी ‘ग्वादर पत्तन परियोजना’ को सिर चढ़ाना आरम्भ किया। अपने स्वाभिमान को बेचकर अपनी राष्ट्रीय अस्मिता की कीमत पर खेलने वाले पाकिस्तान ने भी अवसर को चूकना उचित नहीं माना । उसने अपना राष्ट्रीय स्वाभिमान ‘ग्वादर पतन परियोजना’ को चीन के अनुकूल सिरे चढ़ते देने की अनुमति देकर उसके यहाँ ही गिरवी रख दिया। इस घटना ने तेजी से चीन, पाकिस्तान और भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया।
ध्यान रहे कि चीन के द्वारा ‘वन रोड वन बेल्ट’ परियोजना के अन्तर्गत ‘चीन पाकिस्तान-आर्थिक’ गलियारा का जो निर्माण किया जा रहा है, वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जा रहा है। जिस पर चीन का कोई अधिकार नहीं बनता और पाकिस्तान भी इस क्षेत्र का वैधानिक स्वामी नहीं है। वैधानिक स्वामी केवल भारत है, जो अपने क्षेत्र में ‘ओबोर’ जैसी चीन की किसी भी महत्वाकांक्षी परियोजना को पूर्ण होते देखना नहीं चाहता । वैसे भी यदि चीन और पाकिस्तान मिलकर इस परियोजना को सिरे चढ़ाते हैं तो चीन भारत के उत्तर और पश्चिम में भी आ बैठेगा। जिससे आने वाले भविष्य में भारत के लिए अनेकों प्रकार की समस्याएं खड़ी होंगी। ऐसे में भारत के लिए यही उचित है कि वह चीन की ओबोर जैसी परियोजना का विरोध करे और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिगत चीन को पाक अधिकृत कश्मीर या पाकिस्तान के भीतर से ग्वादर पत्तन तक जाने का मार्ग उपलब्ध न होने दे।
चीन और पाकिस्तान भारत के साथ तनाव बढ़ाते जा रहे हैं। पाकिस्तान जानता है कि वह सीधे-सीधे भारतवर्ष को कोई चुनौती नहीं दे सकता। यदि भारतवर्ष को तनाव दिया जा सकता है तो वह केवल चीन को साथ लेकर ही दिया जा सकता है । यही कारण है कि पाकिस्तान चीन के तलवे चाटते हुए भारत की ओर गुर्रा रहा है। फलस्वरूप चीन इस क्षेत्र में अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ा रहा है। जिससे भारत का तनाव बढ़ना स्वाभाविक है। इस प्रकार भारत पाकिस्तान और चीन तीनों की विदेश नीति इस समय बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है। परिस्थितियां तनावपूर्ण हैं। थोड़ी सी भी असावधानी भयंकर उत्पात मचा सकती है। भारत का परम्परागत मित्र रूस भी पाकिस्तान की ओर मित्रता का हाथ बढ़ा रहा है। इन दोनों के बीच बढ़ती मित्रता भविष्य में क्या गुल खिलाएगी ? – यह तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता , परंतु रूस का पाकिस्तान के प्रति झुकना या उसकी ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना भारत के लिए कष्टदायक अवश्य है। कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी मित्र या स्थायी शत्रु नहीं होता , यहाँ केवल स्वार्थ पूर्ति या हितों की साधना के लिए मित्र बनाए जाते हैं । राजनीति के इस कटु सत्य को दृष्टिगत रखते हुए भारत को पाकिस्तान और रूस की बढ़ती निकटता को बहुत ही सावधानी से देखना होगा।
राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत