नेपाल को समझ आने लगे हैं चीन के असली इरादे
चीन की गोदी में खेलकर भारत को आंखें दिखाने वाले नेपाल की अब लगता है आंखें खुल गई हैं। उसे यह अहसास हो गया है कि चीन किसी का सगा नहीं हो सकता ,उसके यहां से केवल दगा मिल सकती है । यही कारण है कि चीन के प्रधानमंत्री होली ने अब चीन को करारा झटका दिया है । करीब 23 के साल के बाद ठीक इसी समय वर्ष 2019 में नेपाल का दौरा करने वाले चीनी राष्ट्रपति ने काठमांडू में नेपाल के साथ अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट बेल्ट एंड रोड परियोजना पर हस्ताक्षर किया था। एक साल बीत जाने के बाद भी दोनों ही देशों के बीच में इन परियोजनाओं को लागू करने पर कोई खास काम नहीं हो पाया है।
नेपाल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत के नाकाबंदी करने के बाद नेपाल सरकार ने अपने व्यापार को चीन के साथ बढ़ाने का फैसला किया था। हालांकि इतने साल बीत जाने के बाद भी अभी तक उसने चीन के साथ व्यापार बढ़ाने में कोई खास रुचि नहीं दिखाई है। हालत यह है कि चीन को जोड़ने वाला एकमात्र रासुवागाड़ी-काठमांडू हाइवे अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
नेपाल सरकार अभी तक इसकी सेहत को सुधारने के लिए काम नहीं कर सकी है। चीन को नेपाली झटके का एक और उदाहरण ट्रांस-हिमालयन बहुआयामी कनेक्टविटी नेटवर्क है जिस पर पिछले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा के दौरार हस्ताक्षर हुआ था। कागज पर इस प्रॉजेक्ट का उद्देश्य नेपाल को जमीनी, रेलवे, समुद्री और हवाई मार्ग से व्यापारिक रास्ते से जोड़ना था।
हालांकि इन चीनी समझौतों पर आगे बढ़ने में नेपाल के नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल के नेताओं और अधिकारियों ने कोरोना का बहाना लेकर अपनी अक्षमता को छिपाने की कोशिश की है। माना जा रहा है कि इसमें और देरी हो सकती है। नेपाल सरकार में परिवहन मंत्री गोपाल प्रसाद ने कहा कि चीनी विशेषज्ञ नेपाल नहीं आ सके, इस वजह से प्लानिंग और व्यवहारिकता का अध्ययन करने में देरी हुई है।
यह हालत तब है जब खुद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इन परियोजनाओं को बढ़ाने का वादा किया था। चीन में नेपाल के पूर्व राजदूत तनका कार्की ने कहा कि नेपाल बाहरी दबाव की वजह से अपने पैर पीछे खींच रहा है। खासतौर पर तब जब चीन का अमेरिका और भारत के साथ तनाव चल रहा है। कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह देरी नई नहीं है। भारत के साथ भी नेपाल के प्रॉजेक्ट मंत्रालयों के बीच सहयोग नहीं होने की वजह से लटके हुए हैं।
कुछ भी हो इस समय एक बात तो निश्चित है कि नेपाल चीन के इरादों को भांप गया है । उसे यह पता चल गया है कि चीन एक साम्राज्यवादी देश है, जो पहले लगभग आधा दर्जन देशों को निगल चुका है। उसकी कोप दृष्टि दूसरे देशों की जमीन पर रहती है। जिसे वह हड़प कर निगल जाने में ही भलाई समझता है। नेपाल जो कि एक छोटा सा देश है ,अपनी सुरक्षा के लिए पूर्णतया भारत पर निर्भर रहता है। भारत ने उसकी संप्रभुता का सम्मान करते हुए सदा उसे अपने छोटे भाई के रूप में सम्मान दिया है । चीन इसके विपरीत उसे एक ऐसा देश समझता है जो उसका ग्रास बन कर उसकी क्षुधा तृप्ति कर सकता है । निश्चय ही चीन के ऐसे इरादों को भांप कर नेपाल ने अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की है। हमारा मानना है कि नेपाल को उसे भारत के साथ हुई मित्रता का अपना वचन निभाते रहना चाहिए इसी में उसकी भलाई है।
डॉ राकेश कुमार आर्य