देश में पुन: 1947 वाली दशा दिखाई दे रही है। मजबूत नेता न होने से समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं। भ्रष्टाचार-बलात्कार-गैंगरेप जैसी घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्घि हुई है जिससे सिर शर्म से झुक जाता है। खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट-नकली मिठाईयां, सिंथैटिक दूध नकली देशी घी, विदेशी खादों के अधिक प्रयोग से सब्जियों फलों में प्राकृतिक स्वाद व गुण नही रहा है। शराब का सेवन बहुत बढ़ गया है। डॉक्टरों के यहां भारी भीड़ दर्शाती है कि लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ की जा रही है। नैतिक शिक्षा-धर्म शिक्षा के अभाव में युवक भटक रहे हैं। सस्ता व शीघ्र न्याय तथा कठोरतम दण्ड से अपराधों में कमी आ सकती है।
संविधान में किसी भी समुदाय को न तो बहुसंख्यक कहा गया है और न ही किसी को अल्पसंख्यक। स्पष्टï परिभाषा के अभाव में सरकारों ने मुस्लिम-ईसाई-सिख-बौद्घ पारसी को अनौपचारिक रूप से अल्पसंख्यक मानना शुरू कर दिया, क्योंकि इनकी जनगणना अलग से होती रही है। हालांकि यह कार्य संविधान की मूल भावना के विरूद्घ है। तथाकथित हिंदू हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी ने 1978 में केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग बनवाया था, इस आयोग के अधिनियम में कांग्रेसी सरकार ने 17-5-1992 में यह जोड़ दिया कि अल्पसंख्यक वह समुदाय है जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचित करे। भारत सरकार के इस कार्य से अल्पसंख्यकों का व्यवहार बिल्लियों जैसा आक्रामक होना शुरू हो गया। भारत सरकार ने हिंदुओं को बहुसंख्यक का सरकारी दर्जा नही दिया। उनकी उपेक्षा व अवहेलना की गयी। जिसके कारण हिंदू सर्वत्र चूहे की भांति रह रहा है। सभी जानते हैं कि चूहे सदैव बिल्लियों से डरते रहते हैं।
अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष शमशाद अहमद ने केन्द्रीय गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को ज्ञापन देकर कहा कि जिन छह राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए कानून बनाया जाए, ताकि उनका आयोग उनके हितों की रक्षा कर सके। सत्ता सुख भोग रहे आडवाणी ने इस दिशा में कुछ नही किया।
यह अत्यंत खेद का विषय है कि 1947 में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आए हुए हिंदू परिवारों को अभी तक राज्य की नागरिकता नही दी गयी है, और 1990 में कश्मीर घाटी से पलायन कर गये। हिंदू शरणार्थियों का पुनर्वास अभी तक नही हुआ है। 1997 में मिजोरम के हिंदू वनवासियों को भी पलायन करना पड़ा जो अब त्रिपुरा के शिविरों में रह रहे हैं।
यह कितनी शर्म की बात है कि खंडित भारत में हिंदू शरणार्थी के रूप में कई सालों से शिविरों में रह रहा है, किंतु उनके सुरक्षित पुनर्वास हेतु स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के राष्टï्रपति की ओर से प्रसारण में और स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण में इनके बारे में एक शब्द भी नही कहा जाता है। क्योंकि ये हिंदू हैं और हिंदू की उपेक्षा व अवहेलना करना इनकी आदत बन चुकी है। दुर्भाग्य हिंदू का है क्योंकि यूपीए तथा एनडीए की सोच उसके बारे में लगभग एक जैसी है।
66 वर्षों में हिंदू का प्रतिशत 88 से घटकर 81 रह गया है। गिरावट रोकने का विषय इनकी कार्य सूची में ही नही है।
यदि 1947 में हिंदू महासभा की सरकार देश के हिंदुओं ने बनवाई होती तो ऐसी दुखद विचित्र तथा हास्यास्पद स्थिति कभी नही बनती और हिंदू के आंसू सरकार पोंछती, जो 1300 वर्षों से बिल्लियों से डरकर चूहों की भांति रह रहा है।
कृपया हिमस के नेतृत्व वाले हिंदू युनाईटेड फ्रंट को मजबूत करें।
धन्यवाद।
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