Categories
आज का चिंतन

आज का चिंतन-15/08/2013

जश्न ही न मनाएँ देश के लिए कुछ करें भी

पिछले 66 साल से हम आजादी के पर्व का जश्न मनाते आ रहे हैं। इस दिन हम स्वतंत्रता सेनानियों और संग्राम में भागीदारी निभाने वाले लोगों को सिर्फ याद कर लिया करते हैं, उनके नामों की फेहरिश्त पढ़ लिया करते हैं और राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता की रक्षा के नाम पर जितनी भाषणबाजी संभव है, कर डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते।

एक वे लोग थे जिन्होंने अपना बचपन, शैशव और जवानी होम दी, घर-परिवार, भोग-विलास और सांसारिक कामनाओं को खूंटी पर रखकर खूब यातनाएँ सही, भूखों मरे, मारे गए और इतनी यंत्रणाएं झेली कि आतंक भी खुद शरमा जाए।

इसके बावजूद उनकी रगों में देशभक्ति थी और देश उनके लिए सबसे पहली प्राथमिकता पर था। इस देशभक्ति में न किसी प्रकार का आडम्बर था न मिलावट। यही कारण है कि देश के लिए कुछ भी कर गुजरने में वे जरा भी हिचकते नहीं थे।

रियासतों से लेकर अंगर््रेजी हुकूमत तक ने उन्हें पीड़ा पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, नारकीय यंत्रणाएं दी, जेलों में ठूंस कर सड़ मरने को विवश कर दिया और आतंक का वो खेल खेला जिसे देख यमदूत और नरक चलाने वाले भी लज्जित हो जाएं।

आजादी के समय और बाद में जो कुछ हुआ, उसका बहुत थोड़ा अंश ही हमारे सामने आ पाया है जबकि कई अज्ञात सेनानियों के साथ जो दुव्र्यवहार हुआ, सीखचों में बंद कर मार डाला गया, पाशविक यंत्रणाओं से कुचला गया, यह सारा पक्ष हमारे सामने है ही नहीं।

फिर भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जो जानकारी हमारे पास है, वह भी उस दौर की पाशविकता को बयाँ करने के लिए काफी है। आजादी चाहने वालों के साथ किस प्रकार का अन्याय और अत्याचार ढाया जाता है, उसके लिए हमारे इतिहास की जानकारी ही काफी है।

आजादी हर किसी को चाहिए, और होनी भी चाहिए। लेकिन जब यह आजादी स्वच्छन्दता की सीमाओं को भी पार कर जाए, तब यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह उन्मुक्तता और स्वार्थ केन्दि्रत माहौल हमारी आजादी को भी लील लेने का सीधा संकेत है।

आज तकरीबन ऎसी ही स्थितियां हमारे सामने हैं। हम आजादी का पर्व मनाते हैं, देशभक्ति के नारे लगाते हैं, जगह-जगह माईक लगाकर इन दो-चार दिनों में देशभक्तिगीत तेज आवाज में सुनते हैं और तिरंगा फहराकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं।

पर कुछ वर्ष से लग यह रहा है कि अब जो कुछ हो रहा है वह इसलिए हो रहा है कि करना पड़ रहा है। वरना देशभक्ति का असली ज्वार जब हृदय में उठता है तो वह 15 अगस्त या 26 जनवरी के दिन ही नहीं रहता बल्कि साल भर तक अपनी रगों में प्रवाहमान रहता है।

हम देशभक्ति की बातें तो खूब करते हैं लेकिन देश के लिए हम अपनी ओर से कितना कुछ कर पा रहे हैं या कर पाए हैं, इस प्रश्न का जवाब हम हमारे भीतर से ढूँढ़ने लगें तो निश्चित है कि हम अपने आपको अपराधी महसूस करने लगेंगे।

हम देश के लिए कितना कुछ कर पाए हैं, इस विषय पर उन सभी लोगों को गंभीरता के साथ सोचने की जरूरत है जो देश चलाने वाले हैं, देश चलाने वालों को चलाने वाले हैं, और हम सभी को भी, जिन्हें महान देश भारत का नागरिक होने का गौरव प्राप्त है।

आजादी के दीवानों के जज्बे से अपनी तुलना करें तो लगेगा कहाँ हिमालय और कहाँ हम राई भर भी नहीं। आजादी पाना जुदा बात है और आजादी की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना दूसरी बात।

सच तो यह है कि हमने आजादी को स्वच्छन्दता और उन्मुक्तता के अर्थों में ग्रहण कर लिया है और यही आज की हमारी सारी समस्याओं की जड़ है। आजादी के मायने पहचानें और देश के लिए जीने-मरने का माद्दा पैदा करें। यही उन महान वीर सपूतों और स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और तिरंगे के प्रति सम्मान होगा।

सभी को स्वाधीनता दिवस की बधाई …..

Comment:Cancel reply

Exit mobile version