आज का चिंतन-18/08/2013
कठपुतली न बने रहें
खुद की अक्ल भी लगाएँ
– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
अक्सर काफी सारे लोगों के बारे में सुना जाता है कि वे खुद की अक्ल लगाते नहीं, आस-पास वाले या अनुचरों की फौज जैसे नचाती है वैसे नाचते चले जाते हैं। खासकर बड़े कहे जाने लोगों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है।
इसका एक कारण तो यह है कि बड़ा होने मात्र का अनुभव जो एक बार कर लेता है वह आम संसार से अपने आपको अलग कर देता है। दूसरा कारण इन बड़े बन जाने वाले लोगों के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने वाले ऐसे-ऐसे लोगों का जमावड़ा हो जाता है जो इन बड़े लोगों को असलियत से दूर रखने की हरसंभव कोशिशें करते रहते हैं।
ऐसे में इन बड़े कहे जाने वाले लोगों का जमीन तथा जमीनी हकीकत से फासला निरन्तर बढ़ता चला जाता है और तब तक बना रहता है जब तक वापस ये जमीन पर नहीं आ जाते। हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी की बात हो या अपने इलाके की, हर कहीं यह आम समस्या है।
जिन्हें सुनना चाहिए, वे सुनने को तैयार नहीं हैं, और जो सुनाने वाले हैं वे बेवजह चिल्ला-चिल्ला कर अपनी क्षमताओं को समाप्त करते जा रहे हैं। हर तरफ बढ़ती जा रही दूरियों का ही परिणाम है कि आज ऐसे लोगों की चवन्नियाँ चल रही हैं जिनका खुद का मोल एक आने से ज्यादा नहीं है।
जीवन में बहुत कुछ न कर सकें तो कोई बात नहीं, मगर जो कुछ करें अपनी अक्ल लगाकर, सोच-समझ कर करें, इसी में समाज और अपना भला है। कई लोग बिना सोचे-समझे अपने अनुचरों की हर बात पर यकीन कर लेते हैं जबकि बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो किसी न किसी स्वार्थ या अनुचित लाभों के वशीभूत होकर दूसरे लोगों की ऐसी-ऐसी बातें भी मान लेते हैं जिन्हें सच्चाई और यथार्थ के साथ ही मानवीय मूल्यों की किसी भी फ्रेम में नहीं रखा जा सकता है। दुर्भाग्य यह है कि बड़े लोगों को यह पता भी नहीं चल पाता कि उनकी आड़ में लोग कैसे-कैसे खेल खेलने और खिलाने लगे हैं।
जो लोग दूसरों पर आश्रित रहकर फैसले लेते हैं या काम करते हैं वे सारे लोग कठपुतलियों से कम नहीं हैं जिनकी डोर परायों के हाथ में रहती है, इनके भाग्य में सिर्फ हिलना-डुलना ही लिखा है, और वह भी वैसे ही जिस तरह लोग चलायें।
औरों की अंगुलियों के इशारों पर नाचने वालों की सं या आजकल खूब बढ़ती जा रही है। औरों की सलाह पर मनमाने तरीके से स्वीकारोक्ति तथा क्रियान्वन करने वाले लोग न यश प्राप्त कर पाते हैं और न ही कोई पुण्य। क्योंकि ऐसे लोग अपने निन्दित और परायों के भरोसे होकर किए जाने वाले कार्यों से अपयश प्राप्त करते हैं।
कई बड़े-बड़े लोगों की आदत होती है कि आस-पास के चापलुस लोग जो कुछ कह देते हैं उस पर बिना सोच-विचार के ये कदम बढ़ा देते हैं जिसका खामियाजा कई लोगों को ही नहीं बल्कि समुदाय को पीढ़ियों तक भुगतना पड़ता है।
अपने प्रशस्तिगान, जयगान और वाहवाही में लगे हुए लोगों की हर बात जो मान लेता है उसका पतन शीघ्र ही होता है, इस अवस्था को कोई रोक नहीं सकता। इसलिए जीवन में जो भी कर्म करें, अच्छी तरह सोच-विचार कर करें ताकि जीवनयात्रा में अपयश का भागीदार न होना पड़े।
कठपुतलियों की तरह जीने वाले लोग ताजिन्दगी रोबोट बने रहते हैं। ये जहाँ होते हैं वहाँ दूसरे लोगों के इशारों पर चलते हैं। ऐसी कठपुतलियों के वस्त्र कालान्तर में तार-तार होकर इन्हें नग्न कर देते हैं और रंगों की चमक खोयी लकड़ियों में लग जाने वाली दीमक इन्हें मरघट पर पहुंचा कर ही दम लेती है।
जो कुछ करें, अपनी बुद्घि लगाकर करें, औरों के भरोसे रहने की आदत त्यागें और जिस कर्म में रुचि हो उसमें डूब कर काम करें। ऐसा होने पर न बैसाखियों की जरूरत होगी, न खुद को कठपुतली में रूपान्तरण की।