चीन के विषय में हम पहले से ही यह मानते आ रहे हैं कि इस देश की कथनी व करनी में बहुत भारी अन्तर है । चीन एक ऐसा देश है जो सोया हुआ दानव है । मानवता नाम की कोई चीज इसकी राजनीति या विदेशनीति में नहीं मिलती । यह किस स्थिति में कहाँ तक जा सकता है ? इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता । मानवता और नैतिकता यह दोनों चीजें जहाँ धर्म होता है – वहां पाई जाती हैं । चीन के कम्युनिस्ट शासक वर्ग का क्योंकि धर्म की नैतिकता में कोई विश्वास नहीं है , इसलिए किसी भी प्रकार के नैतिक आचरण की अपेक्षा चीन और चीन के राजनीतिज्ञों से नहीं की जानी चाहिए ।
भारत में जब से मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है तब से चीन की इस चाल, चरित्र और चेहरे को उसने पहचानने का अबसे पूर्व की प्रत्येक सरकार से कहीं अधिक गम्भीर प्रयास किया है । यही कारण है कि चीन भी अब यह मानने लगा है कि जब से भारत में मोदी सरकार आयी है ,तब से उसकी विदेश नीति में चीन के सन्दर्भ में विशेष परिवर्तन आया है ।
चीन के एक थिंक टैंक के शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि “मोदी सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद से भारत की विदेश नीति काफी सक्रिय और मुखर हो गई है। साथ ही भारत की रिस्क लेने की क्षमता में भी उल्लेखनीय उछाल आया है।”
चीन के सरकारी थिंक टैंक ‘चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ (सीआईआईएस ) के वाइस प्रेसीडेंट रोंग यिंग का मानना है कि “पिछले 3 वर्षों में भारत की विदेश नीति में भारी परिवर्तन आया है। मोदी सरकार में भारत की विदेश नीति अधिक सक्रिय, मुखर हो गई है।” रोंग यिंग का मानना है कि “भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने के उद्देश्य से विदेश नीति में यह परिवर्तन देखने को मिल रहा है।”
सीआईआईएस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में रोंग यिंग ने कहा है कि “मोदी सरकार में भारत और चीन के संबंधों में स्थिरता आ गई है। डोकलाम विवाद पर रोंग यिंग ने कहा कि इस विवाद ने भारत-चीन के बीच जारी सीमा विवाद को उभार दे दिया है, इसके साथ ही दोनों देशों के संबंधों में गिरावट भी आयी है।”
चीन के थिंक टैंक की ओर से जारी इस प्रकार के बयानों से स्पष्ट होता है कि भारत अब चीन के प्रति पहले से कहीं अधिक सावधान है।
अभी हाल ही में भारत -चीन सीमा पर दोनों देशों के बीच चल रहे सैनिक जमावड़े और संघर्ष की छुटपुट घटनाओं में हमने देखा कि चीन कभी अपनी सेनाओं को पीछे हटा देता है तो कभी उसकी सेनाएं सीमा की ओर बढ़ती हुई दिखाई देती हैं। हमने पहले भी ऐसा लिखा था कि चाहे चीन के सैनिक पीछे हट रहे हैं , परन्तु यह सही ना माना जाए कि वास्तव में ही चीन के सैनिक पीछे हट रहे हैं । वह कुछ भी कर सकता है।
चीन ने अपने चार भरे चेहरे और चरित्र का परिचय देते हुए पिछले दिनों भारत के साथ बहुत बड़ी घटना को अंजाम देते हुए हमारे 20 सैनिकों का बलिदान ले लिया था । यद्यपि भारत के वीर सैनिकों ने भी अपनी ओर से जवाबी कड़ी कार्रवाई करते हुए चीन को यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि आज का भारत 1965 का भारत नहीं है और यही कारण है कि हमारे सैनिकों ने चीन के 43 सैनिकों को ढेर कर दिया है । भारत के सैनिकों की वीरता और साहस को सारे संसार ने मुक्त कंठ से सराहा है , जबकि चीन की धृष्टता की सर्वत्र निन्दा हो रही है। इस घटना को विश्व की मीडिया ने बड़ी प्रमुखता से लिया है । सामान्य रूप से मीडिया ने इस घटना को तीसरे विश्व युद्ध के आरम्भ होने के रूप में भी देखा । इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत चीन के मध्य बढ़ता टकराव मानवता के लिए कितना विनाशकारी हो सकता है ?
‘एक्सप्रेस डॉट यूके’ ने लिखा है कि यह घटना तीसरे विश्व युद्ध के आरम्भ होने का संकेत है , जबकि ‘इजराइल टाइम्स’ ने इस घटना को इन दोनों परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के बीच बढ़ते तनाव का परिणाम करार दिया । इसी प्रकार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने इसे विश्व के सबसे घनी और बड़ी आबादी वाले दो देशों के बीच संघर्ष के रूप में स्थापित किया है।
ब्रिटिश अखबार की वेबसाइट ने भारत-चीन टकराव को तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत कहकर स्थापित किया है ।अखबार की इस टिप्पणी से भारत चीन जैसे परमाणु शक्ति सम्पन्न दो देशों के बीच बढ़े संघर्ष की गम्भीर परिणति को स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है। चीन जिस प्रकार गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहा है वह मानवता के लिए कितना विनाशकारी सिद्ध हो सकता है ? इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
खबर में कहा गया है कि लद्दाख की गलवान घाटी में हुए टकराव में भारतीय सेना के एक अधिकारी और दो सैनिक शहीद हुए। जबकि खूनी नरसंहार के जवाब में पांच चीनी सैनिक मारे गए हैं। परमाणु शक्ति सम्पन्न पड़ोसियों के बीच टकराव के परिणामस्वरूप दशकों में यह पहली बार दुर्घटना की सूचना है। हालांकि, चीन ने घायलों की मौत या संख्या की पुष्टि नहीं की है। खबर में सेवानिवृत्त अमेरिकी सेना के कर्नल लॉरेंस सेलिन के ट्वीट के हवाले से कहा गया है कि चीन भारत के साथ खिलवाड़ न करे। उन्होंने कहा, दुखद नुकसान के बावजूद, भारतीय सेना ने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हमलावरों को सजा दी है।
अखबार की इस प्रकार की टिप्पणी से यह भी स्पष्ट होता है कि विश्व जनमत या विश्व के मीडिया की राय में चीन इस समय ज्यादती कर रहा है और वह उग्रवाद के जिस रास्ते पर बढ़ रहा है उससे भारत को विवश होकर ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं जिससे मानवता अनचाहे युद्ध की ओर बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।
इजरायल के प्रमुख समाचार पत्र ने अपनी वेबसाइट पर खबर में लिखा कि भारतीय सेना ने कहा कि चीनी सीमा पर तीन सप्ताह में बढ़े तनाव के बाद मंगलवार को आपसी संघर्ष में तीन भारतीय सैनिक शहीद हो गए हैं। खबर में कहा गया कि भारतीय सेना ने कहा कि दोनों तरफ से हताहत हुए, लेकिन चीन ने किसी की मौत या घायल होने का कोई उल्लेख नहीं किया अपितु इस घटना के लिए भारत पर तेजी से दोषारोपण किया। 3,500 किलोमीटर के सीमांत पर दो परमाणु-सशस्त्र दिग्गजों के बीच काफी नियमित आधार पर विवाद रहे हैं, जिनका कभी ठीक से सीमांकन नहीं किया गया, लेकिन दशकों में कोई भी मारा नहीं गया था।
इस अखबार ने भी सधी हुई भाषा में यह स्पष्ट कर दिया है कि चीन और भारत के बीच सीमा विवाद इस समय बहुत नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है और यदि दोनों देशों ने स्थिति को नहीं संभाला तो बहुत विस्फोटक स्थिति बन सकती है।
अमेरिका के सबसे बड़े अखबार ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि सीमा पर चीन से घातक संघर्ष में चीनी सैनिकों के द्वारा पथराव में भारत के तीन सैनिक मारे गए हैं। हिमालय क्षेत्र में विवादित सीमा पर हुई इस झड़प से दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले दो देशों में तनाव और बढ़ गया है। प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार पथराव में दोनों देशों के जवान हताहत हुए हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने सोमवार को दो बार सीमा पार की और चीनी कर्मियों पर हमला किया। जबकि भारतीय सैन्य अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि चीनी सैनिकों द्वारा ऊंचाई से चट्टानें गिराने से सैनिक मारे गए हैं। वहीं, विदेश नीति के विश्लेषकों का कहना है कि चीन अधिक दबंग होकर अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहा है। चाहे दक्षिण चीन सागर हो या हिमालय क्षेत्र। वियतनाम, ताइवान, हांगकांग और मलेशिया तेल रिंग मामले इसके ताजा उदाहरण हैं।
अमेरिकी विश्लेषकों ने चीन की दबंगई को स्पष्ट करते हुए विश्व जनमत को यह संदेश किया है कि चीन का साम्राज्यवाद तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकता है । यदि चीन ने अपने आप को नहीं संभाला तो न केवल तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत करने का श्रेय उसको जाएगा बल्कि इस युद्ध के अंतिम परिणाम के रूप में उसका पतन भी निश्चित है । यद्यपि विशाल बारूद के ढेर पर बैठी हुई मानवता के लिए यह युद्ध अस्तित्व का प्रश्न बन कर आएगा। क्योंकि कई देश इस समय ऐसे हैं जो दर्जनों बार इस जैसी दुनिया को समाप्त कर सकते हैं । तब किसका पतन और किस का उत्थान होगा ? – यह कहा नहीं जा सकता है । निश्चित रूप से मानवता का विनाश ही होगा। ऐसे में यूएन जैसी संस्था को हस्तक्षेप कर मानवता की रक्षा के लिए दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के मध्य बढ़ते टकराव को रुकवाने की दिशा में ठोस कार्य करना चाहिए और चीन को किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र की सम्प्रभुता को क्षतिग्रस्त न करने देने के लिए कठोर निर्देश देने चाहिए । विश्व स्तर पर संसार के सभी नेताओं को व कूटनीतिक प्रयासों से मानवता की युद्धों से रक्षा करने वाले लोगों को सक्रिय होना चाहिए।
‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन’ की वेबसाइट पर खबर में कहा गया कि विवादित कश्मीर क्षेत्र के लद्दाख में चीनी बलों के साथ झड़प में तीन भारतीय सैनिक मारे गए हैं। खबर में कहा गया कि दोनों परमाणु शक्तियों के बीच हाल के हफ्तों में सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच यह टकराव सामने आया है। हालांकि, दोनों तरफ से गोलियां नहीं चलीं हैं। मीडिया रिपोर्ट में पीट-पीटकर मारे जाने की बात सामने आई है, लेकिन सेना ने पुष्टि नहीं की। इसका परिणाम जो भी हो, लेकिन नवीनतम घटना से भारत में चीन विरोधी भावनाओं की एक नई लहर शुरू होने की संभावना है ।
खाड़ी देशों के प्रमुख मीडिया संस्थान ‘अलजजीरा’ की वेबसाइट पर खबर में कहा गया है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख के हिमालयी क्षेत्र में हिंसक टकराव हुआ है। भारतीय सेना के प्रवक्ता के हवाले से एक अधिकारी सहित तीन जवान मारे जाने का जिक्र है। वहीं, चीन के ग्लोबल टाइम्स अखबार के प्रधान सम्पादक के हवाले से कहा है कि चीनी सेना को भी झड़प में हताहत होना पड़ा है। दोनों परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसियों ने सीमा पर बख्तरबंद टैंक और तोपों सहित हजारों सैनिक, लद्दाख क्षेत्र में मई से तैनात कर रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय अधिकारियों का कहना है कि चीनी सैनिकों ने तीन अलग-अलग बिंदुओं पर सीमा पार की और मौखिक चेतावनी की अनदेखी की। जबकि चीन ने भारत पर विवादित सीमा पार करने का आरोप लगाया है।
इस समय दुनिया बहुत ही अधिक गैर जिम्मेदार लोगों की दया पर टिकी हुई है। राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गैर जिम्मेदार नेतृत्व वही होता है जो निहित स्वार्थों में सोचता है या किसी वर्ग विशेष को क्षति पहुंचाने के दृष्टिकोण से अपने कार्यों को पूर्ण करता है या जब किसी देश का नेतृत्व अपने राष्ट्रीय हितों के दृष्टिगत मानवता के हितों की अनदेखी करता है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो हर नेता और हर देश का नेतृत्व इस समय निहित स्वार्थों की बात कर रहा है। कलह , कटुता , क्लेश और एक दूसरे को नीचा दिखाने की घृणास्पद बातें इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि लगता है विश्व की नाभि टहल गई है ।
यज्ञ को इस सृष्टि की नाभि कहा गया है । यज्ञ सृष्टि की नाभि इसलिए है कि इसमें एक व्यक्ति दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है,अधिकारों की लूट नहीं मचाता । जब लूट की यह भावना वैश्विक स्तर पर व्याप्त हो जाती है तो विश्व का विनाश निश्चित हो जाता है । यदि यह भावना इस समय विश्व का एक संस्कार बन चुकी है तो निश्चय ही हम वैश्विक विनाश के बहुत निकट खड़े हैं।
सचमुच विश्व ने भारत के संस्कारों को छोड़कर बहुत भारी गलती की है । यदि भारत के संस्कारों को विश्व अपनाए रखता तो आज विश्व में अधिकारों की लूट न मचकर कर्तव्यों को पूर्ण कर एक दूसरे का सहायक बनने का भाव विश्व का स्थायी संस्कार होता । जिससे सर्वत्र शांति ही शान्ति होती । यदि अभी भी वैश्विक नेतृत्व भारत के संस्कार को अपनाने की दिशा में ठोस कार्य करे तो मानवता को आसन्न संकट से बचाया जा सकता है।
सचमुच इस समय विश्व के सभी देशों को भारत और चीन के बीच बढ़ते सैन्य टकराव की आशंकाओं को समाप्त कराने की दिशा में ठोस कार्य करना चाहिए । इसके साथ – साथ भारत और चीन अपनी विदेश नीति में पवित्र ह्रदय से शान्तिपूर्ण सह -अस्तित्व के भाव को समाविष्ट करने का प्रयास करें। इस दिशा में भारत की सोच और नीति पूर्णतया पारदर्शी है । चीन की सोच और नीति को लेकर शंकाएं हैं । जिन्हें चीन को ही दूर करना होगा ।
इस समय चीन ‘स्टिंग ऑफ पर्ल्स’ की अपनी रणनीति के अंतर्गत हिन्द महासागर में भारत को घेरने के प्रयास कर रहा है। चीन के इस प्रकार के प्रयासों से निपटने के लिए भारत भी ‘आसियान’ देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ कर रहा है। भारत चीन की सैन्य शक्ति का अनुमान लगाकर अपनी सैन्य क्षमताओं को भी उसी अनुपात में बढ़ा रहा है । जिससे दोनों देशों की विदेश नीति इस समय टकराव को आमंत्रित करती जा रही है । निश्चित रूप से इसमें पहल चीन की ओर से हो रही है। फलस्वरूप भारत को आत्मरक्षा में अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करना पड़ रहा है। 1962 का कटु अनुभव भारत के सामने है जिससे शिक्षा लेकर वर्तमान नेतृत्व इस बार चीन को ऐसा कोई भी अवसर उपलब्ध नहीं करने देना चाहता जिससे राष्ट्रीय अस्मिता पर आंच आए। चीन भी भारत की विदेश नीति में आए परिवर्तन को भलीभांति पहचान रहा है । उसने कुछ समय पूर्व डोकलाम में भारत की बढ़ती सैन्य क्षमताओं का आकलन कर लिया था ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत