Categories
आज का चिंतन

आज का चिंतन-23/08/2013

क्या कहें इन  को
जोश में होश खो चुके हैं

– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077

अपार ऊर्जाओं और अखूट उत्साह के बीच जीने वाली आज की पीढ़ी के पास सब कुछ है जो लोक जीवन से लेकर परिवेश तक में हलचल मचा देने को काफी है। लेकिन अभाव है तो सिर्फ इस बात का कि उनके जोश को नियंत्रित करने वाला होश गायब है या मंद पड़ा हुआ है।युवाओं के सामर्थ्य से हर कोई परिचित है और इसे स्वीकार भी किया जाता है लेकिन इस सामर्थ्य का समाज और राष्ट्रहित में उपयोग हो, रचनात्मक गतिविधियों को इसका फायदा मिले, और जो कुछ सामने आए वह सुकून देने वाला हो, तब तो सब कुछ अ’छा माना जा सकता है लेकिन जब धाराओं की दिशा अनचाही दिखने लगे तब चिंता का कारण उत्पन्न हो सकता है।
ऐतिहासिक गौरवगाथाओं और परंपराओं, संस्कृति व संस्कार तथा लोक जीवन के आदर्शों का जब से ह्रास होना आरंभ हो चला है तभी से हम सभी लोग कटघरे में आ गए हैं। दोष हमारी युवा पीढ़ी का नहीं है हमारा भी है। हम ही ने आदर्शों, संस्कारों और सेवा-परोपकार के भावों को अंगीकार करने में कंजूसी का दौर आरंभ किया था जिसे हमारे नौजवानों ने पूर्ण यौवन प्रदान कर दिया है। इसलिए दोषी हम भी हैं और प्रारंभिक दोष हम सभी का है।
आज देश में सबसे ‘यादा हताश, निराश और दिशाहीन कोई हैं तो वे हमारे युवा साथी ही हैं जिन्हें यह तक सूझ नहीं पाता है कि आखिर हम क्या करें? कैसे भविष्य सँवारें और किस प्रकार माता-पिता तथा समाज की अपेक्षाओं को पूरा करें। पढ़े लिखे भी परेशान हैं और अनपढ़ भी।
इन सभी प्रकार के दिशाभ्रम के रहते हुए आज युवाओं की अपार ऊर्जाओं का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है और यह बुद्धि-बल तथा बाहु-बल अनुशासन और मर्यादाओं की सीमारेखाओं को तोड़ने लगा है। सम सामयिक कल्पना शक्ति रचनात्मक गलियारों से सरक कर जाने किस ओर जा रही है।
आजकल सभी जगह जोश में होने खो देने की बातें आम हैं और इसमें सबसे अव्वल है हमारी युवाशक्ति जिसमें बहुत बड़ी संख्या उन युवाओं की है जिनके लिए आज के सारे संसाधन ऐशोआराम देने वाले ही हैं और इनका समय रहते जितना उपयोग हो जाए वो श्रेष्ठ है।
आजकल किशोरों से लेकर युवाओं तक में कई प्रकार के मनोविज्ञान चल रहे हैं। इनमें निठल्ले हैं, पढ़ने-लिखने वाले हैं, मोबाइल और मोटरबाईक से युक्त हैं तथा ऐसे भी हैं जो अभिजात्य वर्ग से संबंधित हैं जिनके लिए आलीशान चौपहिया वाहनों से लेकर आधुनिक विलासिताप्रधान सभी प्रकार के संसाधन उपलŽध हैं।
इनमें युवाओं की दूसरी किस्मों को छोड़ भी दिया जाए तो हर बड़े कस्बों और शहरों से लेकर महानगरों तक में जात-जात की मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल करते हुए बाइकिंग की महामारी इतनी व्यापक होती जा रही है कि हर कोई परेशान है।
बेवजह जमा होकर चिल्लाना और भागना उन्मादी लोगों की निशानी है और ऐसे में ये ही काम बाइकर्स करने लगें तो इसे उन्माद का चरम ही कहा जाएगा। आजकल हर किसी शहर-महानगर में ऐसे बाइकर्स के आतंक के मारे लोग परेशान हैं। पाँच-दस रईसजादे कहीं एक जगह जमा हो गए और फिर चिल्लाते हुए अपनी मोटरसाईकिलों को अंधाधुध रफ्तार दे डालते हुए गलियों-चौराहों और मुख्य रास्तों पर दौड़-भाग करने करने लगते हैं।
आए दिन इन बाइकर्स की हरकतों से लोग त्रस्त हैं। इन युवाओं को लगता है कि जैसे उनका जन्म इसी तरह की धींगा-मस्ती करने के लिए हुआ है। जो कोई इनकी हरकतों को देखता है, इनसे कहीं ‘यादा इनके माँ-बाप को कोसता है जिनके लाड़-प्यार ने इन रईसजादों को बिगाड़ कर रख दिया है या घर-परिवार से कोई संस्कार तथा अनुशासन एवं मर्यादाओं की सीख मिल ही नहीं पायी।
इनके माँ-बाप बेचारे क्या करें? माँ और बाप तो अब इनके लिए सुविधादाताओं से कुछ ‘यादा नहीं माने जा रहे। इन युवाओं की संगति ही आजकल उद्विग्नता और उन्माद से है और ऐसे में चिल्लपों मचाते हुए तेज रफ्तार में बाइक रैली निकालने जैसी हरकतों से ‘यादा इनसे समाज क्या अपेक्षा रख सकता है।
बिना किसी अंकुश के तीव्र रफ्तार की चपेट में वे लोग आ जाते हैं जिन्हें इन राजकुमारों की हरकतों या बाइक रैलियों का पहले से अंदाज नहीं लग पाता है। जो युवा ऐसा करते हैं उन्हें तसल्ली से यह सोचना चाहिए कि उनकी ये हरकतें आखिर कौन बर्दाश्त कर सकता है।
इन युवाओं को यह भी सोचने की जरूरत है कि चिल्लाते हुए बाइक दौड़ाना और लोगों को परेशान करना ही उनके जीवन का अहम मकसद होकर रह गया है। इनके अभिभावकों को भी चाहिए कि वे अब भी थोड़ा-बहुत अंकुश रखें और संस्कार संवहन नहीं कर पाने या और किसी कारण से संतति में आ गई गड़बड़ी को सुधारकर प्रायश्चित करें ताकि उनके लाड़लों के कारण समाज परेशान न हो।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version