उद्देश्य और योजना- राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का उद्देश्य है। मुख्य क्षेत्र हैं-1. भिन्न राष्ट्रीय अनुप्रयोग जैसे दूरसंचार, टीवी प्रसारण, आकाशवाणी के लिए उपग्रह सँचार। 2. दूरसंवेदी द्वारा संसाधन सर्वेक्षण और प्रबंधन, पर्यावरण जाँच पड़ताल और मौसम विज्ञान सम्बंधी सेवाएँ। 3. उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए देशी उपग्रहों तथा प्रक्षेपण यानों का विकास।
इसरो (ISRO)- 1962 ई. में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना की गई जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया। इसके साथ 1969 ई. में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और 1972 में अंतरिक्ष आयोग एवं अंतरिक्ष विभाग जोड़ा गया। अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों और अंतरिक्ष अनुप्रयोग कार्यक्रमों की योजना बनाने, निष्पादन और प्रबंधन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जिम्मेदार है।
अन्य सहयोगी संगठन
1. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र- VSSC – यह तिरुवनंतपुरम् में स्थित प्रक्षेपण यान के विकास का मुख्य केंद्र है।
2. इसरो उपग्रह केंद्र – ISAC – यह बंगलौर में स्थित उपग्रहों के डिज़ाइन, निर्माण, परीक्षण एवं प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार है।
3. अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र – SAC- अहमदाबाद में स्थित यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए यंत्र बनाने, संगठित और निर्माण करने के लिए इसरो का अनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
4. शार केंद्र – SHAR- आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित यह इसरो का मुख्य प्रक्षेपण केंद्र है।
5. तरल नोदन यंत्र – LPSC- यह प्रमोचक रॉकेट तथा उपग्रहों के लिए द्रव एवं क्रायोजेनिक नोदन के विकास में अग्रणी केंद्र है। इसकी सुविधाएँ तिरुवनंतपुरम, बँगलौर और महेंद्रगिरि (तमिलनाडु) में स्थित है।
6. विकास, शिक्षा संचार एकक (Development & Education Communication Unit – DECO)- अहमदाबाद में स्थित यह केंद्र अंतरिक्ष अनुप्रयोग कार्यक्रम की संकल्पना, परिभाषा, योजना और सामाजार्थिक मूल्यांकन में लगा हुआ है।
7. इसरो दूरमापी यंत्र, पथ और कमांड नेटवर्क – ISTRAC- इसका मुख्यालय और अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र बंगलौर में एवं इसके भू-स्थल केंद्र का नेटवर्क श्रीहरिकोटा, तिरुवनंतपुरम, बँगलौर, लखनऊ, कार निकोबार और मॉरीशस में स्थित है।
8. प्रमुख नियंत्रण सुविधा (Master Control Facility)- हासन, कर्नाटक में स्थित यह स्थान इनसैट उपग्रहों के सभी उत्तर प्रक्षेपण परिचालनों के लिए जिम्मेदार है।
9. इसरो अक्रिय यंत्र एकक-IIRU – तिरुवनंतपुरम् में स्थित यह एकक उपग्रहों एवं प्रक्षेपण यानों दोनों के लिए अक्रिय यंत्रों का विकास करती है।
10. भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला- PRL – अहमदाबाद में स्थित यह प्रयोगशाला अंतरिक्ष विभाग के अधीन आती है।
11. राष्ट्रीय दूरसंवेदी एजेंसी-NRSA- हैदराबाद में स्थित यह केंद्र पृथ्वी संसाधनों की जाँच-पड़ताल करता है।
12. राष्ट्रीय मीसोस्फीयर, स्ट्रेटोस्फीयर, ट्रोपोस्फियर राडार सुविधा- NMRF- गंदकी, आंध्र प्रदेश में वातावरणिक अनुसंधान करने के लिए वैज्ञानिक इस सुविधा का इस्तेमाल करते हैं।
13. इसरो जड़त्वीय प्रणाली यूनिट- तिरुवनंतपुरम स्थित आई.आई.एस.यू जड़त्वीय संवेदकों तथा प्रणालियों एवं संबंधित उपग्रह तत्व में अनुसंधान एवं विकास कार्य आयोजित करती है।
14. विद्युत प्रकाशिकी प्रणाली प्रयोगशाला (लियोस)- बंगलुरू स्थित लियोस उपग्रहों और प्रमोचक राकेटों के लिए अपेक्षित विद्युत प्रकाशिकी संवेदकों और कैमरों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास कार्य करती है।
इनसैट प्रणाली – 1980 के दशक में इनसैट प्रणाली से भारत के संचार क्षेत्र में बड़ी क्रांति का सूत्रपात हुआ। इसमें ग्यारह उपग्रह इन्सेट-4सीबी, इनसेट-4बी, इनसेट-4ए, एडुसेट, इनसेट-3ई, जीसेट-2, इनसेट-3ए, कल्पना-1, इनसेट-3सी, इनसेट-3बी और इनसेट-2ई वर्तमान में सेवा प्रदान कर रहे हैं। यह प्रणाली कुल मिलाकर 66 सी-बैंड ट्रांसपोंडर्स, 8 वृहद् सी-बैंड ट्रांसपोंडर्स और 3 के यू बैंड ट्रांसपोंडर्स उपलब्ध कराती है। बहुउद्देश्यीय उपग्रह प्रणाली होने के कारण यह दूरसंचार, टेलीविजन प्रसारण, मौसम पूर्वानुमान, आपदा चेतावनी और बचाव क्षेत्रों में सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली- आज भारत के पास दूरसंवेदी उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह उपलब्ध है जो कि राष्ट्रीय और विश्व, दोनों ही स्तरों पर सेवाएँ देते हैं। भारतीय दूरसंवेदी उपग्रहों (आई आर एस) के जरिए विभिन्न स्थानिक विभेदनों में डाटा उपलब्ध हैं जो कि 360 मी. से शुरू होता है और 5.8 मीटर के विभेदन तक जाता है। आई आर एस अंतरिक्षयानों पर लगे अत्याधुनिक कैमरे विभिन्न स्पैक्ट्रल बैंडों में पृथ्वी के चित्र खींचते हैं। इस समूह में अब 10 उपग्रह प्रचालित हैं- ओसेनसेट-2, रिसेट-2, कार्टोसेट-2ए, आईएमएस-1, कार्टोसेट-2, कार्टोसेट-1, रिसोर्ससेट-1, टीईएस, ओसेनसेट-1 व आईआरएस। इन उपग्रहों और आगामी वर्षों में योजित विषयवस्तु श्रृंखला के उपग्रहों जैसे कि मेघा-ट्रापिक्स, सरल एवं इन्सैट-3डी के साथ भारतीय भू-प्रेक्षण प्रणाली मानचित्रकला से लेकर जलवायु तक के कई क्षेत्रों में उपयोग हेतु प्रचलनात्मक उत्पाद व सेवा प्रदान करने की आशा है।
आईआरएस अंतरिक्षयान द्वारा भेजे गए चित्रों का भारत में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कृषि में फसलों का क्षेत्रफल और उपज का अनुमान है। साथ ही इन चित्रों का उपयोग जल भंडारों को जानने में किया जाता है। वनों का सर्वेक्षण और प्रबंधन तथा बंजर भूमि पहचान इस प्रकार के अन्य उपयोग हैं।
प्रक्षेपण यान (Launch vehicle) – 1980 ई. में पहले स्वदेशी प्रक्षेपण यान एस एल वी-3 के सफल परीक्षण के पश्चात् इसरो ने अगली पीढ़ी के संवद्र्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का निर्माण किया। अक्टूबर 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान द्वारा आई आर एस-पी 2 यान को छोड़े जाने के साथ हमारे प्रक्षेपण यान कार्यक्रम ने बड़ी छलांग लगाई। 18 अप्रैल, 2001 को भारत ने सफलतापूर्वक स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान छोड़ा। भारत के पास ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) व भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी एस एल वी) की क्षमतायें उपलब्ध हैं। चार चरणों वाला पी एस एल वी 1600 किग्रा तक के उपग्रहों को 800 किग्रा. ध्रुवीय कक्षा में छोड़ सकता है। यह एक टन के पेलोड को भू-स्थिरीय हस्तांतरण कक्षा से भी प्रक्षेपित कर सकता है। जी एस एल वी 2,500 किग्रा श्रेणी के उपग्रहों को भूस्थिर हस्तांतरण कक्षा में छोड़ सकता है।
वर्ष 2009-10 में प्रगति – देश की रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसरो ने रडार इमेजिंग उपग्रह रीसेट-2 का प्रक्षेपण किया है। इसी तरह से इसरो ने महासागरीय अनुसंधान के लिए अत्याधुनिक उपग्रह ओसेनसेट-2 का पीएसएलबी-सी-14 के द्वारा सफल प्रक्षेपण किया है।
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