हर व्यक्ति के अंदर एक मजबूत पक्ष होता है उसे अपने उस पक्ष को ढूंढनें की कोशिश करनी चाहिए। कई क्षेत्रों मे हाथ बटाने से अच्छा है कि अपने पंसद व लगाव के क्षेत्र के बारे में पता करें, अपनी पूरी ऊर्जा उस तरफ झोक दें। कई सारे लक्ष्य बनाना या फिर करने की कोशिश करना असफलता को न्यौता देना है। अपने मजबूत पक्ष को इतना मजबूत करना चाहिए कि वो आपके व्यक्तित्व कि दूसरी कमियों को छुपा ले, इतिहास में बहुत सारे ऐसे उदाहरण भरें परे है जो कि हमारी बातों को मजबूती प्रदान करते है। अलाउद्दीन खिलजी और अकबर दोनो ही कम पढ़े लिखे थे, लेकिन दोनों ने ही पूरे मध्यकाल की सूरत बदल कर रख डाली। वही उनसे ज्यादा पढ़ें लिखें व विद्वान मोहम्मद तुगलक व हुमायूँ असफलता की परिकाष्ठा पर पहुँच जाते है। वर्तमान में बहुत से महान व्यक्तित्व है जो कम पढ़ लिखें है पर उन्होने अपने मजबूत पक्ष व मेहनत से अपनी कमियों को छुपा लिया।
हमें यह मान कर चलना होगा कि हम सब कुछ नही कर सकतें न ही जान सकते है, पर जो जानेगें व करेगें, उसमें पूर्णता प्राप्त करेंगे। वर्तमान मे दशरथ मांझी ने यह सिद्ध कर दिया आदमी अगर ठान ले तो कुछ भी कर सकता है। जब उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है। उनके दिलों दिमाग़ में यह बात कोधनें लगती है कि यह दर्दनाक हादसा अब किसी और के साथ नहीं होने दूंगा।
गावँ वालो ने उन्हें पागल घोषित कर दिया लेकिन उनका अपने ऊपर जुनून की हद तक विश्वास ने नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिया। आज जब हम उस पहाड़ी रास्ते पर खड़े होते है तो बरबस ही रोमांच से शरीर सिहर उठता है। किस तरह एक आदमी ने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता निकाल दिया, वो भी अगर दुविधा में होते तो शायद सफलता मिलनी मुश्किल थी। उनको अपनी पत्थर तोड़ने की हुनर पर जरूरत से ज्यादा विश्वास था, यह विश्वास उनका तब भी बना रहा जब उनका साथ उनके घरवालों ने , गाँव वालो ने छोड़ दिया, सूखा पड़ने पर सारा गाँव दूसरी जगह चला जाता है। लेकिन दशरथ माँझी ने उस कठिन परिस्थिति में भी पत्थर तोड़ना बन्द नही किया। आने वाली पीढ़ी के लिए एक छोटा सा रास्ता उपलब्ध करा दिया जिसके माध्यम से लोग अस्पताल व बाजार आसानी से पहुँच सकें।
वो हमेशा बस एक ही बात बया करते- शानदार, जानदार, जबरदस्त।
हमारें रास्ते में बहुत सी बाधाएँ आती है और ये बाधाएँ सभी के जीवन में है तो इन से घबराना क्यों? इन बाधाओं से घबराकर जब हम अपने रास्ते बार-बार बदलने लगते है तब हमारी असफलता निश्चित हो जाती है।
शुरूआती कठिनाइयों को हम झेल ले तो फिर हम जो चाहते है वही होता है। इसके लिए सबसे जरूरी है अपने मजबूत पक्ष को जानना, अगर हम उसका पता लगाने में असमर्थ हो जा रहें है तो अपने वरिष्ठ जनों की सहायता ले सकते है। इस सन्दर्भ मे कुछ ध्यान रखने योग्य
-शुरू से ही अपने मन मष्तिष्क में बैठा ले कि आप सब कुछ नही कर सकते है और न ही हर जगह हाथ अजमाना ठीक है।
– युवा अवस्था में जो चीजें पसन्द आ जाती है मन उधर की तरफ भागने लगता है। चलो इतना रिस्क कौन उठाऐ, बाद में देखा जायेगा। एक बार हाथ से समय निकल गया तो लाख कोशिश के बाद हमारे हाथ सिफर ही रहेगा। साथ ही उम्र भर एक कचोट रह जायेगी काश जल्दबाजी नहीं किया होता………….
– अपने मजबूत पक्ष को इतना मजबूत करें कि अन्य पक्ष नगण्य हो जाए। मुरलीधरन शेनवार्न बैटिंग नही कर पाते थे फिर भी वो अपनी टीम का अटूट हिस्सा थे क्योंकि उनकी गेंदबाजी लाजबाव थी। अब वो बैंटिग भी करने लगते तो उनकी गेंदबाजी कमजोर हो जाती। इस चक्कर में वो कही के नहीं रहतें ।
– एक बार निश्चय कर लिया कि मुझे ये करना है तो करना है चाहे उसके लिए कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े? रात-दिन एक कर दे जब तक की आप ने जिस मुकाम पर जाने की सोच रखें है वहां तक पहुचँ नहीं जाते।
– हो सकता है आपके निर्णय में आपके अपने नाराज हो जाए, आपके जीवन में नया तूफान खड़ा हो जाए। कोई बात नहीं समय अनुकूल होते ही सब कुछ सामान्य हो जाता है।
– सफलता मिलने पर लोग साथ जुड़ जायेगें। बस आप बगुले की तरह अपने लक्ष्य पर ध्यान लगा के रखें।
– धरती पर किसी को भी बिना मेहनत के सफलता नहीं मिलती लेकिन वो सही दिशा में हो तो फिर हमे कोई नहीं रोक सकता।
– आप अपना सर्वोत्तम देने की कोशिश करें जितना आप में है। बाकी ऊपर वाले पर छोड़ दें।
– याद रखें मेहनत कभी बेकार नही होती वो अपना फल देकर ही जाती है तो फिर डरना क्यों? बस जुट जाए एक निश्चित पथ पर शुरू करने के लिए जो आपके मन माफिक हो।