असली आतंकवादी वे हैं
जो पहचान छुपाते हैं
– डॉ. दीपक आचार्य
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आजकल पूरी दुनिया में आतंकवाद और आतंकवादी शद सर्वाधिक चर्चित है। आतंक अपने आप में हिंसा और ताण्डव का पर्याय है चाहे वह देश की सुरक्षा से जुड़ा हो, चाहे समाज की अस्मिता से, अथवा मानवीय सभ्यता से।शस्त्रास्त्रों वाले आतंकवादियों की ही तरह हमारे बीच भी आतंकवादियों की ऐसी फसलें उग आई हैं जो गाजर घास की तरह हर तरफ पसर गई हैं। इनमें से ही एक किस्म बौद्घिक और खुराफाती आतंकवादियों के रूप में हमारे बीच है। इन लोगों का ज्ञान या शिक्षा, समाज या संस्कार, कल्याण और रचनात्मकता से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि एक जगह का कचरा उठाकर दूसरी जगह डालना, वैचारिक गंदगी और धुँए से भरा दमघोटू माहौल पैदा करना और समुदाय को किसी न किसी प्रकार तंग करना इनके मौलिक स्वभाव का अहम हिस्सा बन चला है।चर्चा आम आदमी से लेकर समाज और समुदाय, परिवेश और अपने इलाके की हो, या फिर और कहीं की, हर तरफ आजकल ऐसे लोगों की भरमार है जो छिप कर वार करते हैं, अपनी पहचान को सायास छिपाये रखते हुए औरों को तंग करने के सारे हथकण्डों को आजमाते हैं और अपने मामूली फायदे के लिए औरों का कितना ही बड़ा नुकसान कर लिया करते हैं। इनमें वे लोग भी हो सकते हैं जिन्हें भगवान ने बुद्घि कौशल से नवा$जा जरूर है लेकिन वे मार्ग भटक गए हैं और इसका गलत इस्तेमाल करने में रम गए हैं।अपनी पहचान छिपाने वाले लोग हालांकि हर युग में रहे हैं लेकिन मौजूदा संचार क्रांति युग में इनकी खूब भरमार है। इन्हीं में वे लोग शामिल हैं जो अफवाही और छद्मनामी लेखक हैं। अपनी बात को औंरों के सामने जबरन परोसने और समाज में नकारात्मकता फैलाने में माहिर ये लोग हर कहीं घुसपैठ किए हुए हैं।
यों देखा जाए तो ऐसे कायर लोग किसी न किसी प्रकार के अपराध बोध और नकारात्मक मानसिकता से इस कदर भरे हुए होते हैं कि अपने खुद के नाम से कुछ करने का साहस इनमें मरते दम तक पैदा नहीं हो पाता और यही कारण है कि ये फर्जी नामों, फर्जी आईडी और रूपान्तरित या छद्म नामों से विचार उगलते और फेंकते रहते हैं।आजकल फेसबुक और दूसरी सोशल साईट्स पर फर्जी आईडी, फर्जी फोटो और नामों से काम करने वाले लोगों की भरमार है जो अपनी पहचान को प्रकाशित कर पाने का न साहस रखते हैं और न ही लोगों से न$जरें मिला पाने की स्थिति में हैं।असल में देखा जाए तो ये लोग जिन्दगी भर उस अपराधी की भांति रहते हैं जिन्हें कोर्ट में पेश करने से पूर्व तक काले नकाब में रखा जाता है या कि फांसी देने से पूर्व मुजरिम का चेहरा काले नकाब से ढंक दिया जाता है। ऐसे लोग काले कारनामों और करतूतों के पर्याय होते हैं और जो कुछ काम करते हैं वे सारे के सारे पीछे से करते हैं, छिप कर करते हैं और अपनी पहचान छुपाए रखते हैं।जो लोग अपनी पहचान छिपाते हैं वे चाहे कितने ही बड़े या प्रतिष्ठित यों न हों, ये लोग मनोमालिन्य भरे होते हैं और इनका पूरा व्यक्तित्व आपराधिक मानसिकता से भरा होता है। वास्तव में देखा जाए तो ये ही वे लोग हैं जो समाज के लिए आतंकवादी हैं योंकि पहचान छिपाना आदमी की नहीं बल्कि चोर-डकैतों और अपराधियों की पहली निशानी है।ऐसे छिपे हुए लोग किस समय कौनसी हरकत कर दें और घर-परिवारों से लेकर समाज या देश की शांति भंग कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। पहचान छिपाने वाले ऐसे अपराधियों से समाज को मुक्त करना हम सभी का दायित्व है।आज की स्थिति में समुदाय के लिए सर्वाधिक घातक वे लोग हैं जो अपनी पहचान छिपाने के आदी हैं, पीठ पीछे वार करते हैं, छद्म नामों से व्यवहार करते हैं, दूसरों के नामों और कँधों का इस्तेमाल करते हैं और अपना दिमागी कचरा सार्वजनिक स्थलों पर उण्डेलते रहने में आनंद का अनुभव करते हैं।