गाजियाबाद । मुसलमानों के जज्बातों से खेलना ओवैसी की पुरानी आदत है। वह ऐसा कोई भी मौका चूकना नहीं चाहते जिससे उनकी सियासत मजबूत होती हो और वास्तव में मुसलमानों के जज्बात ही उनकी सियासत का वह मजबूत पायदान है जिस पर खड़े होकर वह हर वह असंवैधानिक और गैरकानूनी कार्य करने का साहस दिखा देते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। भारत की एकता और अखंडता के लिए कभी समर्पित होने का भाव तो कभी भारत को तोड़ने वाली शक्तियों को मजबूत करने के लिए सियासत दांव , कुछ ऐसी ही हरकतों की धूप छांव से खेलने वाले ओवैसी ने अब फिर कुछ ऐसी ही एक नई बहस को जन्म दिया है।
मोहन भागवत ने अभी अपने एक बयान में कहा था कि दुनियाभर में भारतीय मुसलमान सबसे ज्यादा खुश हैं। इसपर सोशल मीडिया सहित राजनीतिक गलियारों में भी बहस छिड़ गई है। ओवैसी ने भागवत पर हमला करते हुए कहा कि हमें कोई हिंदी नहीं बताएगा कि हम कितना खुश हैं और बहुसंख्यकों के प्रति कितना आभारी होना चाहिए ?
ओवैसी के बिगड़ते हुए इन बोलों के बारे में अब उन्हें कौन समझाए कि हिंदी केवल हिंदू ही नहीं है बल्कि भारत का अर्थात हिंदुस्तान का हर मुसलमान भी ‘हिंदी’ है जिसे विदेशों में इसी नाम से जाना जाता है।
कभी इकबाल ने भी जब यह कहा था कि ‘हिंदी हैं हम वतन है’…. तो उसमें भी उन्होंने सभी मुसलमानों को ‘हिंदी’ ही कहा था । पर अब लगता है ओवैसी के जमाने में ‘हिंदी’ की परिभाषा कुछ दूसरी हो गई है। हालांकि हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अपने आप को ‘हिंदी’ बताने वाले इकबाल भी बाद में देश विरोधी लोगों के साथ चले गए थे। ऐसे में ओवैसी के बिगड़े बोलों का भविष्य क्या होगा ? – इस पर अब सरकारों को सोचना ही चाहिए।
माना कि मोहन भागवत उन्हें कुछ नहीं बता या समझा सकते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि ओवैसी हिंदुस्तान को ‘हिंदी’ की परिभाषा बताएंगे? कानून को और देश की व्यवस्था को ओवैसी को भी यह बता देना चाहिए कि वह भी इस देश की व्यवस्था को चुनौती देने या देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा करने के विषय में सोच भी नहीं सकते हैं ?
उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह 1947 का भारत नहीं है , यह तो 2020 का भारत है जो किसी दूसरे जिन्ना को पैदा नहीं होने देना चाहेगा।
जहां तक देश के मुसलमानों की बात है तो ऐसे कई विद्वान और निष्पक्ष मुस्लिम हैं जो यह स्वीकार करते हैं कि दुनिया भर के सभी मुसलमानों से अधिक संतुष्ट और खुश भारत का मुसलमान हैं ।क्योंकि यहां पर रहकर उन्हें वे सारे संवैधानिक और मौलिक अधिकार प्राप्त हैं जो किसी मुस्लिम देश में भी आम आदमी को प्राप्त नहीं है।
ओवैसी ने कहा, ‘मैं यह नहीं सुनना चाहता कि कोई कहे, हमारी भूमि पर रहने के लिए ही हमें बहुसंख्यकों का अहसान लेना होगा। हम बहुसंख्यकों की साख के लिए काम नहीं कर रहे। हम दुनियाभर के मुस्लिमों से कंपटीशन भी नहीं कर रहे हैं। हम केवल अपने मौलिक अधिकार मांगते हैं।’
ओवैसी के इस वक्तव्य पर ‘गंगा जमुनी तहजीब: की मूर्खतापूर्ण कल्पना करने वाले लोगों को सामने आना चाहिए । क्योंकि इसमें सीधे-सीधे भारत में हिंदू मुसलमानों के साथ साथ रहने के भाव को चुनौती दी गई है , जो भारत की सामासिक संस्कृति के विपरीत है । यहां पर हम यह भी कहना चाहेंगे कि भारत में धर्मनिरपेक्षता केवल इसलिए जीवित है कि यहां का प्रत्येक हिंदू अपने आपमें पंथनिरपेक्षता के भाव को अपनाकर चलता है । उसे किसी भी मुसलमान के नमाज पढ़ने पर कोई आपत्ति नहीं होती । बस, आपत्ति तो एक बात पर होती है जब लोग ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का समर्थन करते हैं या देश तोड़ने की बातों में संलिप्त पाए जाते हैं । यदि इस ‘पापवृत्ति’ के विरुद्ध बोलना एक ‘अपराध’ है तो ओवैसी को समझ लेना चाहिए कि अब ऐसे अपराध को इस देश में बार बार किया जाता रहेगा।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मोहन भागवत द्वारा जो कुछ भी कहा गया उसमें उन्होंने यह भी कहा है कि जब भारतीयता की बात आती है तो सभी धर्मों के लोग साथ खड़े हो जाते हैं और केवल वे ही लोग अलगाव पैदा करते हैं जो कि स्वार्थी हैं और खुद के हित के लिए जीते हैं। वास्तव में आरएसएस प्रमुख द्वारा दिए गए इस बयान में पूर्णतया सच्चाई छुपी है । इतना ही नहीं, उन्होंने भारत के अल्पसंख्यकों पर भी भारतीयता के संदर्भ में पूरा भरोसा व्यक्त किया है। जिससे स्पष्ट है कि उनके वक्तव्य में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे अनुचित कहा जा सके। वह तो भारत के अल्पसंख्यकों को राष्ट्र की मुख्यधारा में स्वाभाविक रूप से चलते रहने वाला मानते हैं। इस पर भी ओवैसी यदि कहीं अनावश्यक ही भड़क रहे हैं तो निश्चय ही वह मोहन भागवत के बयान को लेकर अनुचित, अतार्किक और देशविरोधी मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए अपनी राजनीति कर रहे हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत