दिनेश चंद्र त्यागी
स्वतंत्र भारत में प्रथम कांग्रेस शासन द्वारा पुन: सोमनाथ मंदिर निर्माण
केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सर्वानुमति से मुसल मान आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त सोमनाथ मंदिर का निर्माण कुछ कट्टरपंथियों के विरोध की उपेक्षा करके किया गया। विरोध करने वालों को सरदार पटेल ने दो टूक चेतावनी दी कि जो अभी भी आक्रमणकारी मुस्लिम आक्रांताओं पर गौरव करते हैं, उनके कार्यों का समर्थन करते हैं, उनके लिए पाकिस्तान बन चुका है, वहां चले जाएं।
सरदार पटेल द्वारा मुस्लिमों को चुनौती
स्वतंत्रता के बाद भारत की संविधान सभा में 28 अगस्त 1947 को सरदार पटेल ने दो टूक शब्दों में कहा था भारत का नया राष्ट्र किसी भी प्रकार की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों को सहन नही करेगा। यदि फिर वही मार्ग अपनाया जाता है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ तो जो लोग पुन: विभाजन करना चाहते हैं और फूट के बीज बोना चाहते हैं उनके लिए यहां कोई स्थान नही होगा।
किंतु अब मैं देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को पुन: अपनाया जा रहा है जो उस समय अपनायी गयी थी, जब देश में पृथक निर्वाचन मण्डलों की पद्घति लागू की गयी थी। मुस्लिम लीग के वक्ताओं की वाणी में मिठास होने पर भी अपनाये गये उपायों में विष की भरपूर मात्रा है, सबसे बाद के वक्ता नजरूद्दीन अहमद ने कहा कि यदि हम छोटे भाई का संशोधन स्वीकार नही करेंगे तो हम उसके प्यार को गंवा देंगे। (संशोधन यह था कि देश में स्थानों के आरक्षण वाली संयुक्त निर्वाचन प्रणाली को अपनाया जाना है तो आरक्षित स्थान में खड़े होने वाले प्रत्याशियों को जीतने के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे अपने समुदाय के सदस्यों के लिए कम से कम 30 प्रतिशत मत प्राप्त करें।)
सरदार ने कहा मैं ऐसे छोटे भाई का प्यार गंवाने के लिए तैयार हूं अन्यथा बड़े भाई की मृत्यु हो सकती है। आपको अपनी दृष्टिï में परिवर्तन करना चाहिए स्वयं को बदली हुई परिस्थिति के अनुकूल ढालना चाहिए यह बहाना बनाने से काम नही चलेगा कि हमारा तो आपसे घना प्यार है। हमने आपका प्यार देख लिया है। अब इसकी चर्चा छोड़िए। आईए हम वास्तविकताओं का सामना करें। प्रश्न यह है कि आप वास्तव में हमसे सहयोग करना चाहते हैं या तोड़फोड़ की चालें चलना चाहते हैं।
मैं आपसे हृदय परिवर्तन का अनुरोध करता हूं। कोरी बातों से काम नही चलेगा। उससे कोई लाभ नही होगा।
आप अपनी प्रवृत्ति पर फिर से विचार करें। यदि आप सोचते हैं कि उससे आपका लाभ होगा तो यह आपकी भूल है।
मेरा आपसे अनुरोध है कि आप बीती को बिसार दें, आगे की सुध लें। आपको मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गयी है और स्मरण रखिए कि आप ही लोग पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं तथा पाकिस्तान के वासी नही हैं। आप लोग आंदोलन के अगुवा हैं। अब आप क्या समझते हैं? हम नही चाहते हैं कि देश का पुनर्विभाजन हो।
मुसलमानों से वफादारी की आशा करना मूर्खता है-नेहरू
मद्रास में पंडित नेहरू ने भाषण देते हुए कहा भारतीय मुसलमानों के मन और आत्मा पर इस समय बड़ा संकट आ पड़ा है। उनसे वफादारी की आशा करना मूर्खता है। यदि भारतीय मुसलमान मुस्लिम लीग के पुराने सिद्घांतों पर विश्वास रखते हैं तो उनकी मातृभूमि और पितृभूमि पाकिस्तान है भारत नही। क्या हम अपनी सांस्कृतिक संस्थाओं को इसलिए धक्का देंगे कि मद्रास के कुछ मुस्लिम लीगी उन्हें नही चाहते। ऐसा व्यक्ति जितना जल्दी निकल जाए, उतना अच्छा।
पं. रविशंकर शुक्ला मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के विचार
22 अप्रैल 1948 को पं. रविशंकर शुक्ल ने रायपुर की एक सभा में कहा हिंदुस्थान के मुसलमान अपने को मुसलमान कहना छोड़ दें। मेरे कहने का तात्पर्य यह नही है कि वे अपना मजहब छोड़ दें, पर यह है कि वे अपनी मनोवृत्ति छोड़ दें। अपने इतिहास में मुस्लिम लीग व पाकिस्तान इन शब्दों को स्थान न दें।
पं. गोविंद बल्लभ पंत ने लीगियों को चुनौती दी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पं. बल्लभ पंत ने 3 नवंबर 1947 को उत्तर प्रदेश की विधानसभा में लीगी सदस्यों को चेतावनी देते हुए कहा कि द्विराष्ट्रवाद के सिद्घांतों को मानने वालों का भारत में कोई स्थान नही है। उन्हें अब यह समझ लेना चाहिए कि यदि उन्होंने कभी सिर उठाने का प्रयास किया तो उन्हें निर्दयतापूर्वक कुचल दिया जाएगा। वे या तो भारत के प्रति वफादार बनें या अन्य लीगी नेताओं के समान भारत छोड़ दें। उन्हेंाने लीगियों से प्रश्न किया कि उस संस्था के सदस्य रहते हुए जिसका अध्यक्ष और मुख्यालय पाकिस्तान में है, वे भारत के प्रति वफादार कैसे हो सकते हैं।
पंत जी ने अखण्ड भारत हेतु प्रयासों का समर्थन करते हुए कहा कि भारत की जनता और कांग्रेस संपूर्ण देश को स्वतंत्रता के लिए लड़ रही थी पर भारत एक न रह सका। परंतु इस स्थिति में भी यदि लोग साहस व सूझबूझ से काम लेंगे तो जो खोया है उसे पुन: प्राप्त किया जा सकता है। पाकिस्तान में चाहे कोई भी कानून बने परंतु इस देश की जनता सदैव अखण्ड भारत के सपने को साकार करने का प्रयास करती रहेगी।
मुस्लिम तुष्टीकरण करके नेहरू भी पछताए
नेहरू जी को भी लगा कि यदि हम मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर न चले होते तो मुसलमानों को इस देश की सांस्कृतिक धारा से जोड़ा गया होता और देश का विभाजन न हुआ होता। तभी तो उन्होंने 24 जनवरी 1948 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुस्लिम छात्रों को संबोधित करते हुए-कहा मैंने कहा है कि मैं अपनी परंपरा और पूर्वजों पर गर्व करता हूं जिन्होंने भारत को बौद्घिक व सांस्कृतिक श्रेष्ठता प्रदान करवायी है, पर आप लोग उस भूतकाल के बारे में क्या सोचते हैं? क्या आपको ऐसा नही लगता कि आप भी उस विरासत के भागीदार हैं जो उतनी ही आपकी है जितनी कि मेरी। या आप अपने को उससे कटा हुआ पाते हैं और उस अनोखी पुलक से अपने आपको वंचित पाते हैं जो इस भावना में से आती है कि हम इस विरासत के अधिकारी व न्यासी हैं? आप मुसलमान हैं, मैं हिंदू हूं।
हम लोगों के अलग अलग मजहब हो सकते हैं या ऐसा भी हो सकता है कि किसी का कोई भी मजहब न हो किंतु उस कारण से हम उस सांस्कृतिक विरासत से वंचित नही हो जाते जो उतनी ही आपकी भी है जितनी कि मेरी।