अश्लील साहित्य नैतिकता को लील रहा है
साहित्य तथा पत्र पत्रिकाओं के नाम पर आजकल देश में गंदी और अपराधों की प्रेरणा देने वाली भोंडी सामग्री का बोलबाला होता जा रहा है।
राजधानी दिल्ली से लेकर मुंबई, कोलकाता, मद्रास, चण्डीगढ़, लखनऊ, भोपाल तथा जयपुर जैसे बड़े नगरों में अश्लील तथा अपराधों की ओर प्रवृत्त करने वाली पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएं धड़ल्ले से बेचने अथवा किराये पर देने का धंधा करते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार कुछ वर्षों से स्कूल कॉलेजों के छात्र छात्राएं ऐसी पुस्तकों एवं पत्र पत्रिकाओं की ओर तेजी से उन्मुख होते जा रहे हैं। कुछ पत्र पत्रिकाएं तो सैक्स के नाम पर अत्यंत कामुक तथा अश्लील सामग्री का प्रकाशन करती ही हैं। अश्लील साहित्य विरोधी कानून के बावजूद इन पत्र पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में नग्न अथवा अर्ध नग्न चित्र, बलात्कार एवं प्रेम की झूठी सच्चाई घटनाएं अत्यंत भोंडेपन के साथ प्रकाशित की जाती हैं। इनमें उत्तेजनात्मक चित्र भी छपते हैं। टाइटिल पर ही उत्तेजक वाक्य अंकित रहते हैं। इससे पाठक सहज ही इनकी ओर आकष्रित होकर, चौगुने मूल्य के बावजूद इन्हें खरीदते हैं।
हमारे देश में विदेशों से भी अश्लील साहित्य तथा अपराधों को प्रोत्साहन देने वाली जासूसी पुस्तकें चोरी छिपे मंगाई जाती हैं। इस प्रकार के साहित्य के साथ साथ अश्लील ब्लू फिल्में भी धड़ल्ले से मंगाई जाती हैं। विदेशों से लाई जाने वाली इन अश्लील पुस्तकों का देश में चोरी छिपे पुन: प्रकाशन भी किया जाता है। इस प्रकार यह चोरी छिपे आयतित अश्लील साहित्य भी हमारी युवा पीढ़ी को भ्रष्टï करने में योग दे रहा है।
पिछले दिनों पंजाब के विभिन्न नगरों में अश्लील पंजाबी गीतों के तेजी से बढ़ते प्रचलन तथा पुस्तिकाओं के प्रकाशन पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी थी। ऐसे अश्लील गीतों के कारण जब पंजाब के कुछ गांवों में हिंसक वारदातें हुई तो पंजाब सरकार ने इन पर कानूनी प्रतिबंध लगाया। पंजाब की कुद ग्राम पंचायतों ने तो अश्लील गीतों वाले समारोहों पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
इसी प्रकार अंतर्राष्टï्रीय महिला वर्ष के अंतर्गत पत्र पत्रिकाओं में महिलाओं के नग्न तथा अश्लील चित्र प्रकाशित किये जाने पर रोक लगाने की मांग की गयी थी। गत दिनों किये गये सर्वेक्षण के अनुसार संगीन अपराधों में संलग्न अनेक युवकों ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने डकैती, लूटमार की प्रेरणा अश्लील पुस्तकों से प्राप्त की। अधिकांश जासूसी उपन्यास निम्न स्तर के ही होते हैं।
गत दिनों बदायूं में कार्यरत मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी श्री दिनेश मोहन आर्य ने अपने अनेक वर्षों के अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा था अश्लील तथा आपराधिक सामग्री वाली पुस्तकें तथा पत्र पत्रिकाओं प्राय: युवकों तथा बालकों के मन पर गलत प्रभाव अवश्य छोड़ती है। अनेक अपराधियों ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें अपराध की प्रेरणा ऐसी पुस्तकें पढ़कर मिली।
अश्लील तथा आपराधिक साहित्य के विरूद्घ हमारे समाज में समय समय पर आवाज उठाई जाती रही है। वयोवृद्घ साहित्यकार तथा पत्रकार पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने तो किसी जमाने में अश्लील साहित्य के विरूद्घ एक अभियान ही शुरू किया था जिसे साहित्य क्षेत्र में घासलेटी साहित्य विरोधी अभियान की संज्ञा दी गयी थी। चतुर्वेदी जी ने उस समय कुछ लेखकों की कहानियों तथा लेखों में आने वाले अश्लील कथानक एवं भावना को भारतीय समाज की गरिमा के विपरीत बताया था। उस समय देश के अनेक शीर्षस्थ साहित्यकारों ने तो चतुर्वेदी जी के इस अभियान का समर्थन किया ही था, गांधीजी तक ने साहितय में पवित्रता शीर्षक लेख लिखकर साहित्य को अश्लीलता से सर्वथा मुक्त किये जाने पर बल दिया था।
अश्लील साहित्य की रोकथाम के लिए सरकार समय समय पर पग उठाती रही है। अश्लील साहित्य बेचने या प्रकाशित करने वालों के यहां छापे मारकर भारी मात्रा में पुस्तकें व पत्र पत्रिकाओं बरामद भी की जाती रही हैं। परंतु कानून की अनेक खामियों के कारण वे बच निकलने में सफल होते हैं। दिल्ली, बंबई, चंडीगढ़, कलकत्ता, आगरा आदि नगरों में समय समय पर अश्लील साहित्य तथा अन्य सामग्री बरामद की जाती रही है। परंतु ऐसे साहित्य में कमी नजर नही आती, बल्कि इसका प्रसार बढ़ रहा है।
अब तो रही सही कसर दूरदर्शन के सीरियल पूरी करने में होड़ लगाने लगे हैं। अत्यंत कामुक व अश्लील दृश्य छोटे परदे पर प्रस्तुत किये जाने लगे हैं। शारीरिक वासना व स्वच्छंद सैक्स के दृश्यों को प्रेम की आड़ में पेश किया जाने लगा। चचेरी, ममेरी, फुफेरी बहनों को वासना के दुष्चक्र में फंसाकर भाग ले जाने वालों को प्रेमी के रूप में चित्रित किया जाता है।
सौंदर्य प्रतियोगिता व फैशन शो की आड़ में युवतियों को ज्यादा से ज्यादा वस्त्रहीन प्रदर्शित कर युवा पीढ़ी का चरित्र बिगाड़ने में कोई संकोच नही रह गया है।
स्तरीय उपन्यासों में भी कुछ लेखक कथानकों के माध्यम से अश्लीलता अथवा अति सैक्स समावेश कर देते हैं। ऐसा करने का उद्देश्य पाठकों को आकर्षित करना होता है। उपन्यासों एवं अन्य विधाओं की पुस्तकों को अश्लीलता से मुक्त करने की दिशा में बुद्घिजीवी चाहें तो प्रभावी भूमिका अदा कर सकते हैं।