( मित्र गण ध्यान दें , यहाँ केवल संकेत हैं . पुस्तक में विस्तार होगा यद्यपि वह भी संक्षेप ही होगा क्योंकि वैसे तो कई हज़ार पन्ने हो जायेंगे और लोग पढ़ते नहीं )
६१..एक बार दुहरा लें :
क . कम्पनी के मामूली लोग व्यापार की सेवा के लिए आये और हिन्दू मुस्लिम लड़ाइयों में नीचतम लोगों को साध कर कई जगह कुछ जागीर बना ली , बाकी जागीरदारों से संधि की .
ख . वे किसी राष्ट्र के प्रतिनिधि नहीं थे क्योंकि तब तक इंग्लैंड एक राष्ट्र बना नहीं था ,बनने की प्रक्रिया में था .
ग. यहाँ के मुलाज़िमों से अधिकाँश मालिक लन्दन में आशंकित रहते थे पर लूट का माल पाकर चुप रह जाते थे .
घ . अंग्रेजों का बड़ा वर्ग इन कम्पनी वालों का विरोधी था ,कोई जलता था ,कोई अनैतिक मानता था ,कोई अनिष्ट कारी मानता था .
च . तत्कालीन अंग्रेज अत्यंत कलह रत समूहों में बंटे थे . हिन्दू समाज उस से लाख गुना संगठित था व है . .
छ. मुट्ठी भर लोग अपने काम को पुरे समाज का काम बताएं ,यह वहां चल रहा था और इन सब तथाकथित समाज वालों में परस्पर खुनी लड़ाइयाँ जम कर होती थीं . भारत की यह भाषा नहीं थी , अब भारत में भी यह भाषा हो गयी है
६२ . काम करते हैं मुट्ठी भर प्रचंड पुरुषार्थी अपने २ क्षेत्र में . पहले उसे धर्म अधर्म की कसौटी पर कसते थे , अब समाज और राष्ट्र बोलते हैं , यह मिथ्या प्रतिनिधित्व का सिद्धांत है जिसका सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं है .
६३. २० राज्यों में बंटा था इंग्लैंड जो वर्तमान उत्तरप्रदेश का एक तिहाई से कम था अतः भारत का ३०० राज्यों में बंटा होना इंग्लैंड के जैसा ही था , संगठन के अभाव का रोना निपट अज्ञान है .
६४ . उस समय भारत में कोई चक्रवर्ती सम्राट नहीं थे ,बस इतनी सी कमी थी . इसे सम्यक रूप में देखना चाहिए .
६५ . इस दशा का मुख्य कारण भारतीयों के एक बड़े प्रभावी समूह का असीमित भोग और क्रूरतम कर्मों के आकर्षण में इस्लाम अपना लेना था (यह राक्षस होने की परंपरा में समझना उचित होगा ).
६६ . अतः समस्या पुन्य के क्षय और पापकर्म राजपुरुषों की भयावह वृद्धि है
६७ . इसे समाज के दोष की तरह प्रचारित करने वालों ने मुख्य अपराधियों और पापियों की अद्भुत सेवा की , जाने या अनजाने .दोषी को चिन्हित करने की जगह भीड़ को दोषी बनाने जैसा काम है यह .
६८ . कंपनी के मर्भुक्खे बहुत लूट कर ले गए ,बहुत लूट कर ले गए पर देश की वास्तविक सम्पदा का वह शतांश भी नहीं था
६९. कंपनी वालों ने छल बल से जो हथियाया , उसे तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने कतिपय भारतीय राजाओं रानियों से संधि कर छल से हड़प लिया , यह उस समाज की आपसी फूट का प्रमाण है .
७०. इंग्लैंड की महारानी ने अनेक भारतीय राजाओं से अलग अलग संधि की और उनके पूर्ण सहयोग से कम्पनी का क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया .
७१. ये वही महारानी थीं जो लुटेरों और डकैतों से बाकायदे संधि कर माल के बदले में उन्हें सर ,लार्ड आदि उपाधियाँ सहर्ष देती थीं ,यह सर्व विदित तथ्य है ।
( साभार )प्रस्तुति-श्रीनिवास आर्य