चरक संहिता अौर आधुनिक विज्ञान
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(लेखक आयुर्वेद के जानकार और पूर्व आईएएस अधिकारी हैं।)
सोशल मीडिया में स्वयंभू विशेषज्ञों का बहुत बड़ा जमावड़ा लगा रहता है। आयुर्वेद भी इससे अछूता नहीं है। इन्टरनेट में आयुर्वेद के एक्सपट्र्स और उनके नुस्खों का बोलबाला है। जन-सामान्य भी इन्टरनेट में खोजबीन कर इसी ज्ञान से अपना काम चलाने की कोशिश करते हैं। पर यह एक प्रमाणित तथ्य है कि सोशल मीडिया एक ऐसा स्थान है जहां विशेषज्ञ अपनी बात तो कहते हैं, पर उससे कई गुना अधिक छद्म-विशेषज्ञों द्वारा शाब्दिक व बुद्धि-विलासी कचरा फेंका जाता है। खान-पान के विषय में तो छद्म-विशेषज्ञों की भरमार है।
रोजमर्रा के जीवन में उपयोगी द्रव्यों के बारे में आयुर्वेद के मूल ग्रन्थों में उपलब्ध प्रामाणिक जानकारी बहुत उपयोगी हो सकती है। हितकारी खान-पान के बारे में सबसे प्रामाणिक जानकारी आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व रचित चरकसंहिता से प्राप्त होती है। तत्समय के ऐसे कथन जो आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से भी खरे हैं, उनका संकलन और उपयोग हमारी दिनचर्या में उपयोगी हो सकता है। ज्ञान के इसी प्रमाणिक विशाल भण्डार में से कुछ चयनित जानकारी यहां दी गयी है।
प्रथम समूह में ऐसे खाद्य पदार्थ जो अपनी प्रकृति से ही हितकारी आहार हैं, उनमें शूक-धान्यों में लाल-चावल या लोहितशालि सबसे पथ्यकारी है। शमी-धान्यों में मूंग, विविध स्रोतों से प्राप्त जल में वर्षा का जल, नमकों में सेंधा नमक, शाकों में जीवन्ती का शाक, घी में गाय का घी, दूध में गाय का दूध, तेल में तिल का तेल, कन्दों में अदरक, फलों में द्राक्षा या किशमिश और गन्ने के रस से बनी विविध द्रव्यों में ईख-शर्करा भोज्य पदार्थों में श्रेष्ठतम व हितकारी माने गये हैं (च.सू. 25.38, चयनित अंश), लोहितशालय: शूकधान्यानां पथ्यतमत्वे श्रेष्ठतमा भवन्ति, मुद्गा: शमीधान्यानाम्, आन्तरिक्षमुदकानां, सैन्धवं लवणानां, जीवन्तीशाकं शाकानाम्, गव्यं सर्पि: सर्पिषां, गोक्षीरं क्षीराणां, तिलतैलं स्थावरजातानां स्नेहानां, शृङ्गवेरं कन्दानां, मृद्वीका फलानां, शर्करेक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैव हिततमानामाहारविकाराणांप्राधान्यतो द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति। तात्पर्य यह है कि यह सब स्वभाव से ही श्रेष्ठतम व हितकर पदार्थ हैं। सामान्यतया इनका सेवन लाभकारी है।
रोचकतथ्य यह है कि इन द्रव्यों पर वैज्ञानिक शोध में इनके यथावत हितकारी होने के पुख्ता प्रमाण हुये हैं। उदाहरण के लिये, रक्तशालि या लाल चावल पर 2582 शोधपत्र विश्व की प्रमुख शोध पत्रिकाओं में आज तक प्रकाशित हो चुके हैं। वैज्ञानिकों ने लाल चावल को कैंसररोधी, डायबिटीज-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीजीनोटॉक्सिक, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटीइन्फ्लेमेटोरी, एंटीडायबिटीज, एवं इम्यूनोमोड्युलेटरी पाया है। इसी प्रकार अदरक पर 3143 शोधपत्र प्रकाशित हुये हैं जिनमें अनेक बीमारियों से बचाव एवं उपचार में अदरक, और शुष्क रूप में सोंठ या शुण्ठी, की भूमिका सिद्ध हुई है।
दूसरे समूह में ऐसे पदार्थ जो हमारे भोजन का अंग तो हैं पर प्राय: अहितकारी आहार माने जाते हैं, उन पर भी रोचक वर्णन चरकसंहिता में मिलता है। इन खाद्य-पदार्थों को केवल कभी-कभार ही स्वाद की दृष्टि से भोजन में उपयोग में लेना चाहिये। इनमें शूक-धान्यों में यवक (जौ का एक प्रकार) और शमी-धान्यों में उड़द सबसे अपथ्यकर है। बरसात के दिनों में नदियों का जल, सरसों का शाक, भेड़ का घी, भेड़ का दूध, फलों में बड़हल, कंदों में आलुक, गन्ने से बने पदार्थों में राब आदि ऐसे पदार्थ हैं जो स्वभाव से अहितकर रहते हैं (च.सू. 25.39, चयनित अंश), यवका: शूकधान्यानामपथ्यतमत्वेन प्रकृष्टतमा भवन्ति, माषा: शमीधान्यानां, वर्षानादेयमुदकानाम्, सर्षपशाकं शाकानां, अविकं सर्पि: सर्पिषाम्, अविक्षीरंक्षीराणां, निकुचं फलानाम्, आलुकं कन्दानां, फाणितमिक्षुविकाराणाम्, इतिप्रकृत्यैवाहिततमानामाहारविकाराणां प्रकृष्टतमानि द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति। तात्पर्य यह है कि ये खाद्य-पदार्थ तो हैं परन्तु इन्हें स्वाद या आवश्यकतानुसार संयमित रूप से ही भोजन में शामिल करना चाहिये। इन द्रव्यों में वैज्ञानिक शोध का एक उदाहरण लेना रोचक है।
वर्षानादेयमुदकानाम् (च.सू. 25.39) के द्वारा आचार्य चरक ने स्पष्ट किया है कि बरसात के दिनों में नदियों का जल प्रकृति से ही अहितकर होता है। प्रदूषण नियंत्रण मंडलों के आंकड़े और वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर देश की नदियों के प्रदूषण पर प्रकाशित 1892 शोधपत्र एवं भारत के जल प्रदूषण पर 7172 शोधपत्र गवाह हैं कि महर्षि चरक तब तो सही थे ही, आज 3000 साल बाद तो उनका कथन हर ऋतु के लिये सही है। भारत की कोई ऐसी नदी नहीं है जो नगरीय मल-जल या औद्योगिक प्रदूषण से प्रदूषित न हो। देश में एक भी ऐसी नदी नहीं है, जिसका जल उपचार के बिना पीने योग्य बचा हो। यहाँ तक कि भारत की सबसे पूज्य और पवित्र नदी का जल भी आज समुचित उपचार के बिना पीने के पूर्णत: अयोग्य है।
इसी प्रकार औषधियों के रूप में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों और परिस्थितियों का आंकलन भी रोचक है। यहां 152 ऐसे श्रेष्ठ भावों मे से केवल कुछ चयनित उदाहरण ही दिये जा रहे हैं। इनमें शरीर में दृढ़ता लाने वाले पदार्थों में अन्न सबसे श्रेष्ठ है, धैर्य व उत्साह पैदा करने वाले पदार्थों में जल, थकान मिटाने में सुरा, जीवन देने में दूध, कफ व पित्त शांत करने में मधु,वात व पित्तनाशक में घी, शरीर में स्थिरता देने वालों में व्यायाम, आयु-स्थिर करने वालों में आंवला हितकारी, पथ्य में हरड़, रसायनों में घी और दूध का निरंतर सेवन, सुगमता से पचने में एक समय का भोजन, बलकारक में सभी रसों का भोजन में समावेश, आरोग्यदायी क्षेत्रों में मरू-भूमि, और अमृतों में आयुर्वेद श्रेष्ठ है (च.सू. 25.40, चयनित अंश), अन्नंवृत्तिकराणां श्रेष्ठम्, उदकमाश्वासकराणां, सुरा श्रमहराणां, क्षीरं जीवनीयानां, मधु श्लेष्मपित्तप्रशमनानां, सर्पिर्वातपित्तप्रशमनानां, व्यायाम: स्थैर्यकराणां, आमलकंवय: स्थापनानां, हरीतकी पथ्यानाम्, क्षीरघृताभ्यासो रसायनानां, एकाशनभोजनंसुखपरिणामकराणां, सर्वरसाभ्यासो बलकराणाम्, मरुभूमिरारोग्यदेशानाम्, आयुर्वेदोऽमृतानाम्। ऐसे ही 152 विषयों पर चरकसंहिता में उपलब्ध आंकलन में से यहां केवल कुछ ही दिये गये हैं।
वर्तमान में वैज्ञानिक शोध को समग्रता से देखने पर ज्ञात होता है कि ये कथन प्राय: सिद्ध पाये गये हैं। उदाहरण के लिये जिस हरीतकी या हरड़ को हरीतकी पथ्यानाम् (च.सू. 25.40) कहकर महर्षि चरक ने गागर में सागर भरा है, उस पर वैज्ञानिकों ने अभी तक 1000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित किये हैं, जिनमें से 86 क्लीनिकल ट्रॉयल्स भी हैं। इन अध्ययनों से ज्ञात होता है कि हरीतकी में एंटीऑक्सीडेंट, रेडियोप्रोटेक्टिव, कीमोप्रिन्टेटिव, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रोटेक्टिव, रीनोप्रोटेक्टिव, अडाप्टोजेनिक, हाइपोलिपिडमिक, हाइपोकोलेस्टेरोलिमिक, इम्यूनोमोड्युलेटरी, एंटीबेक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीटीवायरल, एंटीप्रोटोजोअल, एंटीकार्सीनोजेनिक, एंटीम्यूटाजनिक, एंटीडायबिटीज, एंटीइन्फ्लेमेटोरी, एंटीआर्थराईटिस, एंटीअनाफाइलेक्टिक, एंटीअल्सर, एंटीस्पाजमोडिक, एंटीकेरीज, एंटीअल्जीमर, एंटीएलर्जिक, उदर-विकार-रोधी आदि गुण विद्यमान हैं।
इसी प्रकार आमलकं वय: स्थापनानाम् (च.सू. 25.40) जैसे संक्षिप्त वाक्य से महर्षिचरक ने जिस आंवला के गुण गाए हैं, उस पर पिछले सौ वर्षों में 1750 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन सबसे सिद्ध हुआ है कि आंवला में एंटीऑक्सीडेंट, इम्यूनोमोड्यूलेटर, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रेटेक्टिव, रीनोप्रोटेक्टिव, एंटीडायरियल, एंटीएमेटिक, एन्टीकैंसर, एन्टीडायबेटिक, एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीहाइपरटेंसिव, न्यूरोप्रोटेक्टिव, एंटीएथीरोस्क्लीरोटिक, एन्टीवायरल, ऐन्टीप्रोलीफेरेटिव, एन्टीपायरेटिक, एनलजेसिक, एन्टीमाइक्रोबियल, एन्टीएलर्जिक, एन्टीहापरलिपिडेमिक, एंटीहाइपरथायरॉयडिज्म, एल्डोजरिडक्टेज इनहिबिटर, प्रोटीन काइनेज इनहिबिटर, गेस्ट्रोप्रोटेक्टिव, स्मृतिवर्धक, एन्टीअल्जीमर, एन्टीकेटरेक्ट आदि गुण हैं। आंवला अमृत है, जिससे कैंसर, डायबिटीज, हृदयरोग समेत कम से कम 100 रोग ठीक हो सकते हैं, या बचाव हो सकता है। आयु-आधारित रोगोत्पत्ति रोकने में आंवले को श्रेष्ठ आहार व रसायन मानने में शास्त्र व शोध एकमत हैं।
शहद पर दिया गया कथन मधु श्लेष्मपित्तप्रशमनानाम् (च.सू. 25.40) को देखने पर ज्ञात होता है कि मूलत: आयुर्वेद के इस द्रव्य पर आयुर्वेद के सन्दर्भ सहित केवल 122 शोधपत्र हैं, जबकि विश्व भर में शहद पर 23000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से 2400 से अधिक शोधपत्र शहद के औषधीय गुणों पर व 5700 से अधिक भोजन के रूप में शहद की उपयोगिता सिद्ध करते हैं।
आयुर्वेद का सुझाव है कि सामान्यतया भोजन में शालिधान्य, गेहूं, जौ, साठी चावल, हरड़, आंवला, दाख-मुनक्का, परवल, मूंग, खांड, घी, वर्षा का स्वच्छ जल, दूध, शहद, अनार, सैन्धव लवण, और आंखों की ताक़त बढ़ाने के लिये रात में मधु और घी के साथ त्रिफला आदि लिया जा सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य-रक्षा या रोग-मुक्ति के लिये जो भी उपयोगी आहार आयुर्वेदाचार्य बतायें, उसे लिया जा सकता है। अनुभव से जिन खाद्य पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य ना बिगड़े या नया रोग न खड़ा हो जाये, खाया जा सकता है।
भोजन में ऐसे द्रव्यों को भी थोड़ी मात्रा में शामिल किया जा सकता है जो आहार, रसायन और औषधि, तीनों ही प्रकारों में वर्गीकृत हैं। इनमें विविध प्रकार व रंगों के स्थानीय मौसमी फल, खजूर, द्राक्षा, मुनक्का, बादाम, तिल, आंवला, लहसुन, प्याज, सोंठ, कालीमिर्च, पिपली, हल्दी, केसर, जीरा, धनिया, शहद, गुड़, एवं त्रिफला आदि ऐसे द्रव्य हैं जिनका थोड़ा सेवन उपयोगी रहता है। भोजन के अंत में जरूरी हो तो अत्यल्प मात्रा में ही जल लेना चाहिये। वैज्ञानिकों को हाल में पता लगा है कि अत्यंत पानी पीना जहर हो सकता है और प्राण ले सकता है। विश्व की एक अगुआ जर्नल में छपी इस शोध ने जाने-अनजाने आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के निष्कर्ष को ही दोहराया है।
आंकड़े तो बहुत हैं। संहिताओं और शोध में भी प्रमाणिक ज्ञान का भण्डार है। यहां संक्षेप में हम सबके लिये सन्देश यह है कि अपने आयुर्वेदाचार्य के परामर्श से अपनी जठराग्नि की अनुकूलता, वातज, पित्तज या कफज प्रकृति, विकृति, ऋतु, काल, स्थान और रस के पैमाने पर सघन परीक्षण के पश्चात यदि आप आयुर्वेद के कथनानुसार खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं तो स्वास्थ्य और बीमारी के मध्य की पहली दीवार बड़ी मज़बूत रखी जा सकती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जीवन और मृत्यु के मध्य आहार-विहार, रसायन एवं औषधियां आयुर्वेद के तीन महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच हैं। आहार-विहार की दीवार को मत ढहाइये, क्योंकि तब रसायन और औषधियों की दीवार थोड़ी नाज़ुक हो जाती है।
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