अजय कुमार
समझ में नहीं आता है क्यों हमारे राजनीतिक दल इस ताक में बैठे रहते हैं कि विरोधी दल के राज्य में कोई गंभीर घटना घटे तो वे वहां दौड़ लगाएं? क्या इस तरह की गिद्ध राजनीति से समाज की उस मानसिकता का निदान हो जाएगा।
भगवान सब को एक समान धरती पर भेजता है। उसके ‘समाज’ में कोई छोटा-बड़ा या ऊंचा-नीच नहीं होता है। हम ही हैं जो भगवान की बनाई गई सुंदर ‘रचना’ मनुष्य के साथ छेड़छाड़ करके उसे जातियों-उपजतियों-धर्मों में बांटने का कुटिल काम करते हैं। फिर जातपात और धर्म के नाम पर लड़ते-झगड़ते हैं। यहीं से समाज में मनमुटाव और हीन भावना की शुरूआत हो जाती है। संत रविदास जिनका जन्म एक दलित परिवार में हुआ था, उन्होंने एक जगह लिखा है, ‘रविदास जन्म के कारनै, होत न कोऊ नीच। नर को नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच। यानी, जन्म के कारण कोई ऊंच-नीच नहीं होता। बुरा कर्म ही व्यक्ति को नीच बनाता है। संत रविदास की वाणी मौजूदा दौर में काफी प्रसांगिक है। आज उच्च कुल में पैदा होने वालों को गिरी हरकत करते हुए देखा जा सकता है और कथित रूप से निम्न जाति में पैदा होने वाला समाज को आइना दिखाने का काम करता है। इसीलिए 21वीं सदी के हिन्दुस्तान में जातियों का नहीं, प्रतिभाओं का सम्मान होता है, जिसके चलते समाज से जातिवाद का जहर कम होता जा रहा है। हिन्दुस्तान के भविष्य के लिए यह शुभ संदेश है कि धीरे-धीरे ही सही, समाज में फैला जातिवाद किताबों में सिमटता जा रहा है। आज का युवा जातिवाद के दायरे से बाहर निकल चुका है,लेकिन देश का यह दुर्भाग्य है की कुछ नेता, कथित बुद्धिजीवी और मीडिया के एक धड़े को किताबों में सिमटता जातिवाद रास नहीं आ रहा है। इसलिए यह लोग इसे किताबों से बाहर ‘जिंदा’ रखने में कोई कोर-कसर छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जब भी मौका मिलता है यह लोग समाज में जातिवाद का जहर घोलने से बाज नहीं आते हैं।
नेता और पत्रकार का काम समाज को आइना दिखाने का होता है। इन दोनों से अच्छा समाज सुधारक कोई हो नहीं सकता है, लेकिन यह अपना काम ईमानदारी की बजाए कठपुतली की तरह करते हैं। समाज में फैली जातिवाद की कुरीतियों को मिटाने की बजाए यह लोग इसे वोट बैंक और टीआरपी बढ़ाने का मजबूत हथियार समझते हैं। इसके चलते तमाम ऐसी खबरों और मुद्दों को अनदेखा कर दिया जाता है जिसमें मिर्च-मसाला नहीं मिलता है। इसीलिए पूरे देश में हो रहे अपराध की जगह किसी एक घटना को आधार बनाकर हो-हल्ला किया जाता है। जैसा की हाथरस कांड में हो रहा है। ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे यूपी सबसे ज्यादा अपराध वाला राज्य हो। महिलाओं के खिलाफ उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपराध का ग्राफ बढ़ा है, तो फिर और प्रदेशों में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध पर चुप्पी साध कर सिर्फ यूपी को क्यों बदनाम किया जा रहा है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश की छवि ऐसी बनाई जा रही है, मानों यह प्रदेश महिलाओं के रहने लायक ही नहीं बचा है, जबकि कांग्रेस शासित राजस्थान में महिलाओं के साथ यूपी से कहीं अधिक अपराध हो रहे हैं। कांग्रेस शासित महाराष्ट्र, झारखंड और पंजाब का भी यही हाल है, लेकिन लगता है कि राहुल-प्रियंका ने उत्तर प्रदेश को अपनी सियासी प्रयोगशाला बना लिया है। उनका हर वार योगी सरकार पर ही होता है, जबकि दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं।
उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस कांड में भी ऐसा ही हो रहा है, एक बच्ची अपनी जान से चली गई इसकी किसी को चिंता नहीं है। पूरा ध्यान इस बात पर लगा है कैसे इस कांड को अधिक से अधिक उछाल कर योगी सरकार के सामने चुनौती खड़ी की जाए। सबसे दुख की बात यह है कि पीड़ित युवती का परिवार भी ओछी सियासत के चपेटे में आ गया है। ऐसा लग रहा है जैसे हाथरस में पीड़ित युवती जो इस दुनिया में नहीं रही, को इंसाफ दिलाने के नाम पर ‘गिद्ध भोज’ चल रहा हो। कांग्रेस के राहुल-प्रियंका हों या फिर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, सब के सब अपने लाव-लश्कर के साथ सियासी मैदान में कूद पड़े हैं। जिस तरह कुछ नेता इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं, वह केवल निंदनीय ही नहीं शर्मनाक भी है। विचलित करने वाली इस घटना पर कितनी छिछोरी और सस्ती राजनीति हो सकती है, इसका उदाहरण है उन मुख्यमंत्रियों के भी नसीहत भरे बयान, जिनके अपने राज्य में ऐसी ही घटनाएं घटती रहती हैं। क्या जघन्य अपराध पर चिंता व्यक्त करने के लिए क्षुद्रता भरी राजनीति जरूरी है? क्यों कांग्रेस के गांधी परिवार को उत्तर प्रदेश में होने वाले अपराध ही नजर आते हैं। राजस्थान की बेटियों के साथ बलात्कार होता है तो क्यों गांधी परिवार वहां नहीं जाता है। महाराष्ट्र में बेटियों के साथ जो हो रहा है उससे वह क्यों आंख मूंदे हुए हैं। एक राष्ट्रीय नेता के लिए यह शोभा नहीं देता है कि वह अपने दामन के दाग को छिपाए और दूसरे के दामन पर कीचड़ उछाले। इससे अधिक दुखद क्या हो सकता है कि अब तो गांधी परिवार, योगी सरकार को घेरने के लिए साजिश तक रचने से बाज नहीं आ रहा है। वह पैसा खर्च करके तमाम राज्यों की भाजपा सरकारों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कराता है ताकि माहौल बिगाड़ा जा सके। हाथरस कांड में भी ऐसा ही होता देखा जा रहा है। एक वीडियो आडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक कांग्रेसी पीड़ित परिवार वालों को उकसा रहा है कि योगी सरकार 25 लाख दे रहे हैं, हम तुम्हें 50 लाख देंगे। इसके बदले में यह कांग्रेसी मीडिया के सामने अपनी मर्जी का बयान पीड़ित परिवार वालों से दिलाना चाह रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि हम कुछ मीडिया कर्मियों को अरेंज करके भेज रहे हैं ताकि मामले को और ज्यादा तूल दिया जा सके।
समझ में नहीं आता है क्यों हमारे राजनीतिक दल इस ताक में बैठे रहते हैं कि विरोधी दल के राज्य में कोई गंभीर घटना घटे तो वे वहां दौड़ लगाएं? क्या इस तरह की गिद्ध राजनीति से समाज की उस मानसिकता का निदान हो जाएगा, जिसके चलते कमजोर तबके हिंसा का शिकार बनाए जाते हैं? हर अपराध को सियासी जामा पहना देने के चलते अक्सर असली अपराधी छूट जाते हैं। पुलिस को उसका काम नहीं करने दिया जाता है। उसकी सही बात को भी मिर्च मसाला लगाकर पेश किया जाता है। यह सच है कि हाथरस कांड में पुलिस की भूमिका ठीकठाक नहीं रही। खासकर, पुलिस ने जिस तरह से परिवार वालों की गैर-मौजूदगी में आधी रात को युवती का अंतिम संस्कार कर दिया है, उसकी कड़ी से कडी सजा तो दोषी पुलिस वालों को मिलना ही चाहिए, लेकिन यदि योगी सरकार ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ करने के लिए पुलिस सहित सभी पक्षों का नार्को टेस्ट कराने की बात कह रही है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मृतक युवती के परिवार वाले बार-बार अपने बयान बदलेंगे तो हकीकत सामने लाने के लिए इनका भी नार्को टेस्ट कराने में कोई बुराई नहीं है। परंतु गांधी परिवार इसकी भी मुखालफत कर रहा है। युवती से मारपीट और कथित बलात्कार के आरोप में जो लड़के पकड़े गए हैं, उनके परिवार वालों का भी यही कहना है कि उनके बच्चों को पुलिस ने सियासी दबाव में गिरफ्तार कर लिया है, जबकि इस घटना से उनका कोई लेनादेना नहीं था। वैसे लोग यही कह रहे हैं कि गांधी परिवार को अपनी पोल खुल जाने का ज्यादा डर सता रहा है, इसलिए वह पीड़ित युवती के परिवार वालों का नार्को टेस्ट कराने को सियासी मुद्दा बनाए हुए है।
लब्बोलुआब यह है कि निःसंदेह हाथरस कांड की कड़ी से कड़ी भर्त्सना होनी चाहिए, लेकिन यह बताने के लिए नहीं कि उत्तर प्रदेश को छोड़कर शेष देश में दलित समुदाय का मान-सम्मान हर तरह से सुरक्षित है या फिर दुष्कर्म की घटनाएं केवल इसी प्रदेश में घट रही हैं। अपनी राजनीति चमकाने के लिए ऐसा शरारत भरा संदेश देने वालों को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखने चाहिए, जो यह बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अपराध देश के सभी हिस्सों में हो रहे हैं। इन आंकड़ों के हिसाब से राजस्थान में दलितों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हो रहे हैं। क्या यह उचित नहीं होता कि हाथरस जाने की जिद पकड़े राहुल गांधी राजस्थान का भी दौरा करने की जरूरत समझते ? दलितों के खिलाफ अपराध को दलगत राजनीति के चश्मे से देखने वाले दलित समुदाय के हितैषी नहीं हो सकते। आखिर क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन तो सबके निशाने पर है, लेकिन उस दलित और स्त्री विरोधी मानसिकता के खिलाफ मुश्किल से ही कोई आवाज सुनाई दे रही है, जो हाथरस सरीखी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है? यह सही नहीं है कि राजनीतिक दल और कुछ कथित बुद्धिजीवी अपने-अपने संकीर्ण एजेंडे के हिसाब से दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध पर सड़क पर उतरना पसंद करते हैं। इससे भी खराब बात यह है कि अब यही काम कुछ सामाजिक संगठन भी करने लगे हैं। इस तरह की भोंडी राजनीति से तो दलित समाज अपने को ठगा हुआ ही महसूस करेगा।
बात चाहे कांग्रेस की हो या फिर अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं की, मोदी-योगी से उनकी नाराजगी हो सकती है, लेकिन इसके लिए उन्हें किसी लड़की को ढाल नहीं बनाना चाहिए जो आज इस दुनिया में है ही नहीं। अगर भाजपा के नेताओं और आमजन को लगता है कि उत्तर प्रदेश में जब भी कोई घटना घटती है तो कांग्रेस में जश्न का माहौल शुरू हो जाता है तो इस धारणा को ठुकराया नहीं जा सकता है। सोनभद्र का नरसंहार हो या फिर नागरिकता सुरक्षा कानून, कोरोना महामारी के समय प्रवासी मजदूरों का पैदल घरों की तरफ कूच करना अथवा कृषि विधेयक की आड़ में किसानों को बरगलाना। तमाम ऐसे गैर-जरूरी मसले होते हैं, जिसके सहारे कांग्रेस सियासी रोटियां सेंकने की साजिश रचती रहती है।
कांग्रेस को साथ मिलता है उन देश विरोधी शक्तियों का जो मोदी-योगी, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और तमाम हिन्दू संगठनों से घृणा करते हैं। इसकी बानगी हाथरस कांड के समय भी देखने को मिली, कई मोदी विरोधियों ने मोर्चा खोल दिया। तृणमूल कांग्रेस के वह सांसद जिन्हें राज्यसभा में उपसभापति पर हमला करने के चलते सदन से निलंबित कर दिया गया था, तक उत्तर प्रदेश में आकर मोदी-योगी के खिलाफ नौटंकी करके भड़ास निकालने लगे। इसी तरह मशहूर से अधिक विवादित एवं मोदी विरोधी लेखिका तवलीन सिंह का ट्विट आया, जिसमें उन्होंने योगी सरकार पर तंज कसते हुए कहा, ‘जब कोई सरकार किसी भयानक सच्चाई से मुंह मोड़ती है तो वह एक एसआईटी का गठन कर देती है। हाथरस मामले में भी यही हुआ। जब तक एसआईटी अपनी जांच रिपोर्ट सौंपेगी, तब तक इस खौफनाक कांड की स्मृतियां धुंधली पड़ जाएंगी।’ लेकिन ज्यादा अच्छा होता यदि तवलीन सिंह ट्विट करने से पहले योगी सरकार की हाथरस कांड को लेकर की गई कार्रवाई पर नजर दौड़ा लेतीं। जब तवलीन का ट्विट आया तब तक योगी सरकार द्वारा एसआईटी के गठन के दूसरे दिन प्रथम दृष्टया रिपोर्ट के आधार पर युवती की हत्या की घटना में लचर पर्यवेक्षण के दोषी हाथरस के एसपी विक्रांत वीर व तत्कालीन सीओ राम शब्द समेत पांच पुलिसकर्मी को निलंबित किया जा चुका था और इसके एक दिन बाद मामले की सीबीआई जाँच का फैसला भी किया जा चुका था।
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