उत्तर पूर्वांचल भारत का वह क्षेत्र है जिसमें ईसाई बहुल तीन प्रदेश अस्तित्व में आ गये हैं-नागालैंड, मिजोरम व मेघालय। ये तीनों क्षेत्र पहले असम प्रदेश के अंग थे। इसके बाद ईसाई मिशनरियों का विस्तार त्रिपुरा, अरूणाचल व मणिपुर में लक्ष्यित है। पूर्वोत्तर के सात प्रदेश असम, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर के साथ सिक्किम भी ईसाई षडयंत्र का केन्द्र है। अब पड़ोसी देश नेपाल भी इस समस्या से ग्रस्त हो चुका है।
1951 में भारत में 70 लाख ईसाई थे जो अब लगभग ढाई करोड़ हो गये हैं। भारत का लगभग 66,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ईसाइयत के प्रभाव में है। गृह मंत्रालय के अनुसार 66 देशों के लगभग 3 हजार विदेशी मिशनरी भारत में कार्यरत है। लगभग दो लाख ईसाई मिशनरी चर्च के विभिन्न कार्यक्रमों व हिंदुओं के धर्मांतरण में लगे हुए हैं। धर्मांतरण करने के लिए भारत को ईसाई मिशनरियों ने 138 क्षेत्रों में बांटा हुआ है और लगभग 2 लाख हिंदुओं को प्रतिवर्ष ईसाई बनाने का जाल फैलाया हुआ है। लगभग 200 ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र हैं जहां से प्रतिवर्ष 2000 मिशनरी प्रचारक तैयार किये जाते हैं। भारत के सरकारी सूत्रों के अनुसार केवल 1980 से 1986 तक प्रतिवर्ष 200 से 448 करोड़ रूपया विदेशों से ईसाई संस्थाओं को प्राप्त हुआ है।
दलित ईसाई आरक्षण की मांग
वर्तमान में चर्च दलित ईसाइयों के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है जिससे कि हिंदू दलितों को मिल रही आरक्षण सुविधाओं का आर्थिक लाभ ईसाइयों को दिलाकर और अधिक धर्मांतरण कराया जा सके।
भारत के विघटन का षडयंत्रकारी चर्च
विश्व का चर्च अमेरिका आदि देशों के सहयोग से भारत के चार टुकड़े करना चाहता है जिससे भारत कभी महान शक्तिशाली देश न बन सके। युनाईटेड स्टेट्स ऑफ असम इन इंडिया नाम देकर ईसाई बहुल क्षेत्र बनाने का एक प्रारूप इस प्रकार है-नागालैंड (87.5 प्रतिशत ईसाई), मिजोरम (85.7 प्रतिशत ईसाई) मणिपुर (34.1 प्रतिशत ईसाई) त्रिपुरा (2 प्रतिशत ईसाई)।
सी.आई.ए. (अमेरिका गुप्तचर सेवा) ने यह योजना इसलिए बनाई जिससे अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद भी पूर्वोत्तर भारत का ईसाई बहुल उपनिवेश बना रहे। बहुत बड़ी मात्रा में शस्त्र व धन देकर नागा विद्रोह जैसी षडयंत्रकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। 1982 में त्रिपुरा में कार्यरत एक अमरीकी मिशनरी एवं इससे पूर्व असम में एक मिशनरी को अलगाववादी गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण भारत से निकाला गया।
भारत के उत्तर में नेपाल, भूटान व दार्जिलिंग
1950 में नेपाल में केवल 50 ईसाई थे जो 1950 में 35 हजार 1991 में 50 हजार व 1994 में 1 लाख 20 हजार हो गये। नेपाल के 75 जिलों में चर्च की स्थापना हो चुकी है।
मदर टेरेसा-उत्तर पूर्वांचल में लाखों हिंदुओं को ईसाई बनाने वाली विदेशी महिला मदर टेरेसा को भारत सरकार ने भारत रत्न की उपाधि प्रदान की। अन्त्येष्टि (1997) भी सरकार के पैसे से की गयी।
ईसाई मिशनरियों द्वारा किये जा रहे अत्याचार
उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या केवल इसलिए की गयी कि धर्मांतरित ईसाई पुन: हिंदू धर्म में वापिस आने लगे थे। इसके लिए लक्ष्मणानंद के सेवा कार्य को ध्वस्त किया गया। मेघालय में नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड के हथियार बंद आतंकी समूह कार्य कर रहे हैं। अरूणाचल के चांग्लोग व तिरप जिले के ईसाई आतंक से ग्रस्त है, इन जिलों को वृहत्तर नागालैंड में मिलाने की मांग की जा रही है। कोलकाता में एक ईसाई नन ने सात वर्षीय हिंदू बालिका को ईसाई न बनने पर चाकू से गोदकर मार डाला (दैनिक जागरण-30 जून 2001)। त्रिपुरा में सनातन धर्म के गुरूदेव शांति काली जी की 8 मार्च 2001 को हत्या की गयी। मिजोरम से 45 हजार रियांग जनजाति के लोगों को ईसाई न बनने पर राज्य से बाहर नि काल दिया गया। अगरतला व बैपटिस्ट चर्च का सेके्रटरी विस्फोट सामग्री के साथ गिरफ्तार हुआ (एशियन एज, 18 अप्रैल 2000) ये घटनाएं भारत व्यापी हैं। यदि समय रहते इसके निदान के उपाय नही सोचे गये तो संपूर्ण भारत किसी दिन अमेरिका व यूरोपीय देशों का चरागाह बन जाएगा। वर्तमान में 3 प्रदेश ईसाई बहुल बन चुके हैं। परंतु इन तीनों (नागालैंड, मिजोरम, मेघालय) के अतिरिक्त केरल व छत्तीसगढ़ में भी ईसाई मुख्यमंत्री बन चुके हैं। भविष्य का भारत हिंदू संचेतना तथा सांस्कृतिक गौरव के उद्घोष की सतत प्रतीक्षा कर रहा है।
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