३७. १८ वीं शताब्दी ईस्वी में भारत का व्यापार इतना विशालं था कि ईस्ट इंडिया कंपनी के दरिद्र से दीखते फुटकरिया व्यापारी किसी गिनती में नहीं थे .
३८ कहाँ सोना , चांदी,हीरे मोती ,मूंगा, पन्ना रत्नों ,, जवाहरात , सुन्दरतम सूती ,ऊनी, रेशमी वस्त्र , गुड , शकर खांड , सैकड़ों मसालों ,का बड़ी बड़ी जहाजों में चलने वाला व्यापार , कहाँ मुश्किल से काली मिर्च या कोई एक दो और मसाले के विक्रेता क्रेता अंग्रेज आदि , कौन गिनता .
३८ अंग्रेजों को तो शकर , गुड ,गन्ना ,कपास , तम्बाकू ,चाय , सूखे मेवे, काफी , , सूती वस्त्र किसी चीज की कोई जानकारी ही नहीं थी ,भारत और आसपास आकर हुयी
.न पहले सोना देखा था , अफ्रीका और अमेरिका जाकर देखा ,
न हीरे जवाहरात इतने बड़े पैमाने पर देखे थे ,बेचारे भूखे कंगले लोग .आये दिन शिकायत करते थे कि राह चलते उन्हें लोग लाल मुंह का बन्दर कहकर चिढाते हैं
३९ . यूरोप में जहाज थे ही नहीं ,मात्र डोंगियाँ थीं जिन्हें वे दोनों हाथ से छोटे चप्पुओं से चलाते थे ,.
४० जहाज यूरोपीय लोगों ने पहली बार भारत आकर देखे ,पहले भारत से पुराने जहाज लेकर गए ,फिर राजाओं से मांगकर शिल्पी भी ले गए ,फिर १९ वीं शताब्दी से नए जहाज बनवाने लगे .
४१ यह सब हजारों पुस्तकों में स्वयं युरोपियोंने लिख रखा है .जग जाहिर है पर भारत के शिक्षित इस जग से बाहर आत्म निंदा और आत्म ग्लानी में डूबे हैं .
४२ हिन्दुओं मुसलमानों की गहरी शत्रुता से आरम्भ में दोनों पक्षों ने उन्हें तुकडे फेंके क्योंकि तब तक उनकी हैसियत इतनी ही थी .
४३ विशेषतः बंगाल में मुसलमानों के अत्याचारों से कराहते हिन्दुओं ने और लगन वसूली में भी आलस कर रहे मुस्लिम नवाबों ने उनकी सेवाएँ लीं . धीरे धीरे बंगाल और मद्रास के नीचतम लोगों (यह बात ब्रिटिश संसद में कही गयी थी हेस्टिंग्स के मुक़दमे में ) को साथ लेकर कम्पनी के मुलाजिमों और भारतीय प्रबंधकों ने ( गवर्नर जनरल का अर्थ है कंपनी के महाप्रबंधक जिम्हे अंग्रेजों के दलालों ने ११९४७ के बाद भारत के गवर्नर जनरल लिखना शुरू कर दिए ,असली गुलामी कुछ लोगों ने १९४७ के बाद दिखाई,जब अंग्रेज यहाँ थे ही नहीं तो जाहिर है यह गुलामी नहीं ,देश के विरुद्ध गद्दारी है ) भेद बुद्धि से क्रमशः शक्ति अर्जित की जो उनके लिए अत्यधिक थी पर भारत के कुल धन का १ प्रतिशत भी वे नहीं ले गए .और जो ले गए ,वह बड़ी सींमा तक भारत में माल खरीदते समय देना भी पड़ा . वे मालामाल हो गए पर हम कंगाल नहीं हुए .सारा प्रचार बाद में किया गया है .
४४ भारतीय राजाओं से विनती कर अपनी सुरक्षा के नाम पर प्रहरी रख्र और उसे नाम दे दिया रॉयल बंगाल आर्मी जिसमे ८० प्रतिशत पूर्वी उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण थे ,यह स्वयं कंपनी की पुस्तिका में विस्तार से दर्ज है .अवध के नवाब को छल बल से हराकर फिर अवध के ब्राह्मण सैनिकों को अपने यहाँ रखा .
४५ अपने एक टुकडे भर कब्जे को भारत अपर कब्ज़ा दिखाना इन कंगलों की आदत थी और वही आदत इनके भारतीय वारिसों (कांग्रेस कम्युनिस्ट धड़े )की है.
४६ जिन्होंने अंग्रेजी कानून भी नहीं पढ़े ,ऐसे अल्प पठित लोगों को जज और वकील बनाकर झूठे मुकदमों का नाटक कर अत्यंत अत्याचार शुरू कर दिया जो हिन्दू मुस्लिम वैर के कारन संधि पाता गया और फैलता गया .
४७ तब भारतीय राजाओं में से कुछ ने ब्रिटिश रानी से कहा कि आप ही आ जाओ यह कंपनी वाले सम्हाल नहीं पा रहे .. इसके किये कई वर्षों तक संधियाँ होती रहीं ,कुच्छ भी अचानक नहीं हुआ.
४८ .१ नवम्बेर १८५८ को ब्रिटिश महारानी की घोषणा सर्वत्र ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र में पढ़कर सुनाई गई कि हुआ सो हुआ ,अब आज से मेरा भतीजा कर्जन भारत के ब्रिटिश क्षेत्र का पहला वायसराय होगा और हम भारत के किनही राजाओं की सीमा में तनिक भी घुसपैठ नहीं करेंगे तथा भारतीय राजाओं से हमारी अपेक्षा है कि वे भी हमारी सीमा में हस्तक्षेप न करें और हम उत्तराधिकार के मामले में राजाओं के निर्णय में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे तथा सभी religions को पूर्ण स्वाधीनता होगी।।(क्रमशः)
(साभार) प्रस्तुति -श्रीनिवास आर्य