हमेशा तैयार रहें

अनचाहे संघर्षा के लिए

– डॉ. दीपक आचार्य

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इंसान की पूरी जीवनयात्रा में संघर्ष ही संघर्ष भरे हुए होते हैं जिन्हें पार करने में ही जिन्दगी का आधे से अधिक समय गुजर जाता है। यह तय मानकर चलना चाहिए कि सत और असत का संघर्ष युगों से रहा है और दोनों प्रकार की आत्माएं हर युग में रही हैं। कलियुग में ऎसे लोगों की तादाद ज्यादा होती है और यही कारण है कि सात्ति्वकता पर हर कहीं प्रहार होते रहे हैं।

हालांकि सात्ति्वक लोगों के पास खूब सारी दैवीय शक्तियां जरूर हैं लेकिन ऎसे लोेग अपनी आत्ममुग्ध छवि बनाए और बचाये रखने भर के लिए इनका उपयोग नहीं करते हैं अथवा किसी प्रलोभन, दबाव या आशंकाओं से लेकर अपने व्यभिचारी स्वरूपजन्य अधःपतन पर परदा डालने, अपराधबोध को छिपाने और स्वार्थ में रमे रहने के कारण ये लोग चाहते हुए भी सत्य का प़क्ष नहीं ले पाते हैं। ऎसे लोग एकान्तिक चर्चा में सत्य को स्वीकार जरूर करते हैं लेकिन सार्वजनीन तौर पर इनमें सत्य को स्वीकार करने का साहस नहीं होता क्योंकि ये लोग किसी न किसी के गुलाम और अंधानुचर की तरह जिन्दगी जीना ज्यादा सुरक्षित और निरापद समझते हैं।

दूसरी ओर समाज में नैतिक और मानवीय मूल्यों का इतना अधिक क्षरण हो चुका है कि अच्छे लोगों और अच्छी बातों को लोग गले नहीं उतार पा रहे हैं और सिर्फ अपनी दैहिक-मानसिक और परिवेशीय कामनाओं के भँवर में ही फंसे हुए हैं। यही कारण है कि समाज में नकारात्मक लोगों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है और दोहरे-तिहरे चरित्र वाले मूरख, खल और कामी लोगों की चवन्नियाँ और चमड़े चल रहे हैं।

जो लोग समाज-जीवन के किसी भी क्षेत्र में हैं उन्हें अपने सार्वजनीन लौकिक कर्मों में शुचिता और ईमानदारी से काम करने की तमन्ना हो तो अपने मन-मस्तिष्क और हृदय को मजबूत रखना होगा, परिवेशीय प्रदूषणों के प्रति बेपरवाह रहना होगा तथा इस स्तर पर मानसिकता बना लेनी चाहिए कि किसी भी आकस्मिक गैर जरूरी आफत के लिए हमेशा तैयार रहें।

होता यह है कि जहाँ कालिख का साम्राज्य पसरा होता है वहाँ शुभ्रता पर निगाह एकदम जाती है और नज़र लगने का खतरा हमेशा बना रहता है। कोयले की खदानों में हीरा दूर से चमकने लगता है। इसी प्रकार शुचिता और ईमानदारी से जीने वाले लोगाें पर उन सभी लोगों की क्रूर निगाहें हमेशा लगी रहती हैं जो काले मन और घृणित सोच के होते हैं।

आजकल दूसरी सारी नज़रों से तो बचने के लिए कई टोने-टोटके हैं पर इन काले कारनामों में लिप्त और मलीन मन वाले नकारात्मक लोगों के लिए कोई टोना-टोटका नहीं बचा है सिवाय इनसे दूरी बनाये रखने के। कारण यह कि कहाँ-कहाँ, किस-किस मोर्चे पर भिड़ें, चारों ओर ऎसे ही लोगों का साम्राज्य पसरा हुआ है। और फिर ऎसे लोगों में मजबूत संगठन भी होता है। हो भी क्यों न, मुफत में माल उड़ाने मिले तो एक साथ कोई क्यों न रहे।

सज्जनों और ईमानदारी से जीवन निर्वाह करने वाले लोगों का जीवन दूसरों के मुकाबले हजार गुना अधिक मौज-मस्ती भरा होता है क्योंकि ये लोग अपने भीतरी आनंद के सागर में हर क्षण गोते लगाते रहते हैं। इन्हें ऎसे समझौते कभी नहीं करने पड़ते जिनसे इंसान की आत्मा मर जाती है। ऎसे लोग जीवन की हर परिस्थिति से दो-चार करने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि इन्हें अच्छी तरह पता होता है कि वे जिस मार्ग पर चल रहे हैं वह बिरले ही अपना सकते हैं और इस मार्ग पर कंकड़-पत्थरों से लेकर पग-पग पर स्पीड़ ब्रेकरों से सामना होना सामान्य बात है। यह मार्ग ही ऎसा है जिस पर कैंकड़ों, साँपों, लोमड़ों, गैण्डों-घड़ियालों, गिद्धों और शूकरों का नापाक हरकतों से भरा-पूरा आवागमन आम बात है।

शुचिता भरे लोग जीवन में हमेशा विजेता रहते हैं क्योंकि वे परिवेशीय एवं असुरजन्य तमाम प्रकार की समस्याओं, बाधाओं के सामने आते रहने और इनसे संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने का माद्दा रखकर ही जीवन निर्वाह की परंपरा को आगे बढ़ाते हें। अनचाहे संघर्ष इन लोगों को और अधिक मजबूत बनाते हुए जीवन लक्ष्य को आशातीत सफलता देते हैं। इसलिए जीवन में सादगी, पवित्रता और ईमानदारी अपनाने वाले लोगों को हमेशा तैयार रहना चाहिए, क्या पता कौन सा असुर जग जाए …. और जब असुरों का जागरण होता है तब कुछ तो गड़बड़ होगा ही।

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