…और हमारे नेतृत्व ने जिन्ना की रणनीति को नही समझा
प्रो. देवेन्द्र स्वरूप
संविधान सभा में पंचायत पर हुई बहस को पढ़ने के बाद अनेक भ्रम दूर हो जाते हैं। उस बहस में करीब 50 सदस्यों ने भाग लिया। वे सब स्वतंत्रता संग्राम के जाने.माने नाम हैं। यह कितनी विचित्र बात है कि संविधान सभा ने जिन समितियों के माध्यम से काम किया उन समितियों में ये लोग नहीं थे।
संविधान सभा दो धरातल पर काम कर रही थी। एकए समितियों के स्तर पर। दोए सामान्य सदस्यगण के स्तर पर। सामान्य सदस्यों की कोई भूमिका नहीं थी। संविधान जो बना उस पर सबसे बड़ा फैसला तो डॉण् भीमराव अंबेडकर ने सुनाया। वे संविधान निर्माता माने जाते हैं। वे प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने 2 सितंबरए 1953 को राज्य सभा में कहा. ष्मुझसे बार.बार कहा जाता है कि मैं संविधान का रचयिता हूं। लेकिन मैं तो भाड़े का टट्टू था। मुझे जो करने के लिए कहा जाता था उसे अपनी इच्छा के विपरीत करता था। मैं पहला व्यक्ति होऊंगा जो इस संविधान को जलाना पसंद करेगा क्योंकि यह किसी के काम का नहीं है। जहां तक संविधान सभा का प्रश्न हैए गांधीजी स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि यह संविधान सभा नहीं बुलाई जानी चाहिए। क्योंकि इसे वायसराय ने गठित किया है। जो लोग चुने गए हैं उन्हें वायसराय ने निमंत्रण भेजा है। इस तरह वह संविधान सभा ब्रिटिश सरकार की बनाई हुई थी। वह सार्वभौम कैसे हो सकती थी! यह बात गांधीजी ने लुई फिशर से कही। लेकिन हमारे नेता भावुकता में बहकर कहते थे कि यह सार्वभौम सभा है। उनके मुकाबले जिन्ना यर्थाथवादी थे। वे तय कर चुके थे कि उस संविधान सभा में शामिल नहीं होना है। उन्हें दो बातों पर भरोसा था। एकए मुस्लिम एकता। दोए हिंसा। जब कांग्रेस ने अंतरिम सरकार बनाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया तो जिन्ना ने 16 अगस्तए 1946 को सीधी कारवाई की घोषणा कर दी। जिसका मतलब था. हिंसा और कत्लेआम। हमारे नेतृत्व ने जिन्ना की रणनीति को नहीं समझा। जब 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा बैठी तो उसमें मुस्लिम लीग के सदस्य नहीं आए।
उससे छह दिन पहले गांधीजी ने एक नोट लिखा। जिसे सरदार पटेल को भेजा। यह बात 4 दिसंबरए 1946 की है। तब गांधीजी नोआखाली में थे। वह नोट उन्होंने श्रीरामपुर में लिखा था कि यह संविधान सभा तो ब्रिटिश सरकार के द्वारा बनाई गई है। यह जिन शर्तों पर बनाई गई है उसमें मुस्लिम लीगए कांग्रेस और देशी रियासतों का सम्मिलित होना आवश्यक है। अगर वे दोनों नहीं आते हैं तो संविधान सभा बनाने का कोई अर्थ नहीं है। अगर ब्रिटिश सरकार इनके बहिष्कार के बावजूद संविधान सभा बुलाना चाहती है तो उसे कांग्रेस के साथ नया समझौता करना चाहिए। इसलिए गांधीजी का कहना था कि संविधान सभा मत बुलाओ। यह केबिनेट मिशन प्लान की शर्तों को पूरा नहीं करती। गांधीजी ने 26 नवंबर 1946 को एक पत्र घनश्याम दास बिड़ला को लिखा कि अगर संविधान सभा को संगीनों के साए में बैठना है तो ऐसी संविधान सभा का न बैठना ही अच्छा है। जाहिर है कि वह संविधान सभा जिस रूप में प्रारंभ हुई और काम करना शुरू किया वह गांधीजी को स्वीकार्य नहीं था। निष्कर्ष यह है कि वह संविधान सभा न तो गांधीजी के जीवन दर्शन से जुड़ी थी और न ही उनके दूसरे उद्देश्य से जुड़ी थी। दूसरा उद्देश्य था भारत की अखंडता।
आजकल सब चीजें व्यक्ति केंद्रित हो गई हैं। हर वर्ग ने एक अपना श्रद्धा केंद्र बना लिया है। उसमें वह कोई प्रश्न खड़ा करना नहीं चाहता। वह किसी भी प्रकार के निष्पक्ष आंकलन से दूर रहना चाहता है। इसका एक ताजा उदाहरण है। पिछले दिनों एनसीईआरटी की पुस्तकों में छपे एक कार्टून पर बवाल हो गया। वह कार्टून संविधान सभा से संबंधित है। संविधान सभा के दौरान एक बार शोर मचा कि काफ ी देर हो गई है और अब तक संविधान नहीं बना है। इस पर देश के मूर्धन्य कार्टूनकार शंकर ने एक कार्टून बनाया। जिसमें संविधान सभा को घोंघा बनाया और दिखाया कि उस पर डॉ अंबेडकर बैठे हैं। डॉ अंबेडकर उस पर चाबुक चला रहे हैं। नेहरू जी पीछे खड़े हैं और वे भी घोंघे पर चाबुक चला रहे हैं। इस कार्टून का अर्थ निकाला गया कि नेहरू अंबेडकर पर चाबुक चला रहे हैं। इस पर एक कमेटी बनी। एसण्एसण् थोराट अध्यक्ष बनाए गए। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हमारे लिए शेडल्यूड कास्ट शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता हैए दलित शब्द का प्रयोग होना चाहिए। उन्होंने अंबेडकर को पढ़ा होगा फिर भी वे ऐसा कह रहे हैं। आखिर क्योंकि हमें पता है कि अंबेडकर ने तीन बार लिखित ज्ञापन में कहा था कि हमें दलित वर्ग नहीं कहना चाहिए। उन्होंने अपनी संस्था का नाम शेडल्यूड कास्टस फेडरेशन रखा।
हमें डॉ. अंबेडकर की संविधान सभा में भूमिका को समझने के लिए उनकी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है। पहली बात यह है कि जब अंतरिम सरकार बनी तो उसमें कांग्रेस ने अपनी टीम में जगजीवन राम को हरिजन प्रतिनिधि के रूप में रखा। मुस्लिम लीग जब उसमें शामिल हुई तो उसने जोगेंद्र नाथ मंडल को रखा। उस समय डॉ अंबेडकर की मन:स्थिति क्या थीए यह हम धनजय कीर की अंबेडकर की जीवनी पढ़कर समझ सकते हैं। उन्होंने लिखा कि तब वे बहुत विचलित थे। उसी अवस्था में मित्रों की सलाह पर वे इंग्लैंड गए। उन्होंने शेडयूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की तरफ से वायसराय को अनेक तार भिजवाए। जिसमें कहा गया कि जगजीवन राम नहीं डॉ अंबेडकर हमारे नेता हैं। 5 नवंबर 1946 को हाउस ऑफ कामन्स के एक कमरे में बंद मीटिंग हुई। वह अंबेडकर के शुभचिंतकों की मीटिंग थी। वहां उन्हें सलाह दी गई कि इस नई परिस्थिति में वायसराय कुछ नहीं कर सकते। इसी परिस्थिति में आपको रास्ता निकालना होगा। इस सलाह से वे देश वापस आए। उनका नया अवतार हुआ। और उसी मानसिकता में वे संविधान सभा में शामिल हुए। उन्हें कांग्रेस ने एमआर जयकर से खाली हुई सीट पर संविधान सभा के लिए चुनवाया। पहले वे मुस्लिम लीग के समर्थन से बंगाल से चुनकर आए थे। कांग्रेस ने उन्हें प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनवाया।
संविधान सभा ने हमारे दो राष्ट्रीय लक्ष्यों की उपेक्षा कर दी। जीवन दर्शन और राष्ट्रीयता। इसका कारण यह है कि वीएन राव जो संविधान सभा के सलाहकार थे वे 1935 के कानून की परिधि में ही काम कर रहे थे।
1935 का कानून 1858 से शुरू क्रमिक संवैधानिक सुधारों का नतीजा था। इस देश की मनीषा ने अपने जीवन दर्शन के लिए जो साधना की थी उससे इनका कोई नाता नहीं था। उस साधना को समझने के लिए हमें हिंद स्वराज श्री अरविंद का उत्तर पाड़ा भाषण और तिलक का गीता रहस्य समझना होगा। इनके स्वर एक हैंए दिशा एक है और दर्शन भी एक है कि कैसे भारत को राष्ट्रीयता के सूत्र में गूंथा जाए। अंग्रेजों ने तो बाटों और राज करोष् का रास्ता चुना था। अंग्रेजों ने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारतीय समाज का वर्गीकरण किया था। उसी वर्गीकरण की शब्दावली 1935 के कानून में है। जिसे हमने अपना लिया। उस शब्दावली से हिंदू समाज को बांटा गया। जैसे बेकवर्ड क्लासेसए ट्राईबल्सए शेडयूल्ड कास्ट आदि। ब्रिटिश सरकार हमेशा यह भूमिका अपनाती थी कि महात्मा गांधी केवल सवर्ण हिंदुओं के नेता हैं। उस समय के सरकारी भी दस्तावेज हैं जिनसे यह बात निकलती है। जब प्रधानमंत्री रेम्से मैगडोनाल्ड ने 17 अगस्तए 1932 को कम्युनल एवार्ड घोषित किया तो महात्मा गांधी जेल में थे। उसके विरूद्ध उन्होंने आमरण अनशन पर जाने की लिखित चेतावनी दे दी। तब वायसराय विलिंडन धबरा गया। वायसराय के पत्र व्यवहार में है कि महात्मा गांधी के पीछे कास्ट हिंदुज ;सवर्णद्ध खड़े हैं। वे गोपनीय पत्र आज उपलब्ध हैं।
संविधान की रचना करते समय हमारी एक मात्र आकांक्षा थी कि भारत अखंड रहे। 1945 के चुनाव में कांग्रेस का यह मुख्य नारा था। उसके पीछे सारा देश खड़ा था। उस चुनाव में हिंदू महासभा भी थी। उसे सिर्फ दो सीटें मिली थी। सारा देश कांग्रेस के साथ खड़ा था। लेकिन हम उसकी रक्षा नहीं कर पाए। हम भारतीय समाज को एक राष्ट्रीय समाज के रूप में विकसित नहीं कर पाए। आज तो स्थिति यह है कि राष्ट्रीयता और देशभक्ति की बात करना उपहास का विषय हो गया है। हमने ऐसा संविधान बनाया जिसका राष्ट्रीय लक्ष्यों से कोई तालमेल नहीं है।
हम उल्टी दिशा में चलते हुए दिखाई दे रहे हैं। अंग्रेजों ने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारतीय समाज का वर्गीकरण किया था। उसी वर्गीकरण की शब्दावली 1935 के कानून में है। जिसे हमने अपना लिया। उस शब्दावली से हिंदू समाज को बांटा गया। जैसे बेकवर्ड क्लासेसए ट्राईबल्स शेडयूल्ड कास्ट आदि।