(जन्म जयन्ती पर विशेष 28 सितम्बर 1907 ई.)
सरदार भगत सिंह के बंगा गांव में उनकी स्मृति में बने संग्रहालय को देखने का अवसर मिला।
दीवारों पर लगे अखबारों में महाशय राजपाल की हत्या की खबरे पढी…
उनके अंतिम संस्कार की खबरे पढ़ी।
वह भक्तिदर्पण पुस्तक देखी, जिसे महाशय राजपाल जी ने छापा था और भगत सिंह पढकर जिससे संध्या और योग करते थे।
भगत सिंह के दादा जी का हवनकुंड देखा
भगत सिंह को अरेस्ट करने की खबरे उस समय के अखबारों में छपी पढी,
उनके अस्थिकलश के दर्शन किए…
और पता नहीं क्यों यह देखते हुए आंखों से आंसू निकलते रहे।
क्योंकि वहां दिखाई जा रही एक डाक्यूमेंटरी में उनके गुरु को स्वामी दयानन्द बताया जा रहा था।
यानी भगत सिंह आर्य समाजी थे, मुझे वहीं जाकर पता चला…मैंने तो उन पर लिखा लेख ही पढा था जो उन्हें नास्तिक होने का दावा करता है।
परंतु मैंने उनके स्कूल की कापियां देखी, जिनमें पर ओम लिखा हुआ था, उनके पत्र देखे, जिनमें ओम लिखा था, उर्दू सत्यार्थ प्रकाश देखा, जिसे उनके दादा जी पढते थे।
सावरकर जी की 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक देखी, जिसे भगत सिंह ने छपवाया था…
*तो अब आप ही बताओ क्या वे नास्तिक थे?*
फिर एक महान क्रांतिकारी को नास्तिक बताने वाले लोग भारत के युवाओं को क्या सन्देश देना चाहते है? किस षडयंत्र के तहत उन्हें नास्तिक बताया जाता है।
उन देश के गद्दारों को मैं बताना चाहता हूँ आज का युवा तुम्हारे द्वारा लिखा हुआ झूठा इतिहास अब नही पढता और ना ही विश्वास करता है क्योंकि वह अब जागने लगा है।
*हम भगत सिंह को आर्यसमाजी बताकर किसी संस्था विशेष के ही थे यह नहीं दिखाना चाहते। परंतु आर्यसमाजी बताकर यह बताना चाहते हैं कि वह ईश्वरभक्त थे वह कोई नास्तिक नहीं थे। उनकी परवरिश स्वामी दयानन्द से दीक्षा प्राप्त उनके दादा अर्जुन सिंह जी की छत्रछाया में हुई थी।*
वे भारत के लाल थे, जो कभी भुलाए नहीं जा सकते…
इस शानदार यात्रा को करवाने के लिए संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार का धन्यवाद..
*संस्कृति के हित कट जाए वह माथ मुझको दे,*
*गरीबों को जो उठा सके वह हाथ मुझको दे।*
*तड़प उठे देख कर पराई पीड़ा को,*
*दिल वह दयानन्द सा ऐ नाथ मुझको दे।।*
-भगत सिंह
वंदेमातरम्
*प्रस्तुति – आचार्य राहुलदेवः*