किसी भी संस्थान की सफलता में उसके मज़दूरों एवं कर्मचारियों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बिना मज़दूरों एवं कर्मचारियों के सहयोग के कोई भी संस्थान सफलता पूर्वक आगे नहीं बढ़ सकता। इसीलिए संस्थानों में कार्य कर रहे मज़दूरों एवं कर्मचारियों को “मज़दूर/कर्मचारी शक्ति” की संज्ञा दी गई है। हमारे देश में दुर्भाग्य से मज़दूरों एवं कर्मचारियों के शोषण की कई घटनाएँ सामने आती रही हैं। यथा, मज़दूरों एवं कर्मचारियों को निर्धारित मज़दूरी का भुगतान नहीं करना एवं उनसे निर्धारित समय सीमा से अधिक कार्य लेना एवं आदि, प्रमुख रूप से शामिल हैं।
हमारे देश में कई विद्वानों द्वारा यह कहा जाता है कि देश में रोज़गार की समस्या तो कम है परंतु कम मज़दूरी की समस्या अत्यधिक है। समाज में पढ़े लिखे डिग्रीधारी वर्ग को कम वेतन/मज़दूरी वाले रोज़गार तो मिल जाते हैं परंतु उसके द्वारा की गई पढ़ाई के अनुसार अच्छे वेतन/मज़दूरी वाले रोज़गार उपलब्ध नहीं है। इसकी तुलना में जब हम अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों की और देखते हैं तो वहाँ लगभग प्रत्येक कर्मचारी ख़ुश नज़र आता है एवं उसकी अपने संस्थान के प्रति वफ़ादारी एवं उत्पादकता भारत की तुलना में बहुत अधिक पायी जाती है। इसका मुख्य कारण है वहाँ पर प्रत्येक मज़दूर एवं कर्मचारी को पूर्व निर्धारित दर से न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन का समय पर भुगतान करना है। इन देशों में न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन की दरें भी वहाँ के जीवन स्तर इंडेक्स को ध्यान में रखकर ही तय की जाती है। विकसित देशों में तो न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन की दर प्रति घंटा तय की जाती है एवं इसके समय पर भुगतान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका में सामान्यतः 10 से 20 अमेरिकी डॉलर के बीच में प्रति घंटा मज़दूरी/वेतन का भुगतान किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति पूरे दिन में 8 घंटे कार्य करे तो पूरे माह में वह व्यक्ति 1600 से 3200 अमेरिकी डॉलर (10/20x8x20) आसानी से कमा लेता है। जबकि यहाँ के जीवन स्तर इंडेक्स के अनुसार लगभग 1200 से 1500 अमेरिकी डॉलर कमाने वाला व्यक्ति आसानी से अपना गुज़र बसर कर सकता है। इन देशों में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियमों का पालन कड़ाई से किया जाता है, जिसके कारण यहाँ पर मज़दूरों एवं कर्मचारियों में असंतोष की भावना नहीं के बराबर देखने को मिलती है। बल्कि, अमूमन यहाँ पर चूँकि मज़दूर एवं कर्मचारी वर्ग प्रसन्न रहता है अतः उनकी उत्पादकता भी तुलनात्मक रूप से अधिक पायी जाती है।
हमारे देश में भी मज़दूरों एवं कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं के निदान करने एवं उन्हें और अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से हाल ही में सम्पन्न लोकसभा के मॉनसून सत्र में श्रम कानून से जुड़े तीन अहम विधेयक पास हो गए हैं। जिनमें सामाजिक सुरक्षा बिल 2020, आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020 शामिल हैं। इससे पहले तक देश में 44 श्रम कानून थे जो कि अब चार लेबर कोड में शामिल किए जा चुके हैं। श्रम कानूनों को लेबर कोड में शामिल करने का काम 2014 में शुरू हो गया था। सरकार का कहना है कि उक्त ऐतिहासिक श्रम कानून, कामगारों के साथ साथ कारोबारियों के लिए भी मददगार साबित होगा।
पूर्व में दिनांक 02 अगस्त 2019 को राज्य सभा ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत मज़दूरी बिल कोड 2019 को सदन में पास कर दिया था। लोक सभा भी इस कोड को पहिले ही दिनांक 30 जुलाई 2019 को पास कर चुकी थी। मज़दूरी बिल कोड 2019 के माध्यम से मज़दूरी, बोनस एवं इनसे सम्बंधित अन्य नियमों को संशोधित एवं समेकित करने का प्रयास किया गया है। यह कोड वर्तमान में देश में लागू चार श्रम क़ानूनों को अपने आप में समाहित कर लेगा। ये क़ानून हैं – न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, मज़दूरी भुगतान अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम एवं समान पारिश्रमिक अधिनियम। ऐसी उम्मीद जताई गई थी कि उक्त नए कोड के देश में लागू होने के बाद, देश के 50 करोड़ मज़दूर एवं कर्मचारी लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही श्रमिकों के हितों में कई अन्य नियम भी समय समय पर बनाए एवं लागू किए गए हैं, जैसे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और छोटे व्यापारियों को पेंशन देना, महिलाओं के मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करना, ईपीएफ तथा ईएसआईसी का दायरा बढ़ाना, विभिन्न कल्याणकारी सुविधाओं की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने का प्रयास करना, न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाना इत्यादि।
मज़दूरी बिल कोड 2019 में किए गए प्रावधानों के अनुसार, वेतन एवं मज़दूरी की न्यूनतम दर का निर्धारण एक कमेटी द्वारा किया जायगा। इस कमेटी में श्रमिक संघों, नियोक्ताओं एवं राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस प्रकार निर्धारित की गई न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन प्राप्त करना पूरे देश के श्रमिकों एवं कर्मचारियों का अधिकार बन जाएगा। पुरुष एवं महिलायों के लिए समान मज़दूरी एवं वेतन की दरें लागू होंगी। न केवल न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन का निर्धारण होगा बल्कि इनके समय पर भुगतान को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा। न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन का निर्धारण पूरे देश में न्यूनतम जीवन स्तर की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही होगा। उक्त वर्णित कमेटी द्वारा निर्धारित की गई न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन की दरें देश के 50 करोड़ मज़दूरों एवं कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होंगी।
नए श्रम कानूनों से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं मिलेंगी। जैसे, सभी मजदूरों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा और उनके वेतन का भुगतान डिजिटल माध्यम से करना होगा। साथ ही, साल में एक बार, सभी श्रमिकों का हेल्थ चेकअप भी अनिवार्य रूप से कराना होगा। हालांकि अब जिन कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या 300 से कम है, वे सरकार से मंजूरी लिए बिना ही कर्मचारियों की छंटनी कर सकेंगी। अब तक ये प्रावधान सिर्फ उन्हीं कंपनियों के लिए लागू था, जिनमें 100 से कम कर्मचारी कार्य करते हों। अब नए बिल में इस सीमा को बढ़ा दिया गया है।
उक्त श्रम क़ानून कंपनियों को भी छूट देगा कि वे अधिकतर लोगों को अनुबंध के आधार पर नौकरी दे सकें साथ ही इस अनुबंध को कितनी भी बार और कितने भी समय के लिए बढ़ाया जा सकेगा, इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। इस प्रावधान को भी अब हटा दिया गया है, जिसके अंतर्गत किसी भी मौजूदा कर्मचारी को अनुबंध श्रमिक में तब्दील करने पर रोक थी। महिलाओं के लिए कार्य करने का समय सुबह 6 बजे से लेकर शाम 7 बजे के बीच ही रहेगा। हालाँकि शाम 7 बजे शाम के बाद अगर काम कराया जा रहा है, तो सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की होगी। साथ ही जिन लोगों को निर्धारित अवधि के आधार पर नौकरी मिलेगी उन्हें उतने दिनों के लिए ग्रेच्युटी पाने का हक भी होगा, इसके लिए पांच साल का कार्यकाल पूरा करने सम्बंधी शर्त अब हटा दी गई है। अगर आसान शब्दों में कहें तो अनुबंध के आधार पर काम करने वाले श्रमिकों को उनके वेतन के साथ-साथ अब ग्रेच्युटी का फायदा भी मिलेगा। अगर कर्मचारी नौकरी सम्बंधी निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करता है तो ग्रेच्युटी का भुगतान एक निर्धारित फॉर्मूले के तहत गारंटी तौर पर उसे दिया जाएगा।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि उक्त श्रम क़ानूनों के देश में लागू होने के बाद देश के आर्थिक विकास में यह मील का पत्थर साबित होंगे। क्योंकि, इन क़ानूनों के लागू होने के बाद देश में अधिक से अधिक श्रम प्रधान उद्योगों की स्थापना की जा सकेगी, आधारिक संरचना के निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा एवं रोज़गार के अधिक से अधिक अवसरों का निर्माण हो सकेगा। बल्कि, श्रम प्रधान उद्योगों की स्थापना के बाद पूरे विश्व की औद्योगिक इकाइयों को भी भारत में आमंत्रित किया जा सकेगा कि वे भारत में आकर वस्तुओं का उत्पादन करें एवं इन वस्तुओं का भारत से निर्यात करें। चीन ने भी इसी मॉडल को अपनाकर अपने देश के आर्थिक विकास की गति को पंख प्रदान किए थे, जो तीन दशकों से भी अधिक समय तक सफलतापूर्वक चलता रहा है। हाँ, भारत सरकार को इन श्रम प्रधान उद्योगों के लिए प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा करनी होगी ताकि अधिक से अधिक श्रम प्रधान उद्योगों की देश में ही स्थापना की जा सके। उक्त श्रम क़ानूनों के देश में लागू होने एवं इसके सही तरीक़े से सफलता पूर्वक क्रियान्वयन के बाद स्वस्थ, सुखी एवं संतुष्ट श्रमिक के सपने को भी साकार किया जा सकेगा, जिससे श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि भी दृष्टिगोचर होने लगेगी। न्यूनतम मज़दूरी एवं वेतन का समय पर भुगतान देश हित में भी होगा क्योंकि मज़दूरों एवं कर्मचारियों के लिए नियमित आय का सीधा मतलब देश में उत्पादित वस्तुओं की माँग में वृद्धि, मार्केट का विस्तार एवं आर्थिक विकास को गति।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।