फाइल फोटो साभार: दैनिक जागरण
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
अपने आपको धर्म-निरपेक्ष कहने वाली कांग्रेस का दोहरा चरित्र एक बार पुनः उजागर हो गया है। यह वही कांग्रेस जिसने तुष्टिकरण की माला पहन अयोध्या में रामजन्मभूमि मन्दिर को कितने वर्षों तक विवादित बना ना जाने कितने हिन्दुओं की जान ले ली। खुदाई में मिले मंदिर प्रमाणों को कोर्ट से छुपाने के साथ-साथ राम को ही काल्पनिक बता दिया, ताकि उनकी कुर्सी बरक़रार रहे। कांग्रेस कुर्सी की इतनी अधिक भूखी है, जो अपनी कुर्सी की खातिर 1986 में दिल्ली की एक अदालत द्वारा कुरान की कुछ विवादित आयतों के विरुद्ध आए निर्णय को बदलवा सकती है, लेकिन यदि इसी तरह का निर्णय हिन्दुओं के किसी ग्रन्थ अथवा उपनिषद के विरुद्ध आया होता, तुरंत उस ग्रन्थ अथवा उपनिषद को प्रतिबन्ध कर दिया होता। कांग्रेस का विवादित सेकुलरिज्म फिर उजागर हो रहा है। क्यों नहीं मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पक्ष में आए निर्णय को अपने कार्यकाल में क्यों नहीं लागू किया?
कांग्रेस ने अपने शांतिदूत वोटबैंक का असली रूप शायद नागरिक संशोधक कानून के विरोध में नहीं देखा या फिर सूरदास बनने का स्वांग कर रही हैं। (नीचे दिए लिंक का अवलोकन करें)
कांग्रेस ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर कोर्ट निर्णय को क्यों नहीं लागू किया?
इतना ही नहीं, जब केंद्र में राजीव गाँधी कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर द्वारा इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करते ही राजीव गाँधी ने अपना समर्थन वापस लेकर चंद्रशेखर सरकार को गिरा दिया था। आज कांग्रेस वही अपने विवादित रूप में आकर, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को विवादित बनाने को आतुर हैं। जबकि 1964 तक आये सभी छह कोर्ट निर्णय श्रीकृष्ण जन्मभूमि के ही पक्ष में आए थे, लेकिन मुस्लिम वोटबैंक को न खोने के डर से निर्णय को लागू नहीं किया। अब कांग्रेस में जितने भी हिन्दू हैं, उन्हें पार्टी को अपने समर्थन पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने का मामला दिन पर दिन गर्माता जा रहा है। कहा जा रहा है कि शाही ईदगाह मस्जिद जहाँ स्थित है, वहीं पर कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। सितम्बर 27, 2020 को कांग्रेस नेता की अध्यक्षता वाले एक संगठन ने उस याचिका की निंदा की है, जिसमें मथुरा कोर्ट से श्रीकृष्ण जन्मभूमि में अतिक्रमण से मुक्ति की माँग की गई है।
‘अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा’ ने उन लोगों की आलोचना की है, जो 17वीं शताब्दी की मस्जिद को हटाने की माँग लेकर कोर्ट पहुँचे हुए हैं। संगठन ने कहा कि मथुरा के शांति-सद्भाव को बिगाड़ने के लिए इस तरह से मुद्दे उठाए जा रहे हैं। महासभा के अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेश पाठक ने दावा किया है कि इस मामले में 20वीं सदी में ही समझौता हो चुका है, इसीलिए मथुरा में मंदिर-मस्जिद का कोई विवाद ही नहीं है।
उन्होंने इस मामले को उठाने वाले लोगों को बाहरी करार दिया। उन्होंने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर हुए अतिक्रमण पर बोलते हुए कहा कि अगल-बगल में मंदिर-मस्जिद होने से भावनात्मक एकता बढ़ती है और साथ ही दावा किया कि यहाँ दोनों समुदायों में परस्पर सद्भाव है। लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री समेत 6 लोगों ने कोर्ट से श्रीकृष्ण जन्मभूमि को अतिक्रमण-मुक्त करने की माँग की है।
सितम्बर 25 को मथुरा की एक अदालत में याचिका दायर कर के वकील विष्णु शंकर जैन ने माँग की है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंध समिति के बीच हुआ समझौता पूरी तरह गलत है और उसे निरस्त किया जाए। ज्ञात हो कि महेश पाठक मथुरा से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें मात्र 28,084 (2.55%) वोट ही मिले थे और भाजपा की हेमा मालिनी लगातार दूसरी बार विजयी हुई थीं।
बाबरी पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी कहा है कि हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करने वाले इस मामले को तूल दे रहे हैं। उसने कहा कि चंद लोग मंदिर-मस्जिद विवाद को अपनी रोजी-रोटी के लिए चलते रहने देना चाहते हैं। उसने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम न किया जाए तो हिंदुस्तान दुनिया में शिखर पर होगा। इसके लिए उसने बाबरी मस्जिद मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि ये कोर्ट में 50 वर्ष चला। उसने मथुरा की मुक्ति की बात करने वालों को हिंदुस्तान की तरक्की रोकने वाला करार दिया।