सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया का सार [ हिन्दू राजनैतिक दल की आवश्यकता लेखमाला ] – भाग -4

२५.सिंधिया की सेना में हनोवर का अन्थोनी पोहिमन्न एक सैन्य अधिकारी था जिसके अधीन फिरंगी रेजिमेंट थी .वे सिंधिया की सेवा में थे. आदिलशाह की सेवा में पुर्तगाल का फर्नाओ लोप्स था . भोपाल का नवाब वस्तुतः गोंड राजा का अफगान सेवक था और इनाम में भोपाल जागीर पाया था . उसकी सेवा में ज्यां फिलिपे द बोर्बोन था एक सैन्य अधिकारी के नाते यानी गोंडों के सेवक के सेवक फ्रंच और पुर्तगाली थे .निज़ाम के यहाँ वाल्टर रेन्हार्ट समब्रे था . सिख सेना में आयरिश और फ्रेंच सैनिक थे . अनेक अंग्रेज महाराजा रणजीत के अधीन सैन्य सेवा में थे . अनेक ..जॉन बैप्टिस्ट वेंचर ,ज्यां फ्रांकुआ अलार्ड ,जॉन होक्स ,ऐसी लम्बी सूची है . वे सब ईस्ट इंडिया कंपनी के जमने के बहुत पहले से भारत में सैन्य प्रशिक्षण ले रहे थे .
२६ . नेपोलियन ने १९ वीं शताब्दि ईस्वी के प्रारंभ में जब यूरोप में लडाई लड़ी तो मुख्यतः तलवार से और धनुष बाण से लडाई हुयी . बंदूकें अंतिम चरण में गिनी चुनी थीं .मेरा अनुमान है कि वे सब भारत से गयी थीं .शोध की आवश्यकता है .
२७ इस प्रकार विज्ञानं ,शिक्षा , सम्पदा , सैन्य बल सब में भारत बहुत आगे था और समृद्धि में तो अद्वितीय था .
२८ १८ वीं शताब्दी तक यूरोप में कोई राष्ट्र नहीं था . राजा होते थे और परस्पर लड़ते थे .उस समय के राज्यों का आज नामो निशान मिट चूका है : प्रशा ,आस्ट्रिया साम्राज्य , रोम (राम )., निमि(बाद में आर्ष देश कहा गया फिर जिन्हें बोलना नहीं आता , उन मृध्र वाक् लोगों ने आरिषीया कहना शुरू किया . ), कृति (जिसे मृध्र वाक् क्रेटे कहते हैं ), उस्मानी साम्राज्य , एरिन , सिमरु ,सैक्सनी ,हनोवर केत्लोनिया :सब कहाँ हैं आज ?
२९. १९१४ से १९५० के बीच कितने नए राष्ट्र बने ,यह भी अधिकांश भारतीयों को ज्ञात ही नहीं . और अभी अभी कुछ वर्षों पूर्व कितने नए राष्ट्र बने ?
३० जब १८ वीं शताब्दी में इंग्लैंड एक राष्ट्र था ही नहीं और भारत भी एक राष्ट्र होकर भी अनेक राज्यों में सुविभक्त था तो भारत के राजा मुट्ठी भर अंग्रेजों को अपने राज्य के लिए क्या ख़तरा मानते ? कालप्रवाह वश जो घटित हुआ ,उसके विश्लेषण के नाम पर सयाने बनकर अपने वीर और बुद्धिमान लोगों के दोष ढूँढना कितना छोटापन है ,यह आधुनिक सुख भोग रहे हिन्दू नव शिक्षित समझ नहीं पाते . जबकि अभी किसी भी परीक्षा और कसौटी पर कोई बड़ा पुरुषार्थ करके दिखाया नहीं है इन्होने .
३१. भारत की मुख्य समस्या धर्मांतरण थी और है ,यह जो नहीं जानते ,वे राजनैतिक विश्लेषण के नाम पर निरर्थक अटकल बाजियां करते हैं .
३२ भारत के कतिपय कायर या लोभी या कामुक और लिप्सा ग्रस्त हिन्दू ही भारतीय मुसलमान बने और फिर सामान्य मुस्लिम तो पहले जैसा रहा पर राजनैतिक योजना वालों ने तबलीग का अभियान चला कर उन्हें हिन्दुओं से एकदम अलग और शत्रु बनाया . दुराचार पापाचार की अति की ,अपने ही पूर्वजों को गाली देने लगे और देवताओं एवं मंदिरों को भी गालियां देने तथा विध्वंस करने लगे इस से सर्व सामान्य हिन्दू अत्यधिक क्रुद्ध क्षुब्ध और आक्रोश में रहने लगे मुस्लिम अत्याचार के प्रति . अतः अंग्रेजों का सहारा लेकर कई जगह उन पापी मुसलमानों को पीटने की भी युक्तियाँ निकलने लगे और सामान्य मुस्लमान से भाईचारा भी जरूरी समझ वह भी बनाते निभाते रहे ..उधर ईसाइयों के विषय में मुसलमानों को अधिक तरकीबें पता थीं तो वे अपने ढंग से पटाने लगे . इसे अन्य तरह से देखना सर्वथा अनुचित और असत्य है क्योंकि हिन्दू मुस्लिम की मूल वंश भूमि एक है पर केवल शरीर के स्तर तक . आस्था और चरित्र में उनमे स्थायी विरोध है और इसलिए सजग हिन्दू कभी भी तबलीगी मुसलमान पर भरोसा नहीं कर सकता ,हाँ ,शक्ति और स्थिति के आधार पर व्यवहार कर सकता है .
३३ अधिक अतीत अनुसन्धान करें तब तो समस्त यूरोपीय (और अंग्रेज भी जाहिर है ) जन मूलतः भारतवंशी ही हैं .इन दिनों वहां इस पर अनुसंधान चल भी रहे हैं (देखिये :people of Europe seriesकी अनेक पुस्तकें जो युरप अमेरिका से छप रही हैं )परन्तु इस कारण अतीत का संघर्ष तो असत्य नहीं हो जायेगा जो ईसाई बनकर इन्होने विगत वर्षों में भारत आकर किया ,इसी प्रकार भारतीय मुसलमान हिन्दू ही हैं ,यह तथ्य होते हुए भी युद्ध या संघर्ष या टकराव टल नहीं सकता , जब तक मुसलमान भारत को मुस्लिम बनाने की घोषणा त्यागते नहीं ,जो भी इस सत्य को छिपाता है ,ऐसा हर हिन्दू वस्तुतः हिन्दू द्रोही है .
३४ तो अपनी अपनी चाल में दोनों पक्षों ने अंग्रेजों को साथ लिया ,इस सत्य को छिपाना सत्य से विमुख होना है और असत्य के सहारे कोई बड़े लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकते .
३५ जो अंग्रेज धन की लालसा से भारत व्यापारी बनकर आये ,वे अलग लोग हैं और जिन राजपुरुषों ने बाद में भारतीय राजाओं से दोस्ती कर कंपनी को भी धता बता कर ब्रिटिश राज्य का कब्ज़ा आधे भारत में कर लिया ,वे अलग लोग हैं ,..सबको एक कहना राष्ट्र के नाम पर मूर्खता को स्थापित करना है .जिन अंग्रेज व्यापारियों का राज्यकर्ता अंग्रेजों ने सब कुछ एक झटके में ,चुपके से भारतीय राजाओं से संधिकर हड़प लिया ,उनकी व्यथा तो उनके वंशधर अंग्रेज ही बताते हैं , हिन्दुओं की नयी पीढ़ी तो हिन्दुओं में भेदभाव ढूँढने और दुनिया के भेदभाव को ढंकने की हीनता में डूबी आत्म ग्लानि , आत्म दैन्य और आत्म हनन के पथ पर दौड़ती चली जा रही है ,चली जा रही है ,रोकिये मत ,बहुत काम है ,देश को ठीक करना है ,समाज को ठीक कर देना है ,हटिये हटिये , फालतू की बातों का वक्त नहीं है ,सत्य वत्य छोडिये जी ,देश सर्वोपरि है ,उसे ठीक करना है ,भले देश क्या है,,यह स्पष्ट न हो .अभी देश को ठीक कर लें भाई साहब ,फिर समझ भी लेंगे कि देश है क्या ,अभी तो आप हटिये रस्ते से :राहुल को ठीक करना है ,नहीं नहीं मोदी को ठीक करना है ,बहुत काम है ,भाई साब आप कुछ समझते तो हैं नहीं ,इतिहास लिए बैठे हैं ,हटिये

३६ न अंग्रेजों की कभी भारत विजय की हैसियत थी ,न है . भारत के भांति भांति के लोगों से दोस्ती गांठ कर वे थोड़े समय भारतीयों को साझीदार बनाकर आधे भारत में शासक रहे (अर्ध भोक्ता रहे ),इसे न तो कोई साम्राज्य वाद कहा जाता ,न ही सहभागियों को गुलाम कहा जाता . इन शब्दों के विश्व में जो अर्थ हैं ,उनके सन्दर्भ में भारत न तो कभी गुलाम था , न ही अंग्रेज कभी भारत के एक क्षत्र शासक थे ,.
इस के आगे की प्रक्रिया ही विशेष महत्वपूर्ण है जिस पर आज या कल प्रकाश डाला जायेगा।(क्रमशः)
(साभार) प्रस्तुति -श्रीनिवास आर्य

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