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डॉ राकेश कुमार आर्य की पुस्तक ‘भारतीय क्षात्र धर्म और अहिंसा’ का किया गया विमोचन : निराशा भरे इतिहास को समुद्र में फेंकने और यशस्वी इतिहास को लिखने का आ गया है समय : डॉ. सत्यपाल

अमन आर्य

मेरठ । 1857 के अमर शहीद धनसिंह कोतवाल शोध संस्थान के तत्वावधान में आयोजित डॉ राकेश कुमार आर्य की पुस्तक की विमोचन संबंधी वेबीनार को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और बागपत से भाजपा के लोकसभा सांसद डॉ सत्यपाल ने कहा है कि देश के गौरव पूर्ण इतिहास का गौरवपूर्ण लेखन समय की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि डॉ राकेश कुमार आर्य द्वारा ‘भारतीय क्षात्र धर्म और अहिंसा’ ( है बलिदान इतिहास हमारा) नामक पुस्तक भारत के इतिहास के उन गौरवपूर्ण तथ्यों को स्पष्ट करती है जिन्हें एक षड्यंत्र के अंतर्गत हमारी नजरों से ओझल किया गया है। डॉ सत्यपाल ने कहा कि भारत की वैदिक परंपरा है कि :-
ॐ इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ।
अपघ्नन्तो अराव्णः ।। ऋग्वेद 9/63/5

अर्थात हे सत्कर्मों में निपुण सज्जनो ! परमैश्वर्यशालियों को बढाते हुए पापियों का नाश करते हुए सम्पूर्ण संसार को आर्य बनाओ ।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत की इस प्राचीन परंपरा के अनुसार दुष्टों का संहार करना और सज्जनों का कल्याण करना हमारी संस्कृति और इतिहास का एक अनिवार्य अंग है। इसी दृष्टिकोण से डॉ आर्य द्वारा लिखी गई यह पुस्तक हमारे इतिहास के इस तथ्य और सत्य को उजागर करती है। जिसके लिए श्री आर्य बधाई के पात्र हैं।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी यदि इस देश के राष्ट्रपिता हैं तो महर्षि दयानंद इस देश के राष्ट्रपितामह हैं। जिन्होंने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने के लिए भारत को जगाया और वेदों की ओर लौटने का आवाहन करके देश के लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि तुम्हें न केवल भारत की आजादी की बात करनी है बल्कि संपूर्ण मानवता की सुरक्षा और आजादी की बात करनी है। महर्षि दयानंद ने जिस परंपरा को हमारे भीतर एक संस्कार के रूप में स्थापित करने का श्लाघनीय कार्य किया। डॉक्टर राकेश आर्य की यह पुस्तक ऋषि की इसी परंपरा को आगे बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम है। आज ऐसे ही लेखन और लेखकों की आवश्यकता है जो भारत के शानदार अतीत का शानदार संबोधन कर सकें।
भाजपा के विद्वान सांसद ने कहा कि भारत ने अपने आदर्श ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ के संस्कार को कभी छोड़ा नहीं और उसे अपने क्षत्रिय धर्म का एक आवश्यक अंग बनाकर इसी के आधार पर कार्य करते रहने को प्राथमिकता दी। हम उन ऋषियों की संतानें हैं, जिन्हें सृष्टि के प्रारंभ में वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ। अग्नि ,वायु, आदित्य और अंगिरा हमारे पूर्वज हैं। जिनके हृदय में ईश्वरीय वाणी वेद का आविर्भाव हुआ।
पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सत्यपाल ने कहा कि ऋग्वेद का पहला मंत्र है कि :-

ॐअग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् || 1 ||

इस प्रथम मंडल के प्रथम मंत्र की शुरुआतअग्निदेव की स्तुति से की गई है और कहा गया है कि हे अग्निदेव !हम सब आपकी स्तुति करते है. आप ( अग्निदेव ) जो यज्ञ के पुरोहितों, सभी देवताओं, सभी ऋत्विजों, होताओं और याजकों को रत्नों से विभूषित कर उनका कल्याण करें।
उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है कि जब हम शस्त्र और शास्त्र दोनों के समन्वय को समझते हों और इसी के आधार पर अपने क्षत्रिय धर्म का निर्वाह करने में सक्षम और समर्थ हों। उन्होंने कहा कि हम अपनी संध्या में यह मंत्र बोलते हैं :-
ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिस्रवन्तु नः।
      जिसका अर्थ है कि सर्वव्यापक एवं सर्वप्रकाशक प्रभु ,अभीष्ट फल और  उत्तम आनंद की प्राप्ति के लिए हमें कल्याण कारी हों। प्रभु  हम पर  सदा सर्वदा  सुख की वृष्टि करें।
इस मंत्र का अभीष्ट फल हमको तभी मिल सकता है जब हम ईश्वरीय आज्ञा का पालन करते हुए अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ हों।
डॉ सत्यपाल ने अथर्ववेद के मंत्र ‘ये त्रिषप्ताः परियन्ति’ सहित कई अन्य वेद मंत्रों की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि डॉ आर्य द्वारा भारत की जिस वैदिक परंपरा को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है उससे हमें अपने मौलिक धर्म का ज्ञान होता है । हमें पता चलता है कि श्री राम और श्रीकृष्ण भगवान इसलिए बने कि वे शस्त्र और शास्त्र का उचित समन्वय करके चलने वाले पुरुष थे । उन्होंने दुष्टों का संहार करने में समय आने पर तनिक भी देर नहीं लगाई । यही कारण रहा कि हमारे देश में धनसिंह कोतवाल ,रानी लक्ष्मीबाई, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह ,वीर सावरकर और उन जैसे अन्य अनेकों लाखों-करोड़ों क्रांतिकारी उठ खड़े हुए और समय-समय पर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करते रहे ।
उन्हीं के संघर्ष तप, त्याग और साधना का परिणाम है कि हम आज आजाद हैं। डॉ आर्य की पुस्तक इसी तथ्य को स्पष्ट करने में सफल रही है । मेरा मानना है कि अब हमें अपने यशस्वी इतिहास को लिखने की ओर ठोस कार्य करना चाहिए। निराशा भरे वर्तमान प्रचलित इतिहास को समुंद्र में फेंकने का समय आ गया है । उन्होंने कहा कि :-
उनकी तुरबत पर एक दिया भी नहीं
जिनके खून से जले थे चिराग ए वतन।
आज दमकते हैं उनके मकबरे
जो चुराते थे शहीदों का कफन ।।
हमें इस शेर के रहस्य को समझना चाहिए और जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ है उन्हें इतिहास में उचित स्थान देने के लिए यशस्वी इतिहास का लेखन करना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उगता भारत प्रकाशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित बाबा नंदकिशोर मिश्र ने कहा कि डॉ. आर्य की इस पुस्तक के अध्ययन से यह तथ्य पूर्णतया सिद्ध हो जाता है कि भारत की अंतश्चेतना में उसका वीरता का भाव निवास करता है । जिसने भारतवासियों को कभी भी विदेशियों के सामने झुकने के लिए प्रेरित नहीं किया। उन्होंने कहा कि आज इसी प्रकार के लेखन की आवश्यकता है। जिससे राष्ट्रीय गौरव और भारत का स्वर्णिम अतीत उभरकर आज की युवा पीढ़ी के अंतर्मन में रच बस जाए ।
वरिष्ठ समाजसेवी और समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर डॉ राकेश राणा ने कहा कि राजनीति को राष्ट्रनीति बनाकर और राज धर्म को राष्ट्र धर्म बना कर चलना समय की आवश्यकता है। जिससे हम तेजस्वी राष्ट्रवाद का निर्माण कर सकते हैं और भारत को विश्व गुरु के प्रतिष्ठित पद पर स्थान दिला सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के लिए उसके स्वर्णिम अतीत को और सही इतिहास को सामने लाने की आवश्यकता है और यह कार्य इस पुस्तक के माध्यम से लेखक द्वारा किया गया है।
इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी तथा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित पत्रकार राकेश छोकर ने कहा कि भारत का सही इतिहास लिखा जाना इस समय एक बड़ी चुनौती है। जिसे ‘उगता भारत’ समाचार पत्र ने चुनौती के रूप में स्वीकार किया है । उन्होंने कहा कि वीर सावरकर के सपनों का भारत बनाना हम सब का सामूहिक लक्ष्य है जिस के लिए यह पुस्तक निश्चय ही मील का पत्थर साबित होगी। श्री छोकर ने कहा कि पुस्तक में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में जिस ओजस्विता के साथ लेखक ने अपना मत व्यक्त किया है उससे वह सहमत हैं और डॉ आर्य इस बड़े कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं।
इस अवसर पर इतिहासकार श्री देवेश शर्मा ने कहा कि राष्ट्र निर्माण अच्छे साहित्य से ही संभव है। अच्छे साहित्य में गौरवपूर्ण भाषा शैली और अपने पूर्वजों के गौरव पूर्ण कृत्यों का सही ढंग से प्रस्तुतीकरण बहुत आवश्यक है। जिसे डॉक्टर आर्य की यह पुस्तक पूर्ण करती है। महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए श्रीमती सुनीता गुर्जर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत, संस्कृति, आर्य ,आर्यभाषा और आर्यावर्त जब तक हमारी रगों में रच बस नहीं जाएगा, तब तक हम अपने गौरवपूर्ण अतीत से संबंध स्थापित नहीं कर पाएंगे । इसके लिए अपने लेखकों का ऐसा समूह देश में तैयार किया जाना समय की आवश्यकता है जो हमें हमारे शानदार अतीत से जोड़ने में सक्षम हो।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे धनसिंह कोतवाल गुर्जर शोध संस्थान के अध्यक्ष, वरिष्ठ समाजसेवी और बुद्धिजीवी डॉक्टर तस्वीरसिंह चपराणा ने पुस्तक के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ कोई न कोई नया संदेश देता है। उन्होंने कहा कि आज हमें अपने इतिहास पर शोध परक लेखन की आवश्यकता है। क्योंकि इसी प्रकार के शोधपरक लेखन से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपने सही इतिहास को देने में सफल होंगे। डॉ चपराणा ने कहा कि जो देश अपने अतीत को भूल जाता है या उसका सही रूप से मूल्यांकन और अवलोकन नहीं कर पाता है वह मिट जाता है। भारत एक जीवन्त राष्ट्र है और इसे विश्व गुरु के रूप में स्थापित होकर संसार को मार्गदर्शन देना है , इसलिए डॉक्टर आर्य की लेखन शैली को एक परंपरा के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है।
अंत में ‘उगता भारत’ पत्र समूह के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री देवेंद्रसिंह आर्य ने कार्यक्रम में उपस्थित रहे सभी विद्वानों ,आगंतुकों और अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि इतिहास लेखन की प्रेरणा उन्हें अपने पूज्य पिता महाशय राजेंद्र सिंह आर्य जी से प्राप्त हुई। जिसे प्रिय अनुज राकेश मूर्तरूप दे रहा है । श्री आर्य ने कहा कि महर्षि दयानंद जैसे दिव्य पुरुषों का प्रताप हम सबका मार्गदर्शन कर रहा है । जिसके आलोक में हम आने वाली पीढ़ियों को अपने गौरवपूर्ण अतीत का जितना अधिक स्पष्ट चित्रण करके सौंप जाएंगे उतना ही अच्छा रहेगा । उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारत के लिए अनेकों चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। इस्लाम और ईसाइयत आज भी एक षड्यंत्र के अंतर्गत आर्य संस्कृति का विनाश करने में लगे है । जिसके लिए समय रहते हमें सचेत होना होगा और अपने इतिहास लेखन पर कलम उठानी होगी।
इस अवसर पर अनेकों विद्वानों, समाजशास्त्रियों, लेखकों, बुद्धिजीवियों ने अपनी उपस्थिति प्रदान कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की इन विद्वानों ,समाज शास्त्रियों और बुद्धिजीवियों में डॉक्टर संजीव कुमार नागर ( प्रधानाचार्य) अब्बास चौधरी गुर्जर, चौधरी जयचंद विकल ,कैप्टन सुभाष चंद्र, डॉक्टर भृगुनाथ पांडेय , डॉक्टर संजीव कुमारी , प्रधान भोपाल सिंह, भाजपा से श्रीमती करुणा चौधरी , प्रोफेसर वेदपाल, श्रीमती मीरा मिश्रा, श्री ब्रह्मपाल सिंह गुर्जर, योगी दानवीर सिंह आर्य आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे।

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