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विशेष संपादकीय

संस्कृति पर हमला हो चुका है

इस्लाम और ईसाइयत इन दोनों ने भारत में आकर इस देश की संस्कृति को मिटाने का हर संभव प्रयास किया। यदि वह क्रम बीते कल की बात हो गयी तो हम भी इसे ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने’ की नीति मान कर छोड़ देते। किंतु दुर्भाग्य से यह क्रम आज भी थमा नही है। जो खबरें समाचार पत्रों में छप रही हैं अथवा नित्य प्रति सुनने को मिल रही हैं, वो अब भी रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य ये है कि इन समाचारों और घटनाओं के प्रति हमारा राजनीतिक नेतृत्व आज भी पूर्णत: उदासीन है। भारत में आगामी दस वर्षों में प्रत्येक ग्राम में चर्च और बाईबिल पुस्तक प्रत्येक भारतीय के हाथ में पहुंचाने की ईसाइयों की महत्वाकांक्षी योजना है। जिसे ‘मैंडेट-मिशन’ का नाम दिया गया है।
इसका लक्ष्य भारत के पांच लाख गांवों में चर्च की स्थापना करके (नौ लाख चर्चों के माध्यम से) लोगों का धर्म परिवर्तित करना है। जिसका सारा व्यय ईसाई देशों ने अपने ऊपर लिया हुआ है। जिसका विवरण निम्न प्रकार है-
चमिशन मेन्डेट के आज्ञा पत्र के पृष्ठ संख्या 471 के अनुसार स्पष्ट है कि नागपुर का फेेडरेशन ऑफ चर्च अपने 2,60,000 रूपये के वार्षिक बजट से प्रतिवर्ष 700 लोगों को ईसाईमत की दीक्षा देता है।
चपृष्ठ 475 के अनुसार नई दिल्ली की इंडियन एवेज्जलिकन टीम अपने 40 लाख रूपये वार्षिक बजट के द्वारा प्रतिवर्ष 2000 लोगों को ईसाई बनाती है।
चपृष्ठ 470 से चेन्नई का फ्रैंड्स मिशनरी प्रेअरबैण्ड के अपने 1145 करोड़ रूपये के वार्षिक बजट के द्वारा 3400 लोगों को ईसाई बनाता है।
इस कार्य के लिए ईसाई देशों ने योजनापूर्वक भारत को सात भागों में विभक्त कर लिया है।
1.बंबई प्रांत स्पेनियाई मिशनों के लिए।
2.पटना जमशेदपुर दार्जिलिंग अमेरिकी मिशनों के लिए।
3.बंगाल, उत्तर प्रदेश बेल्जियम के लिए।
4.कर्नाटक, बंगलौर और मालाबार इटालियनों के कब्जे में।
5.गोवा, पुर्तगालियों के कब्जे में।
6.मद्रास, मदुराई, त्रिचनापल्ली, फ्रांसीसियों के कब्जे में।
7.पूना और बेलगांव, जर्मनी और स्विस मिशनों के कब्जे में हैं। विस्तृत जानकारी हेतु सर्वहितकारी का 21 नवंबर 2003 ई. का अंक देखा जा सकता है। पाठको! यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है जो राष्ट्रधर्म की उन्नति और विकास में ही बाधक बन गयी है।
उन राष्ट्रदोहियों की पहचान होनी चाहिए जो छद्म धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़कर राष्ट्र पर आने वाली आफत से सब कुछ समझकर भी आंखें बंद किये बैठे हैं। इन नपुसंकों को राष्ट्र कभी भी क्षमा नही कर पाएगा, क्योंकि इनकी जब-
चसुबह हसीन है।
चरातें रंगीन हैं।
चजिंदगी बेहतरीन है।
तो फिर इन्हें और क्या चाहिए? इन राष्ट्र के दुश्मनों को भला इस राष्ट्र और इसके अतीत, वर्तमान और भविष्य से क्या लेना-देना?
राष्ट्रीय संस्कृति पर घातक प्रहार : राष्ट्र की हालात कितनी ही गिर जाए, शोचनीय हो जाए, परंतु इनके चिंतन पर कोई अंतर नही पड़ने वाला। राष्ट्र की संस्कृति पर इतने व्यापक हमले की इन्हें सूचना यदि नही है तो यह अक्षम्य अपराध है, और यदि है और होने के उपरांत भी राष्ट्र से उसे छिपाया जा रहा है तो भी यह अक्षम्य अपराध है। राष्ट्र के नवयुवक का जागृत हो उठना आज समय की मांग है। उन पापियों से बचें जो राष्ट्र को पुन: गिरवी और गुलाम रखने पर उतारू बने हुए हैं। आज क्या हो गया अपने प्यारे भारत को? सोचता हूं तो हैरान हो जाता हूं।

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