सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया का सार [ हिन्दू राजनैतिक दल की आवश्यकता माला ] – भाग – 3

१७ . जहाँ शिवाजी महाराज किसी विदेशी को धर्म बदलने नहीं कहते थे ,वहीँ मुस्लमान शासक उन्हें पहले इस्लाम कबूलने की शर्त रखते थे पर यूरोप के बेचारे इन गरीब दुखियारों की दशा इतनी गड़बड़ थी कि वे सुखी जीवन के 

लिए रिलिजन त्याग कर मज़हब कबूल करने खींचे चले जाते थे .उसमे सेक्स की छूट और प्रोत्साहन भी एक आकर्षण होता था क्योंकि २० वीं शती ईस्वी के पूर्वार्ध तक पादरियों ने सेक्स पर भयावह प्रतिबन्ध लगाकर और स्वयं दुराचरण करते हुए यूरोप के नर नारियों का जीवन नरक बना रखा था जिस से मुक्ति के लिए भी इस्लाम एक आकर्षण वहां था और है .भारत के सेकुलरों का एक बड़ा वर्ग भी व्यभिचार के आकर्षण से ही उधर झुका हुआ हिन्दू द्वेष को बढ़ावा देता है .मानव की इस वृत्ति से ही अनेक घटनाएँ विश्लेषित हो पाती हैं .
१८ .शाहजहाँ के यहाँ एक लड़ाके फ्रेंच ने इस्लाम कबूला और वहां सिपाही बन गया कई अन्य फ्रेंचों के साथ .उन फ्रेंच इसाई से फ्रेंच मुसलमान बने लोगों की टुकड़ी को नाम दिया गया फिरंगी रेजिमेंट .उस बड़े लड़ाके फ्रेंच का नया नाम हुआ फरासीस खान .,.
शाह आलम द्वितीय ने एक भाड़े के जर्मन सैनिक मुखिया वाल्टर रेन्हार्ट समब्रे को मुसलमान बना कर नाम दिया सामारू .उसे दिल्ली के उत्तर एक जागीर पंजाब के दोआबे में दी जिसकी राजधानी बना सरधना . बीबी को नया नाम मिला फरजाना जेबुन्निसा .उस सैन्य दस्ते में फ्रेंच एवं मध्य यूरोपीय क्षेत्र के कई सौ सैनिक थे ..
१९ . आदिलशाह ने पुर्तगाली सैनिक सांचो पिरेज को मुसलमान बनाकर नाम दिया फिरंगी खान
२० . १७ वीं शताब्दी में भारत के राजाओं के यहाँ इतने अधिक अंग्रेज सैनिक की नौकरी में थे कि चार्ल्स द्वितीय ने १६८० में आदेश निकला कि अब भारत में कोई अंग्रेज भारतीय राजाओं की सेना की नौकरी नहीं करे . इधर भारतीय राजाओं से रोना रोया कि देखिये ये आपकी सेवा में ही रहेंगे पर हमारी टुकड़ी में रहें ,इस पर भारतीय राजाओं ने अंग्रेजों की कंपनी को अपनी कंपनीकी सुरक्षा के लिए भारतीय सैनिक भरती करने की अनुमति दे दी . इस प्रक्रिया में भारत के वीर सैनिक अपने राजाओं की अनुमति से कंपनी और फिर ब्रिटिश सेना में गए .इस प्रक्रिया को समझे बिना भारत की और हिन्दुओं की निंदा के मौके की तलाश में लगे लोग स्वयं को देश प्रेमी समझते हैं पर वे क्या हैं ,यह स्पष्ट है .
२१ . १५ वीं से १९ वीं शताब्दी तक भारतीय राजाओं की सेना में अनेक अंग्रेज नौकर थे . इसे समझे बिना : वे आये ,व्यापार किया ,गुलाम बनाया :रटने वाले तोते देश में केवल हीनता फैलायेंगे यद्यपि उनकी नीयत देश भक्ति की है .
२२ . न तो वे व्यापार के लिए यहाँ आये, न शासन के लिये, बल्कि किसी तरह जीने कमाने खाने आये थे , न ही उन्होंने अपने बल पर एक भी इंच भूमि जीती और न ही भारतीयों के बड़े हिस्से को पटाये बिना वे किसी भाग के शासक बने अतः हम उनके गुलाम कभी हुए नहीं .हम में से कुछ ने धर्ममय जीवन जिया ,कुच्छ ने पाप के लोभ में उनसे साझा किया . निंदा करनी है तो पाप पूर्ण साझेदारी की करिए जो आज भी जारी है .उसकी जगह धर्म का आग्रह कीजिये .देश के नाम पर गोल गोल मत घुमाइए
२३. अंग्रेजों की मुग्ध प्रशंसा और अपनी निरर्थक निंदा केवल यह बताती है कि आपका मन पाप के प्रति आकर्षित है .क्योंकि :
क . अंग्रेज कोई एक रूप जाति नहीं हैं ,वहां निरंतर हर बात पर अत्यधिक भिन्न मत रहे हैं और भारत में पापाचार अंग्रेजों ने नहीं किया ,कतिपय पापी अंग्रेजों ने ही किया है जो सब प्रकार से चरित्र हीन ,कृतघ्न और अमानवीय थे अतः आपका अंग्रेजों का गुण गाना कृतघ्नता ,नीचता और दुराचरण के गीत गाना है .
ख . विराट फलक पर देखें तो अंग्रेज मूर्ख सिद्ध हुए ,यह मूर्खता उन्हें ईसाइयत ke ek galat paath se mili jise ab samajhdaar log tyag chuke hain . वे चाहते तो आज तक घुल मिलकर भारत में रहते और हिन्दू बनकर अत्यंत आत्मीयता पाते .व्यापार में उचित स्थान पाते पर कुछ पागल किस्म के उन्मत्त पंथ प्रचारकों ने उनका दिमाग इतना खाया कि वे भारत को ईसाई बनाने की योजना को छिपे तौर पर शाह देने लगे और इसीलिए मार भगाए गए यही बात कांग्रेस को खा जाएगी .
२४ . सत्ता की समस्त प्रक्रिया को और उसमे निहित अर्थ और मूल्यों को समझिये तभी आप कुछ कर सकेंगे । (क्रमशः)

(साभार) प्रस्तुति -श्रीनिवास आर्य

Comment: