गाय का दूह कर
कुत्तों को न पिलायें
– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या और कुछ नहीं है, यह है अपात्रों के लिए काम करने, मार्गदर्शन देकर उन्हें प्रोत्साहित करने और उनके लिए जी-जान से समर्पित होकर काम करने वालों की संख्या में विस्फोटक इजाफा होना। जो पात्र लोग हैं उन्हें यह सोचना चाहिए कि वे अपात्रों को संबल देकर अपना कीमती समय और श्रम तो जाया कर ही रहे हैं, समाज के लिए ऎसे रक्तबीज पैदा कर रहे हैं जो आपके लिए भले ही आश्रयदाता, धनदाता, भोग-विलासदाता हों, मगर पूरे समाज या राष्ट्र के लिए इनकी मौजूदगी और शक्ति सम्पन्न होना आत्मघाती है।
यही कारण था कि पुराने जमाने में कोई कैसा भी हुनरमंद या विलक्षण व्यक्तित्व सम्पन्न आदमी होता था, उसे समाज और देश के किसी भी काम में लगाने से पहले उसकी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से इस बात की परीक्षा ली जाती थी कि वह कितने अनुपात में ईमानदार, संवेदनशील व समाजोन्मुखी है, कितना देशभक्त है और समाज तथा देश के किस काम में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके बाद ही उसे उसकी योग्यता के अनुरूप कोई उपयुक्त काम सौंपा जाता था। इसके उपरांत भी कई ऎसी छलनियाँ हुआ करती थीं जो उसके काम-काज और व्यवहार पर निगाह रखते हुए उसके पूरे व्यक्तित्व का मूल्यांकन करती थी।
यही कारण था कि व्यवस्थाओं का सशक्त नेटवर्क सम्पूर्ण समुदाय और राष्ट्र को पूरी मजबूती के साथ बाँधे रखता था और बीच की कोई सी कड़ी या सूत्र कमजोर होता अथवा दुर्बलता, विश्वासघात या उदासीनता दर्शाता, उस पर बिना कोई देर किए तत्काल समाज और देशहित में सख्त निर्णय लिया जाता।
आज अपनी सारी समस्याओं की जड़ यही है कि न पात्रता पर कोई ध्यान हम दे पा रहे हैं, न हमारे पास वो पैनी निगाह है जिससे दूर की थाह पा सकें। यहाँ तो हर बाड़ा हर किसी के लिए उपयोगी हो जाता है, भले ही वह समुदाय या देश के लिए उपयोगी न हो। फिर एक बार किसी बाड़े में घुस गए तो आजीवन उसी में जमे रहने लगते हैं और ऎसा व्यवहार करने लगते हैं जैसे कि किसी अभेद्य सुरक्षा कवच को ओढ़कर सुरक्षित अभयारण्य में घुसे हुए हों।
बात हम सभी से जुड़ी हुई है। एक पुरानी कहावत है – गाय का दूध दूहकर कुत्तों को न पिलायें। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि जो कुछ हो, वह उन लोगों के लिए हो जो पात्रता रखते हैं। पर आजकल हम लोग पात्रता की बजाय अपने स्वार्थ देखने लगे हैं। हमें किसी की पात्रता या योग्यता से कोई मतलब नहीें है, हमें सिर्फ अपने कामों से मतलब रह गया है।
हम उन सभी लोगों, संगी-साथियों को अपना बनाने के लिए जिन्दगी गुजार देते हैं , उनकी चापलुसी व जयगान करते हुए परिक्रमाएँ करते हैं, सहलाते-पुचकारते हैं, उनके अपने होने के लिए शर्म-लज्जा सब कुछ छोड़-छाड़कर पूरी तरह सामने पसर जाते हैं, कुछ भी करने और करवाने में आनंद पाने लगते हैं जो लोग हमारे छोटे-बड़े स्वार्थों को पूरे कर दें, कोई पद-प्रतिष्ठा की जलेबी पकड़ा दें, बिना परिश्रम किए मुद्राओं की थैली हमारे हाथ में थमा दें, जमीन का कोई ब्रेडनुमा टुकड़ा पकड़ा दें या फिर हमारे कुकर्मों पर परदा डालने में उपयोगी हों। शर्मनाक दुर्भाग्य ये कि हम अपनी पहचान को खोकर दूसरों की पहचान तलाशते रहते हैं और पहचान मिल जाने पर उस पर गर्व भी करने लगते हैं।
जब से हर कर्म में पात्रता की उपेक्षा और स्वार्थ को तवज्जो मिलनी शुरू हुई है, देश में गुणात्मकता का ह्रास हुआ है और समस्याओं का ताण्डव पसरने लगा है। यही कारण है कि अपार बौद्धिक सामथ्र्य और हर प्रकार की क्षमताओं के बावजूद हम लोग स्वदेश का अभिमान भुलाकर विदेशियों के तलवे चाट रहे हैं।
हम सभी को इस बात पर गंभीरतापूर्वक चिंतन करना होगा कि हमारे बाप-दादाओं ने आखिर यह संदेश क्यों दिया होगा कि गाय का दूह कर कुत्तों को न पिलायेें। इसके पीछे उनके सदियों पुराने अनुभव रहे होंगे, और यह आशंका भी उनके मन में कहीं न कहीं रही होगी कि उनके गौरवशाली वंशज ऎसा भी कुछ कर सकते हैं जिससे कि पुरखों, समुदाय और देश को नीचा देखना पड़े।
जो कुछ करें पात्रता देखकर ही करें। हममें से कई लोग ऎसे हैं जिनको भूतकाल में अपना सामीप्य पाने वाले लोगों के बारे में आम शिकायत होती है कि ये लोग अब भ्रष्ट-बेईमान, बिगड़ैल या अहंकारी हो गए हैं । उन्हें पता होता कि वे ऎसे नालायक निकल जाएंगे, तो कभी उनकी मदद नहीं करते। इसमें दोष उनका नहीं है, उनके भाग्य में जो लिखा था वह उन्हें नसीब हुआ। दोष हमारा ही है जो हमने पात्रता को देखे बगैर उन्हें शिक्षित-दीक्षित कर दिया और सारे गुर सिखा दिए।
ऎसे अपात्र लोग समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं जो आसुरी भावों के साथ समुदाय की जड़ों को खोखला करते रहते हैं और अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को हमेशा हर क्षण तैयार रहते हैंं। अब भी समय बाकी है, जो कुछ दें, पात्रता देखें, वरना हम भी समाज और देश के अपराधी माने जाएंगे और आने वाली पीढ़ियां कोसने में कहीं कोई चूक नहीं करने वाली। नई पीढ़ी अब निर्भय और मुखर होने लगी है, इस बात का ख्याल रखें।