‘जगमग दीपज्योति’ पत्रिका न केवल भारत की बल्कि विश्व की अग्रणी पत्रिकाओं में अपना प्रमुख स्थान रखती है । इसे हिंदी जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान माननीय सुमति कुमार जैन जी अलवर से प्रकाशित करते हैं । उनके द्वारा मेरी पुस्तक ‘हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी’ – की समीक्षा को इस पत्रिका में स्थान दिया गया है । जिसके लिए मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। समीक्षा आपके अवलोकनार्थ यहां सादर प्रस्तुत है :-
‘हमारी राष्ट्रभाष हिन्दी : लेखक-डॉ. राकेश कुमार आर्य, प्रकाशक-अनु प्रकाशन, 958, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर, मूल्य-250/-रू.,
समीक्षक-(श्रीमती) माधुरी पालावत, साहित्य समीक्षा स्तंभ संयोजिका, जगमग दीपज्योति (मा.) पत्रिका, महावीर मार्ग, अलवर (राज.) 301001
जीवन में सम्पूर्ण बोध की प्राप्ति के लिए मानवीय अंतस में एक गहन अभीप्सा/प्यास सदैव रही है, उस लहर की तरह जो लहर की सीमा लांघकर सागर बन जाना चाहती है। ऐसा ही व्यक्तित्व है डॉ. राकेश कुमार आर्य का। वे महान कर्मयोगी, कवि, साहित्यकार, चिन्तक, समाजसेवी हैं एवं उन महान विभूतियों में अग्रणी हैं जिनका सम्पूर्ण जीवन सत्-चिन्तन में व्यतीत होता है तथा जिनका साहित्य यथार्थ का दर्शन कराता है।
डॉ. आर्य एक महान युग दृष्टा हैं-उनका रचना संसार विराट है, सारस्वत साधना के एक तपोनिष्ठ साधक हैं साथ ही वाणी के आराधक भी हैं। साहित्य साधना में सतत रत रहने वाले, उत्कृष्ठ साहित्य सृजन कर अपनी कालजयी कृतियों से हिन्दी वाँगमय को समृद्ध करने वाले, अनेकों साहित्यिक सम्मानों से विभूषित, डॉ. आर्य अपनी विलक्षण प्रतिभा से साहित्य का अखंड दीप जलाकर कर्म को पूजा, सेवा को धर्म और साहित्य को अपना जीवन मानते हैं। सत्-साहित्य के जीवनोपासक साधक, सरल स्वभावी, मनीषी, सरस्वती माँ के वरद-पुत्र, सौम्य, शालीन व्यक्तित्व के धनी हैं और हिन्दी के जाने माने यशस्वी साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आपने हिन्दी रूपी प्राण-शक्ति का संधान ही नहीं किया है अपितु उसका संवर्धन भी किया है। साहित्य के शिखर पुरुष एवं सशक्त हस्ताक्षर नेे सर्जना के क्षेत्र में मानस को एक नई ऊर्जा दी है और साहित्य से समाज को जोडऩे का स्तुत्य प्रयास किया है।
उनकी नवीन कृति ‘हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी’ का प्रकाशन हुआ है, जिसमें लेखक ने जिन आयामों को स्पर्श किया है वे ज्ञानोन्वेषक हैं। डॉ. आर्य ने अपनी इस कृति को अप्रतिम सारस्वत साधना, अडिग़ संकल्प, सद्भावना और अनवरत श्रम साध्य सर्जना से संजोया है और साहित्य की लोक पल्लवित एवं मान्य विधाओं का सृजन किया है जो गंगा सी शुचिता एवं राजहंस सी विमल दृष्टि बांटने में समर्थ है।
विद्वान लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य जी ने अपनी इस पुस्तक में हिन्दी की उपयोगिता और अनिवार्यता को जहां स्पष्ट किया है वहीं इसकी सर्व स्वीकार्यता पर बल दिया है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के दृष्टिकोण से हिन्दी ही वह भाषा हो सकती है जो सारे देश को एक सम्पर्क सूत्र में बांध सकती है। हम हिन्दी हैं एवं वतन हमारा हिन्दुस्तान है और हमारी वाणी मन्दिर की अधिष्ठात्री है। हिन्दी जो राष्ट्र की आत्मा है, भारत की भारती है, देश का दिल है। इतिहास, साहित्य, शिक्षा और संस्कृति के संस्कार की संजीवनी है, साहित्य का चन्दन है, विज्ञान का वंदन है, राजनीति का अर्चन है, धर्म, अध्यात्म और दर्शन का अभिनंदन है, काश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से बंगाल तक के लोगों के हृदय का स्पन्दन हैं। श्रीराम का चरित्र है, श्रीकृष्ण का दर्शन है और भगवान श्री शंकर की जटाओं से निकली गंगा है। शब्द ब्रह्म के भाव तत्व का सत्य है, प्रकृति और पुरुष के प्रेम-तत्व का सुन्दरम है हिन्दी। सत्यं शिवं सुन्दरम है, सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम व जन गण मन अधिनायक है हिन्दी।
लेखक ने अपनी कृति में हिन्दी की व्याख्या के द्वारा वामन से विराट के दर्शन कराने वाले 22 शोधपूर्ण लेख विभिन्न शीर्षकों से प्रकाशित किए हैं जो क्रमश:-‘आओ समझें : हिन्दी अक्षरों का वैज्ञानिक स्वरूप भाग-(1 से 5 तक)Ó से प्रारम्भ कर ‘जर्मन विद्वान मैक्समूलर और भारतीय भाषा’ तक वर्णित किये हैं जो लेखक की प्रज्ञाजन्य प्रखर अनुभूतियों की प्रतिभापूर्ण अभिव्यक्ति हैं और साहित्य में सत्य की भव्यता, शिवं की दिव्यता और सुन्दरं की अलौकिकता का रहस्य खोलती है। चिन्तन और चेतना के क्षेत्र में युगबोध है, लोकमंगल की भावना के सौन्दर्य का दिग्दर्शक है। लेखक ने राष्ट्रवाद, राष्ट्रवादिता और राष्ट्रीयता को भी प्रकट करने वाले लेख प्रकाशित किए हैं ,जो राष्ट्रभाषा के प्रति भी समर्पित हैं। हिंदी राजभाषा है-राष्ट्रभाषा है-सम्पर्क भाषा है, मानक भाषा है और सबसे बढ़कर विश्व भाषा है। विश्व के 175 देशों में हिन्दी अपनी कीर्ति पताका फहरा रही है। वहाँ के विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। हिन्दी पर शोधकार्य हो रहे हैं। हिन्दी का साहित्य विराट है-उसका व्यापक विस्तार है ,विपुल भंडार है और उसका सौन्दर्य अलौकिक और अपार है। इसकी सर्वोच्चता और सार्वभौमिकता को कोई माने या न माने विश्व की सर्वाधिक जनता कहती है – हम हिन्दी हैं। कहा भी गया है-
एक दिन ऐसा होयगा जब हिन्दी का होगा संसार।
घर घर इसकी पूजा होगी हिन्दी की होगी सरकार।।
आशा की जाती है कि लेखक द्वारा वर्णित लेखों पर पाठक चिन्तन-मनन करेंगे और अपनी हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए कटिबद्ध होंगे। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि डॉ. आर्य साहित्य के इस महत्वपूर्ण उर्जस्वी ज्ञान से अपना जीवन सम्पूर्ण समन्वय, शान्ति और आनन्द पूर्वक व्यतीत करते रहें और भविष्य में भी ऐसी कृतियों से हमें लाभान्वित करते रहें। सुन्दर प्रस्तुति के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं। हार्दिक शुभकामनाएं।