सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया का सार [ हिंदू राजनीतिक दल की आवश्यकता माला] – भाग – 1

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( भारत के अभिजनों के लिए ही है यह लेखमाला यानी सचमुच अभिजन मानते हों जो स्वयं को और भारतीय हों उनके लिए है । आम आदमी , फलां दल के समर्थक आदि के लिए यह व्यर्थ और अनुपयोगी है. यह अति विशेष लोगों के लिए है । कृपया टिप्पणी करने का अधिकार तभी मानें जब स्वयं को अति विशेष मानें । बाकी अनधिकृत तो लोग गोली ही चला देते हैं ,बोली पर कहाँ रोक है )
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१. जो लोग भारत को अंग्रेजों का गुलाम रहा बताते हैं , वे सत्य का अंश भी नहीं जानते।
२ . या तो वे भारत और इंग्लैंड के विषय में कुछ नहीं जानते , अल्प मति और अल्पज्ञ हैं या उनके जीवन में सत्य और ज्ञान की कोई जिज्ञासा है ही नहीं और सत्ता में बैठे शक्तिशाली दिख रहे लोगों की बातें उत्साह से दुहराना उन्हें सुरक्षा और मानसिक सहारा देता है ( ऐसे लोग समस्त विश्व में ७० प्रतिशत से अधिक हैं और इंग्लैंड आदि में ऐसे लोग हमारे यहाँ से बहुत ज्यादा हैं ।).ऐसे लोग बेचारे केवल दुहरा सकते हैं राजा की बात ।
३. इंग्लैंड छतीसगढ़ के बराबर है और वह पहले १८ वीं शती ईस्वी के प्रारम्भ तक २० राज्यों में बंटा था जो परस्पर युद्धरत थे । वह अति असंगठित समाज था और आपसी लडाई में अत्यधिक डूबा था जबकि ८० प्रतिशत लोग दास जीवन जीने को विवश थे ।
४ जबसे उन्हें १४ वीं १५ वीं शती में (कुछ लोगों को )खबर लगी (किस्सों की शक्ल में ) कि भारत में अनंत सोना ,धन और जवाहरात हैं ,तब से वे भारत आकर लूट कर ले जाने की कल्पना करने लगे । उनको यह भी नहीं पता था कि भारत के व्यापारी भी सैन्य बल रखते हैं और लूट असंभव है क्योंकि आसपास छिनैती और डकैती उनके दुस्साहसी लोगों का स्वभाव था ,शेष लोग कष्ट सहन को God का आदेश मानकर कष्ट सहन को उद्धार का मन्त्र मान दबे रहते थे ।
५. १५ -१६ वीं शताब्दी में जब वे दर्जनों की संख्या में पहुँच पाए तो धीरे धीरे भारत की विशालता और विराटता का अनुमान हुआ पर वैसा ही जैसे किसी बड़े नरेश को देखकर भिखारी को हो पाता है ।
६. वे टुकड़े पाकर ही बौराने लगे । अनेक लोग यूरोप से आ आकर १७ वीं शताब्दी ईस्वी से भारतीय राजाओं के यहाँ नौकरी ढूँढने और करने लगे ।
७. उन्होंने देखा कि भारत में विशाल राज्य हैं और अत्यधिक समृत्द्धि है । वहां जाकर इसका महत्त्व बताया ,वे हिन्दुओं के मुग्ध प्रशंसक हो उठे .ऐसी प्रशंसा कही और हाथ से लिखी जाने लगी कि किसी हिन्दू ने अपने समाज की वैसी प्रशंसा आज तक नहीं की है ।
८ . तब वहां कई east India कम्पनीज बनीं कि कुछ कमाई करें ।
९ . मसाले ,चीनी, गन्ना ,तम्बाकू सूती वस्त्र आदि उनके लिए साक्षात् स्वर्ग की विलास सामग्रियां थीं ,न कभी देखा, ना चखा ,न पहना ओधा . साक्षात् स्वर्ग .की अतुल संपदा ।
१०. भारत के राजाओं से मसाले के व्यापार की अनुमति पाकर वे ऐसे बौराए जैसे आज कल के कुछ नेता रूस अमेरिका में प्रशंसा पाकर बौराते हों ।
११. बंगाल के २ जिलों की लगान वसूली यानी तहसीलदारी जैसी नौकरी पाकर वे झूम उठे ,असंतुलित हो गए ,जैसे हउहा भुक्खड़ भोजन पर टूटे।   (क्रमश:)

(साभार)प्रस्तुति – श्रीनिवास आर्य

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