ओ३म्
============
हम अपने पचास वर्षों के आर्यसमाज से जुड़े जीवन में अनेक ऋषिभक्तों के सम्पर्क में आये हैं और उनसे वैदिक विषयों पर वार्तालाप किया है तथा उनके अनुभवों को जाना है। ऐसे ही हमारे एक मित्र श्री ललित मोहन पाण्डेय हैं। आप 40 से अधिक वर्षों से हमसे जुड़े हैं। इस अवधि में हम परस्पर एक दूसरे से मिलते भी रहे हैं। हमारे अनेक मित्र हैं जो श्री पाण्डेय जी से जुड़े हुए हैं। श्री पाण्डेय ने ऋषि के प्रायः समस्त ग्रन्थों, जीवनचरित्र तथा ऋषि के वेदभाष्य सहित उपनिषद तथा दर्शनों को भी पढ़ा है। वैदिक सिद्धान्तों पर आपका ज्ञान एक उच्च कोटि के विद्वान के समान है। योग साधना में आपकी गहरी रूचि रही है। कुछ समय से श्री पाण्डेय रुग्ण चल रहे हैं अतः आज हम अपने एक मित्र श्री आदित्य प्रताप सिंह के साथ उनसे भेंट करने उनके निवास स्थान पर पहुंचे। पूर्व की भांति आज भी हमारी श्री पाण्डेय जी से आर्यसमाज विषयक चर्चायें हुईं। हम इस लेख के माध्यम से श्री पाण्डेय जी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी का जन्म पिता श्री गया दत्त पाण्डेय तथा माता श्रीमती कौशल्या देवी जी से दिनांक 17 मार्च, सन् 1948 को हुआ था। आपके दादा जी का नाम श्री लक्ष्मीदत्त पाण्डेय था। आपका पैतृक निवास उत्तराखण्ड के कुमाऊं मण्डल के जिला अल्मोड़ा का एक ग्राम पानग्राम है। पिता कक्षा 10 तक के विद्यार्थियों के हिन्दी के अध्यापक थे जो मुरादाबाद के एक मिशनरी स्कूल पारकर इण्टर कालेज में अध्यापन का कार्य करते थे। पिता बी.ए., एल.टी. शिक्षित थे। आपके गांव के प्रायः सभी लोग खेती बाड़ी से अपना जीवनयापन करते थे। ललित मोहन जी की एक बहिन और एक भाई कुल तीन भाई बहिन हुए। आपकी बहिन विवाहित थीं जिनकी दो पुत्रियां हैं। 35 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो चुकी है। ललित जी की शिक्षा मुरादाबाद में इण्टर तक हुई। आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं नेता महात्मा नारायण स्वामी जी भी मुरादाबाद के ही निवासी थे।
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी ने सन् 1966 में प्रथम सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश में कनाल सुपरवाइजर के पद पर अल्पकालिक नियुक्ति प्राप्त की थी। कुछ समय बाद आपकी यह नौकरी छूट गई थी। सन् 1966 में ही आपकी सिंचाई विभाग में मौसम पर्यवेक्षक के पद पर नियुक्ति हुई और आप इस पद पर रहते हुए शिवपुरी, ऋषिकेश-उत्तराखण्ड में कार्यरत रहे। कुछ वर्ष बाद आपको देवप्रयाग की अन्य वेधशाला में स्थानान्तरित कर दिया गया था। यहां से आपको ऋषिकेश स्थानान्तरित किया गया जहां आपको एक लिपिक का कार्य करना होता था। बाद में सन् 1978 में आपको सिंचाई विभाग में अमीन का पद प्रदान किया गया। अमीन से पहले के सभी पद आपके अस्थाई पद थे। अमीन का पद नियमित पद था और इस पद पर कार्य करते हुए आपका निवास तथा कार्यालय देहरादून नगर रहा। 14 वर्ष तक अमीन के पद पर कार्य करने के बाद आपकी सन् 1992 में पदोन्नति हुई और आपको जिलेदार बना दिया गया। जिलेदार के पद पर पदोन्नति के साथ आपको देहरादून से नरेन्द्रनगर-उत्तराखण्ड स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया गया। जिलेदार के बाद आपकी ‘उप-राजस्व अधिकारी’ के पद पर पदोन्नति हुई और आपको नरेन्द्रनगर से काशीपुर स्थानान्तरित कर दिया गया। सन् 2000 में आपका स्वास्थ्य कुछ गड़बड़ रहा। इस कारण आपने विभाग से कई वर्ष पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी ने आयु. बीना पाण्डेय जी से सन् 1979 में विवाह किया था। आपका एक पुत्र एवं एक पुत्री हैं। देहरादून में आपका निजी निवास है। पुत्री सरकारी सेवा में है और हरिद्वार में अपने पीहर में निवास करती हैं। पुत्र, पुत्रवधु व एक पौत्र आपके साथ देहरादून में निवास करते हैं। पाण्डेय जी अपने आरम्भिक जीवन में ब्रह्माकुमारी मत से प्रभावित रहे। आप सन् 1970 से 1973 तक के लगभग तीन वर्ष इस मत से जुड़े रहे। सन् 1973 में आप शिवपुरी, ऋषिकेश में सरकारी सेवा में कार्यरत थे। वहां आपका सम्पर्क एक ऋषि दयानन्द जी के भक्त बिहार निवासी श्री बिन्देश्वरी प्रसाद सिंह से हुआ। श्री बिन्देश्वरी प्रसाद शिक्षा से इंजीनियर थे परन्तु आरम्भ में आपकी नियुक्ति गौज रीडर के पद पर हुई थी। अपनी योग्यता से आप विभाग में जूनियर इंजीनियर बने और बाद में उपनिदेशक के पद पर रहे। इस पद पर कार्य करते हुए मानसिक शान्ति की दृष्टि से आपने 4 वर्ष पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और मुम्बई की जलवायु को अच्छा जानकर वहां चले गये। आपके एक पुत्र श्री प्रणव दूरदर्शन पर संस्कृत समाचारों का वाचन करते हैं। श्री प्रणव जनकपुरी आर्यसमाज के सक्रिय सदस्य हैं।
श्री ललित मोहन पाण्डेय जी पर श्री बिन्देश्वरी प्रसाद जी के वैदिक वा आर्य विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। आप दोनों धार्मिक व सामाजिक विषयों पर वार्तालाप किया करते थे। इस वार्तालाप व बहस में ब्रह्माकुमारी मत के सिद्धान्त खण्डित हो जाते थे। निरन्तर एक वर्ष तक यह सिलसिला चला और आपने ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के वैदिक विचारों का ग्रहण तथा ब्रह्माकुमारी मत का त्याग कर दिया। श्री पाण्डेय हमारे एक मित्र श्री धर्मपाल सिंह के सहकर्मी व मित्र थे। श्री धर्मपाल सिंह जी ने ही हमें आर्यसमाज से परिचित कराकर ऋषि दयानन्द का अनुयायी बनाया था। हम श्री धर्मपाल सिंह के आजीवन ऋणी रहेंगे। श्री धर्मपाल सिंह हमें श्री ललित मोहन पाण्डेय जी के ब्रह्माकुमारी मत से जुड़ा होने और बाद में आर्यसमाजी बनने के बारे में बताया करते थे। हमें पता नहीं था कि एक दिन श्री ललित मोहन पाण्डेय भी हमारे अंतरंग मित्र बनेंगे। श्री धर्मपाल सिंह जी की 31 अक्टूबर, 2000 को 47 वर्ष की आयु में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। हमें लगता है कि यदि श्री धर्मपाल सिंह से हमारा परिचय व मित्रता न हुई होती तो हम आर्यसमाज के अनुयायी न बन पाते। ईश्वर का धन्यवाद है कि हम श्री धर्मपाल सिंह के सम्पर्क में आये और उनकी संगति से आर्यसमाजी बने।
श्री ललित मोहन पाण्डेय ने श्री बिन्देश्वरी प्रसाद जी की संगति व प्रेरणा से सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ तथा इतर अनेक वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन किया था। आप जनज्ञान मासिक के भी पाठक बने थे। इनसे इतर भी आर्य साहित्य का आप अध्ययन करते थे। इससे आपका हृदय पूर्णतया एक वैदिक धर्मानुयायी का हो गया था। अतः आपने प्रथम बार सन् 1983 में आर्यसमाज धामावाला, देहरादून की सदस्यता ली थी। आर्यसमाजी जीवन में आपने आर्यसमाज में अनेक विद्वानों को सुना। आप वैदिक साधन आश्रम, तपोचवन-देहरादून में निवास करने वाले स्वामी सोम्बुद्धानन्द सरस्वती के निकट सम्पर्क में आये थे। उनके व्यक्तित्व एवं विचारों से भी आप प्रभावित थे। हमारा भी स्वामी सोम्बुद्धानन्द जी से निकट सम्पर्क रहा। हमने स्वामी जी के आर्यसमाज धामावाला देहरादून तथा अपने विभाग भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में साप्ताहिक योग शिविर एवं वेद प्रवचनों का आयोजन सन् 1980 में किया था। श्री ललित मोहन पाण्डेय देहरादून के अखिल भारतीय महिला आश्रम के उत्सव में पहली बार स्वामी दिव्यानन्द जी, योगधान, हरिद्वार से मिले थे। आप उनके उपदेश से प्रभावित हुए थे।
इसके बाद से आप स्वामी दिव्यानन्द से भी जुड़े गये और उनके हरिद्वार स्थित योगधाम आश्रम के साप्ताहिक शिविरों में नियमित रूप से सम्मिलित होते थे। आपने स्वामी जी से योग के विषय में अनेक प्रकार की विशेष जानकारियां प्राप्त की थीं व उनका अभ्यास किया। स्वामी सत्यपति जी, रोजड़ देहरादून में मानव कल्याण केन्द्र के वार्षिकोत्सव में प्रतिवर्ष आते थे। उनके भी योग विषयक प्रवचनों से आपकी योग में गहरी प्रवृत्ति बनी और आपने अपने युवा व प्रौढ़ अवस्था में घण्टो योग का अभ्यास किया। आपका योग में ध्यान भी लगता था और कुछ घण्टो तक आप ध्यान में तल्लीन रहा करते थे। हमारे प्रश्न करने पर पाण्डेय जी ने बताया कि पहले ईश्वर में उनका अच्छा ध्यान लगता था परन्तु अब नहीं लगता। पहले एक से डेढ़ घंटे तक वह एकाग्र होकर ईश्वरोपासना करते थे। ध्यान करते हुए उन्हें इसमें रस व आनन्द की अनुभूति होती थी। ध्यान के बाद दिन भर शरीर में हल्केपन का आभास होता था। जब ध्यान लगाते थे तो उसके बाद काफी समय तक पाण्डेय जी का मस्तिष्क हल्का रहता था। हमने भी अपने जीवन में स्वामी सत्यपतिजी को मानव कल्याण केन्द्र देहरादून, वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून तथा आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सत्संगों में सुना है। उनके प्रवचन बड़े प्रभावशाली हुआ करते थे।
पाण्डेय जी ने बताया कि उन्होंने ऋषि दयानन्द के ऋग्वेद व यजुर्वेद भाष्य को आंशिक रूप से पढ़ा है। अनेक वैदिक विद्वानों से मिलकर धर्म विषय में चर्चायें भी की हैं। वह दयानन्द सन्देश, वेदप्रकाश, आर्षज्योति तथा जनज्ञान पत्रिकायें मंगाते रहे हैं। पूछने पर उन्होंने कहा कि वह आर्यसमाज की वर्तमान स्थिति को सन्तोषजनक नहीं पाते। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज की वर्तमान स्थिति देखकर क्षोभ होता है। अब आर्यसमाज अपनी प्रारम्भिक अवस्था में नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्हें आर्यसमाज का भविष्य अधिक उत्साहवर्धक दिखाई नहीं देता।
लगभग दो वर्ष पूर्व दिनांक 7-10-2018 को श्री ललित मोहन पाण्डेय जी की पत्नी श्रीमती बीना पाण्डेय जी का निधन हो गया था। वह काफी समय तक रुग्ण रही थीं। पाण्डेय जी का स्वास्थ्य भी काफी समय से कुछ खराब रहता है परन्तु वह अपने स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखते हैं और रोगोपाचार में किसी प्रकार का व्यवधान व उपेक्षा नहीं करते। भोजन आदि में भी आप संयम का परिचय देते हैं। कुछ दिनों से उनको नस नाड़ियों में विकार के कारण एक पैर में दर्द होता है। वह चल फिर नहीं पाते। दर्द समय के साथ बढ़ रहा है। कुछ सप्ताह पूर्व आपने इस रोग के कारण रीढ़ की हड्डी के निकट कुछ शल्य क्रिया भी कराई है। वर्तमान में उनका घूमना फिरना पूरी तरह से अवरुद्ध है। यह कष्ट का विषय है। ईश्वर से प्रार्थना है कि श्री पाण्डेय जी शीघ्र स्वस्थ होकर अपने निजी व सामाजिक गतिविधियों को निभाते रहें। वह स्वस्थ एवं दीर्घजीवी हों। यह ईश्वर से प्रार्थना है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य