शत-प्रतिशत प्रभाव वाली वैक्सीन की बात सोचना ठीक नहीं – डॉ. भार्गव

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हरजिंदर

अगर हम वैक्सीन का पूरा इतिहास देखें तो शत-प्रतिशत प्रभाव वाली वैक्सीन बहुत कम ही हुई हैं। जिन वैक्सीन ने दुनिया को पिछली कई महामारियों से मुक्ति दिलवाई उनमें कोई भी शत-प्रतिशत प्रभाव वाली नहीं थी।

इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक बलराम भार्गव का यह बयान बहुत से लोगों को निराश कर सकता है कि सरकार ऐसी किसी भी वैक्सीन को मान्यता देने को तैयार है जो 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में प्रभावी साबित होगी। अभी तक पूरी दुनिया जब दम साध कर कोरोना वायरस की वैक्सीन का इंतजार कर रही है तो आम धारणा यही बनी हुई है कि वैक्सीन आते ही समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाएगी और जो वैक्सीन लगवा लेगा वह कोविड-19 के प्रकोप से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। वैसे डॉक्टर बलराम भार्गव ने जो बात कही है वह उनका निजी विचार नहीं है। ऐसा लगता है कि आधिकारिक रूप से यही सरकारी नजरिया भी है। सेंट्रल ड्रग एंड स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी 50 फीसदी से अधिक प्रभाव वाली वैक्सीन को अपनाए जाने की बात कही है।

डॉ. भार्गव ने कहा है कि शत-प्रतिशत प्रभाव वाली वैक्सीन की बात सोचना ठीक नहीं होगा क्योंकि श्वास संबंधी रोगों के मामले में अभी तक कोई भी पूर्ण प्रभावी वैक्सीन नहीं बन सकी है। वैक्सीन को अपनाए जाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिन तीन शर्तों का जिक्र किया है उसके हिसाब से भी उनके इस बयान को देखा जाना चाहिए। ये तीन शर्तें हैं- एक तो वैक्सनी पूरी तरह सुरक्षित हो, दूसरे कोरोना वायरस के खिलाफ वह शरीर को इम्युनिटी देती हो और तीसरे वह आधे से ज्यादा मामलों में प्रभावी साबित हो।

अगर हम वैक्सीन का पूरा इतिहास देखें तो शत-प्रतिशत प्रभाव वाली वैक्सीन बहुत कम ही हुई हैं। जिन वैक्सीन ने दुनिया को पिछली कई महामारियों से मुक्ति दिलवाई उनमें कोई भी शत-प्रतिशत प्रभाव वाली नहीं थी। दुनिया की पहली वैक्सीन एडवर्ड जेनर ने बनाई थी जो चेचक की वैक्सीन थी। उस वैक्सीन ने दुनिया में पहली बार चेचक का प्रकोप कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन वह वैक्सीन भी शत-प्रतिशत सफल वैक्सीन नहीं थी। इसी तरह जिस समय मुंबई से प्रवेश करने के बाद प्लेग पूरे भारत में लाखों जानें ले रहा था तो वाल्डेमर हाफकिन ने मुंबई में इसके लिए एक वैक्सीन तैयार की थी। उस वैक्सीन का प्रभाव 50 फीसदी ही था। लेकिन इसके महत्व को हमें दूसरी तरह से समझना होगा। प्लेग एक ऐसा रोग था जिसमें उस समय मृत्यु दर 90 फीसदी से भी ज्यादा थी। उस समय तक लोगों को इस रोग की मार से बचाने के लिए कोई भी दवा उपलब्ध नहीं थी और किसी और तरह से इसका इलाज भी नहीं हो सकता था। ऐसे में 50 फीसदी प्रभाव का पहला अर्थ तो यह था कि आधे से ज्यादा लोगों की जान बचा लेना। हालांकि इस 50 फीसदी असर वाली वैक्सीन से ही बाद में कई शहरों से प्लेग पूरी तरह खत्म भी हो गया।

कैसे? इस पर हम बाद में विचार करेंगे। पहले यह समझ लें कि प्लेग के मुकाबले कोविड-19 की वर्तमान महामारी ज्यादा खतरनाक नहीं है। पूरी दुनिया में ही इससे होनी वाली मृत्यु दर बहुत कम है और भारत तो उन देशों में है जहां यह मृत्यु दर और भी कम है। लेकिन फिर भी वैक्सीन शत-प्रतिशत सफल नहीं होगी यह बात बहुत से लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे। भ्रम इस बात को लेकर भी है कि कम प्रभाव का क्या असर होगा? क्या आधे लोग संक्रमण से बच जाएंगे और बाकी संक्रमित होने के लिए बाध्य होंगे? इन सवालों का जवाब जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि वह वैक्सीन जिसका असर भले ही पूरा न होता हो वह पूरे समाज या समाज के एक बड़े हिस्से को कैसे बचा सकती है।

संक्रमण विज्ञान में एक धारणा हर्ड इम्युनिटी की है। इसके अनुसार अगर आप समाज के 55 से 60 फीसदी लोगों को किसी संक्रमण से बचा लेते हैं तो एक तरह से समाज के बहुत बड़े हिस्से को संक्रमण से बचा लेते हैं। ऐसे में रोग का पूरी तरह से सफाया तो नहीं होता लेकिन वह अपवाद स्वरूप ही दो चार लोगों को होता है। इस तरह के संक्रमण दरअसल एक व्यक्ति से दूसरे और दूसरे से तीसरे में होते हुए पूरे समाज में फैल जाते हैं। लेकिन अगर समाज के बहुमत को किसी तरह से सुरक्षा कवच मिल जाए तो ये कड़ियां टूट जाती हैं और संक्रमण बहुत ज्यादा नहीं फैल पाता। कोई भी वैक्सीन दरअसल एक साथ दो काम करती है। एक तो वह आबादी के बहुत बड़े हिस्से को सीधे तौर पर संक्रमण से लड़ने के लिए इम्युनिटी देकर उन्हें बचाती है। दूसरे जब इसका इस्तेमाल व्यापक तौर किया जाता है तो इसके प्रभाव की वजह से उन लोगों का भी बचाव होता है जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली या जिन लोगों पर इसने अपना असर नहीं दिखाया है।

इसलिए 50 फीसदी से ज्यादा असर वाली कोई भी वैक्सीन इस काम को अच्छी तरह कर सकती है। डॉ. भागर्व ने यह भी कहा है कि हमें वैक्सीन के अधिकतम असर को सुनिश्चित करना होगा। लेकिन अभी जो दुनिया के हालात हैं शत-प्रतिशत असर वाली वैक्सीन के लिए रुका नहीं जा सकता। अभी तो सारे परीक्षणों से गुजर कर जो भी वैक्सीन सबसे पहले सामने आएगी उसी के इस्तेमाल में बुद्धिमानी होगी। दुनिया भर में जिस तरह से कोरोना वायरस की वैक्सीन के लिए शोध चल रहे हैं उसमें यह भी मुमकिन है कि आने वाले समय में और भी ज्यादा असर वाली वैक्सीन बाजार में आएं।

सभी परीक्षणों की कसौटी पर खरे उतर कर कुछ वैक्सीन अगले कुछ महीनों में बाजार में आ जाएंगी। सारी उम्मीदें अब इसी पर टिकी हैं और इस मामले में विशेषज्ञों की बात पर भरोसा करने के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प भी नहीं है।

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