कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में आधार मजबूत करने के लिए कफील खान का सहारा
संजय सक्सेना
डॉ. कफील की पूरी कहानी में काफी टर्निंग प्वांइट हैं। उन्हें कोई नायक तो कोई खलनायक मानता है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में जेल से छूटे डॉक्टर कफील खान कितना सही हैं और कितना गलत, इस बात को लेकर लोग दो खेमों में बंटे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को समाजवादी पार्टी का मजबूत आधार माना जाता है। मुसलमान जब तक कांग्रेस के साथ रहे तब तक यूपी में कांग्रेस की तूती बोलती रही, लेकिन अयोध्या विवाद के चलते कांग्रेस से मुसलमान और हिन्दू दोनों खिसक गए, जिसके चलते यूपी में कांग्रेस तीस वर्षों से सत्ता का वनवास झेल रही है। कांग्रेस को इस बात का अहसास भी है। इसीलिए वर्षों से मुसलमानों को अपने पाले में खींचने का वह कोई मौका नहीं छोड़ रही है, लेकिन मुलायम के रहते कांग्रेस की कोई जुगत काम नहीं आई। आज भी मुसलमान बाबरी मस्जिद गिरने के पीछे कांग्रेस को गुनाहागर मानते हैं, परंतु कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा इस धारणा को बदलने के लिए बेहद आतुर नजर आ रही हैं। वह खुलकर मुस्लिम वोट बैंक की सियासत कर रही हैं। प्रियंका किसी भी तरह से मुसलमानों को समाजवादी पार्टी के पाले से खींच कर कांग्रेस के पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। पहले प्रियंका ने सीएए का विरोध करने वाले दंगाइयों का साथ दिया था तो अब इसी कड़ी में कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा को विवादित डॉक्टर कफील के रूप में एक नया मुस्लिम ‘मोहरा’ मिल गया है, जिसे वह अपनी पार्टी में लाकर उत्तर प्रदेश के मुलसमानों को रिझाना चाहती हैं। इसी क्रम में गत दिवस कांग्रेस महासचिव प्रियंका से उनके आवास जाकर डॉक्टर कफील का मिलना काफी कुछ कह रहा है। कांग्रेस नेताओं और गांधी परिवार के इसी तरह के कृत्यों के चलते पार्टी की छवि देश विरोधी बनती जा रही है। अन्य दल उसके साथ खड़े होने में कतराते हैं।
डॉ. कफील की पूरी कहानी में काफी टर्निंग प्वांइट हैं। उन्हें कोई नायक तो कोई खलनायक मानता है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में जेल से छूटे डॉक्टर कफील खान कितना सही हैं और कितना गलत, इस बात को लेकर लोग दो खेमों में बंटे हुए हैं। किसी को लगता है कि डॉ. कफील न केवल गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत के गुनाहागार हैं, बल्कि नागरिकता कानून (सीएए) की आड़ में वह मुसलमानों को भड़का रहे थे। उनके द्वारा लगातार मोदी-योगी सरकार और भाजपा नेताओं के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। वहीं कफील के पक्ष में खड़े लोगों को लगता है कि कफील को मुसलमान होने की सजा मिली है। ज्ञातव्य हो कि अलीगढ़ में दिए भाषण को आधार बनाकर डॉ. कफील पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाया गया था। सरकार के तर्क इलाहाबाद हाईकोर्ट में टिक नहीं पाए और हाईकोर्ट ने डॉ. कफील खान को क्लीन चिट दे दी।
बहरहाल, आमजन तो दूर डॉ. कफील को लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत भी दो हिस्सों में बंट गई थी। एक तरफ बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और खासकर कांग्रेस खुलकर कफील का पक्ष ले रहे थे, वहीं भारतीय जनता पार्टी और योगी सरकार को कफील गोरखपुर हास्पिटल में 60 बच्चों की मौत के गुनाहागार लग रहे थे और आज भी भाजपा नेताओं की यही सोच है कि कफील ने प्रदेश की गंगा-जमुनी संस्कृति को ठेस पहुंचाई थी।
खैर, अगर यह मान भी लिया जाए कि योगी सरकार की जिद्द के चलते डॉ. कफील को जेल जाना पड़ा तो इलाहाबाद हाईकोर्ट से उन्हें सम्मानजनक रिहाई भी मिली, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं था कि डॉ. कफील अपने साथ हुई नाइंसाफी को अंतरराष्ट्रीय रंग देकर भारत की छवि पूरी दुनिया में खराब करने में जुट जाए। डॉ. कफील को देश की न्यायपालिका पर भरोसा करना चाहिए न कि वह यूएन में योगी सरकार के खिलाफ शिकायत लेकर पहुंच जाएं। डॉ. कफील खान ने योगी सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा कर ठीक नहीं किया। डॉ. कफील खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) को एक पत्र लिखकर भारत में अंतरराष्ट्रीय मानव सुरक्षा मानकों के व्यापक उल्लंघन और असहमति की आवाज को दबाने के लिए एनएसए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के दुरुपयोग करने की बात लिखी है, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी।
दरअसल, कफील अपने साथ हुए उत्पीड़न को आधार बनाकर सियासत करने में लग गए हैं। उन्हें सियासत में अपना भविष्य नजर आने लगा है। कफील पर कोई बंदिश नहीं है कि वह सियासत में न कूदें, लेकिन इसके लिए उन्हें खुलकर सामने आना चाहिए। अभी तो ऐसा ही लग रहा है कि वह कांग्रेस-सपा और तमाम कट्टरपंथी नेताओं की कठपुतली बनते जा रहे हैं। कांग्रेस को कफील में मुस्लिम वोट बैंक नजर आता है। उसे यह नहीं लगता है कि कफील ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की साख पर बट्टा लगाया है।
दिल्ली में हुई इस मुलाकात के वक्त यूपी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज आलम मौजूद भी थे। बता दें कि यूपी कांग्रेस ने कफील की रिहाई के लिए एक बड़ा अभियान चलाया था। पूरे प्रदेश में हस्ताक्षर अभियान, विरोध प्रदर्शन और पत्र लिखकर कांग्रेसियों ने डॉ. कफील खान की रिहाई के लिए आवाज बुलंद की थी। कफील की रिहाई के बाद उन्हें और उनके परिवार को जयपुर के एक रिजॉर्ट में कांग्रेस की ओर से ठहराया भी गया था। ऐसा लगता है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक के सहारे प्रियंका कांग्रेस का बेड़ा पार करना चाह रही है।