पश्चिमी उत्तर प्रदेश का है महाभारत काल से संबंध
डॉ. हेमेन्द्र कुमार राजपूत
महाभारत में स्वयं महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी ने सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का प्रादेशिक भ्रमण करके जो कुछ भौगोलिक इतिहास लिखा, वह कहीं अन्यत्र नहीं मिलता। साथ ही उन्होंने अखण्ड महाभारत वर्ष जिसे जम्बूद्वीप कहते हैं, का सांस्कृतिक और सामाजिक एवं राजनैतिक इतिहास हमारे सामने प्रस्तुत किया जिसे आज के आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मोहन जोदाड़ो और आलमगीर की सभ्यता कहते हैं, वह सिन्धु सभ्यता कोई और नहीं, बल्कि महाभारत कालीन सभ्यता थी।
आज से 5155 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में 35 दिनों तक चला। युद्ध प्राय: 18 दिनों में हुआ, एक दिन विश्रान्ति काल रहता था। कलियुग का 5119 वां वर्ष चल रहा है। कलियुग प्रारम्भ होने से पूर्व 36 वर्षों तक युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के बाद शासन किया था। कलियुग प्रारम्भ होने के 24 वर्ष बाद राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने मार डाला था। इस समय परीक्षित की आयु 60 वर्ष की थी।
सन् 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संयोगवश हड़प्पा और मोहन जोदाड़ो नामक टीलों की खुदाई की थी, तब वहां मिले शहरों को 3000 ई. पूर्व से 2500 ई. पूर्व के कालखण्ड में पश्चिमी इतिहासकारों ने अपने पुरातत्व सम्बन्धी औजारों की सहायता से रखा था, यही समय महाभारत काल का है। पश्चिमी इतिहासकार महाभारत को काल्पनिक कथाओं का संग्रह मानते थे, इसलिए उनका ध्यान महाभारत की सत्यता पर नहीं गया, और टीलों के आधार पर ही उस सभ्यता का नाम हडप्पा सभ्यता रख दिया जबकि सत्यता यह है कि ये महाभारत कालीन नगर ग्राम युधिष्ठर की आठवीं पीढी के समय उत्तर भारत में आयी भंयकर बाढ़ की मिट्टी में दब गये अथवा कुछ बह गये थे। इस समय नेमिचक्र चक्षु कुरु प्रदेश पर राज्य करते थे।
कुरु प्रदेश
कुरु महाजनपद में तीन जनपद थे— कुरु, कुरुक्षेत्र और कुरु जांगल। यहां कुरु राज्य का वर्णन किया जा रहा है जो पश्चिमी उत्तर—प्रदेश के अन्तर्गत आता है। इस राज्य की दो राजधानियों—हस्तिनापुर और खाण्डवप्रस्थ अथवा इन्द्रप्रस्थ नाम से सम्पूर्ण पृथ्वी पर विख्यात थी। यह चक्रवर्ती राजकीय प्रदेश था। अत: कुरु प्रदेश की राजधानी से महाराजा युधिष्ठिर ने सम्पूर्ण जम्बूद्वीप अथवा एशिया पर शासन किया था, यही महाभारत वर्ष वृहदप्रदेश रूप में था जिसके शासक युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट थे।
कुरु जनपद पूर्व में गंगा, पश्चिम में यमुना, उत्तर में उशीनर राज्य एवं दक्षिण में शूरसेन जनपद तक विस्तृत था। अत: वर्तमान के मुफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, शामली, गाजियाबाद एवं बुलन्दशहर जनपदों का विस्तृत भूभाग ही कुरु प्रदेश था। इसकी राजधानी हस्तिनापुर गंगा के दक्षिण पाश्र्व में स्थित थी। कुरु प्रदेश के निवासी धर्म का आश्रय लेकर जीवन यापन करते थे (8.4.81) जनमेजय से कुरु प्रदेश का वर्णन करते हुए वैशम्पायन जी ने कहा — कुरु भूमि पर खेती की उपज बहुत बढ़ गई है, सभी अन्न सरस होने लगे, बादल ठीक समय पर वर्षा करते है और वृक्षों में बहुत से फल/फूल लगने लगे हैं। (महाभारत, आदिपर्व—108.2)। गंगा और यमुना नदियों के मध्य इनके समानान्तर तीन नदियां करीषिनी, हिन्दोन एवं काली नदी थी। काली नदी को पूर्वकाल में सरस्वती भी कहा गया है। इसके खादर प्रदेश में ईख अथवा गन्ने की बहुतायत खेती होने से इसे इक्षु नदी भी कहा गया है। कुरु—प्रदेश का सबसे बडा नगर हस्तिनापुर था। इसका दक्षिणी द्वार मुआना था जिसे आज मवाना कहते है। हस्तिनापुर की सैनिक छावनी आज के सैनीग्राम स्थल पर भी।
युधिष्ठिर ने शान्तिवार्ता के समय कौरव से पांच गांव मांगे थे— वारनावत (बरनावा), अविस्थल (मूर्थल), वृकस्थल (कीर्तिस्थल अथवा किरठल), माकन्दी (माण्डी अथवा मऊ—महादेव) तथा पाचवां कोई भी गांव जिसे दुर्योधन चाहे वह दे दे। यमुना नदी पहले सोनीपत और पानीपत के पास बहती थी इसलिए अविस्थल (मूरथल), यमुना के बांयें पाश्र्व में था। वर्तमान में वहां श्रीकृष्ण मन्दिर और मुनि पराशर का आश्रम है। माण्डी की खुदाई में सोने के सिक्के मिल चुके हैं। महाभारत कालीन कुरु राज्य की यहां टकसाल थी। आज भी अनेक महाभारत कालीन स्थल यहां है जैसे— परीक्षित गढ़, गान्धारी ताल, श्रृंगी आश्रम, सूरजकुण्ड, बहसूमा, मीरापुर, शुक्रताल, मुर्थल, किरठल, कुर्थस, बागपत, पुरामहोदव हस्तिनापुर, थैसंगांव, मेरठ (मयराष्ट्र) आलमगीर, नंन्दगांव, बरनावा, मवाना, सैनीग्राम आदि। माण्डी गांव (जिला मुजफ्फरनगर) के पास टीले के खुदाई के अवशेष भी महाभारत कालीन है।
उशीनर प्रदेश
इस प्रदेश के राजा शिबि पूर्व काल में प्रसिद्ध हुए है अत: इसको शिबि प्रदेश भी कहते हैं। महाभारत कालीन उशीनर प्रदेश उत्तर प्रदेश में सहारनपुर और हरिद्वार जनपदों के भू—भाग पर विस्तृत था। महाभारत के वनपर्व 130.21 में उल्लेख मिलता है कि यमुना नदी के वाम पाश्र्ववर्ती प्रदेश में उशीनर नरेश द्वारा बहुत से यज्ञ किये गये थे, इस जिले में नकुड गांव है जो नकुल द्वारा बसाया गया था। कालान्तर में यह ‘नकुलीश्वर तीर्थÓ के नाम से विख्यात हुआ (कूर्मपुराण 2.44.12)। इस प्रदेश के उत्तर में देव वन था। जनवरी 2017 के उत्खनन् जो सहारनपुर जिले के सहजपुर गांव में हुए, से प्राप्त अवशेष महाभारतकालीन सभ्यता को ही प्रकट करते है।
पुलिन्द प्रदेश
अर्जुन, दिग्विजय, यात्रा के समय सर्वप्रथम इस प्रदेश में पंहुचे थे और यहां के भूमिपालों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया था। वर्तमान में यह प्रदेश नेपाल के दक्षिण पश्चिम में एवं उत्तर—प्रदेश में पीलीभीत जिलान्तर्गत आता है। यहां पुलिन्द जनजातियों का बाहुल्य था।
उत्तरी पान्चाल
कुरु राज्य के पूर्व एवं दक्षिण पूर्व में स्थित पान्चाल राज्य था। गुरु द्रोणाचार्य ने उत्तर पान्चाल को अर्जुन के माध्यम से राजा द्रुपद को जीतकर अपने अधीन कर लिया था और गुरु दक्षिणारूप में अर्जुन से प्राप्त किया था। अत: उत्तर प्रदेश में रामपुर—बरेली, बदायूं, और शाहजंहापुर जिलों का सम्मिलित भू—भाग उत्तरी पान्चाल में था। बौद्धकाल में इसे ‘प्रत्यग्रथ’ कहा जाता था। (अष्टाध्यायी,4.1.171.)। पान्चाल राज्य की राजधानी अहिच्छत्रा (बरेली में) थी। बरेली के पास पश्चिमी में रामगंगा नदी तट पर अहिच्छत्रा नामके स्थान आज भी है।
शूरसेन—प्रदेश
इक्ष्वाकु वंशीय दशरथनन्दन शत्रुध्न के पुत्र शूरसेन ने मथुरा नगरी को बसाया था। उसके वंशज शूर जाति से प्रसिद्ध हुए, अत: यह शूर जाति का प्रदेश था, जिसका रामायण और विष्णु महापुराण में उल्लेख मिलता है। इस प्रदेश के मध्य से यमुना नदी प्रवाहित थी। द्वापर युग में राजा वासुदेव के पिता शूरसेन ने भी यहां राज्य स्थापित किया था जिसकी राजधानी मथुरा थी। अत: उत्तर प्रदेश में वर्तमान मथुरा और अलीगढ़ एवं आगरा जिलों का सम्मिलित भूभाग ही शूरसेन प्रदेश था।
दक्षिणी पांचाल
भीमसेन ने अपनी दिग्विजय—यात्रा के समय यहां के निवासियों को सामनीति से अपने अधीन कर लिया था (महाभारत—2.29.3—4)। विष्णु महापुराण में कुरु—पान्चाल को ‘मध्यदेशीय’ कहा गया है। उत्तर—पांचाल और गंगा नदी के दक्षिण से लेकर यमुना चम्बल नदी तक का प्रदेश ही दक्षिण पान्चाल था। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद, एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद जिलों को प्रदेश इसके अन्तर्गत था। काम्पिल्य (काम्पिल) इस राज्य की राजधानी थी। कन्नौज भी इस प्रदेश मे है। राजा द्रुपद इस प्रदेश पर शासन करते थे। द्रौपदी उन्हीं की पुत्री थी।
प्रभद्रक—प्रदेश
यह जनपद पान्चाल के पास पूर्व दिशा में स्थित था। अत: उत्तर प्रदेश के हरदोई, उन्नाव जिलों का भूभाग प्रभद्रक था। यह भद्रक जाति के लोगों का प्रदेश था। इस प्रदेश के उत्तर में नैमिषारण्य था। यह वन सीतापुर जिले के भूभाग पर था इसके राजा का नाम पुरुषादक था।
सतपथ प्रदेश
महाभारत कालीन ‘सतपथ’ प्रदेश को वैदिक काल में ‘सतवन्त’ कहा गया है— (डी.पी. सक्सेना—वैदिक काल, उत्तर भारत, भूगोल पत्रिका, पृ.98, गोरखपुर)। मस्त्य पुराण में इसे ‘सह’ कहा गया है। यमुना नदी के दक्षिण में चम्बल नदी के दोनों ओर यह प्रदेश स्थित था। अत: मध्य प्रदेश का भिण्ड जिला तथा उत्तर प्रदेश में ‘इटावा’ जिला इस प्रदेश के भाग है।
यकृलोम प्रदेश
अज्ञातवास को ध्यान में रखकर पाण्डव यमुना नदी के किनारे पश्चिम की ओर आगे बढे और यकृलोम एंव शूरसेन जनपदों के मध्य से होते हुए पाण्डवों ने मत्स्य प्रदेश में प्रवेश किया (महाभारत 4.5.2—4)। अत: यकृलोम प्रदेश के अन्तर्गत मध्यप्रदेश में मौरेन का उत्तरी भाग, राजस्थान का धौलपुर जिला और उत्तर प्रदेश के आगरा जिलों का संयुक्त भूभाग आता था। अत: आगरा जिले का यमुना नदी के दक्षिणी भाग इसमें था। यकृलोम नामक राजा यहां शासन करता था।
महाभारत कालीन इन प्रदेशों में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन में गौ—पालन था। गाय ही सबसे बड़ी सम्पत्ति मानी जाती है। इसके अतिरिक्त वानिकी और वन्य साधनों से आय प्राप्त होती थी। प्रत्येक जनपद में नगर, कस्बे और गांव तथा पुरवे नागरिक बसाव थे। एक गांव के अधिपति को ग्रामाधिपति, दस गांव के अधिपति को दसग्रामाधिपति, सौ गांव के शासक को शतग्रामाधिपति और एक हजार गांव और कस्बों के अधिपति को सहस्रग्रामाधिपति कहते थे फिर इनके ऊपर जनपद होता था और उसके शासक को राजा कहा जाता था। इसी तरह नगराधिपति होते थे।
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