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अब्दुल करीम टुण्डा व भटकल जैसे देशद्रोहियों को तुरंत फांसी हो

रजाक अहमद

गाजियाबाद। ‘बम गुरू’ अब्दुल करीम टूण्डा पकडा गया। ऐसी ही एक और खबर आई कि क्राईम ब्रांच व ए. टी. एस. को दूसरी बड़ी सफ लता मिली है कि इंडियन मुजाहिदिन (आई. एम.) का आतंकी सरगना यासीन भटकल पकड़ा गया। टूण्डा ने अपने पाकिस्तानी आकाओं के बारे में कई राज उगले। उसने भारत के सबसे बड़े आतंकी दुश्मन हाफि ज सईद व दाऊद इब्राहीम से मुलाकात के बारे में जानकारी दी। आई. एम. के मुखिया यासीन भटकल से पूछताछ शुरू हुई थी कि तुरन्त समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कमाल फारूखी का भटकल से हमदर्दी रखने वाला बयान आया। इनके बयान के बाद सपा के नेताओं की फ जीहत शुरू हुई। पार्टी के राज्य सभा में सांसद रामगोपाल को तो अपने विरोधियों से अपने लिए ‘आतंकवादियों के दलाल’ जैसे शब्द सुनने पड़े। बदनामी की भरपाई के लिये मुलायम सिंह ने कमाल फारूखी को राष्ट्रीय सचिव पद से हटा दिया। खैर यह तो रही पार्टी की अन्दरूनी बात थी, लेकिन जनाब फारूखी क्या आपको पता नही कि इन देश द्रोहियों के खिलाफ इस जांच की जरूरत कतई नही है, कि ये अपराधी हं या नही। जांच की जरूरत ये है कि इनामी मामलों के अलावा यह कितने और अपराधों में संलिप्त रहे हैं, और भविष्य में इनकी क्या योजनायें हैं? पाकिस्तान में इनके सम्बन्ध कहाँ-कहाँ और किस-किस से हैंï? शायद आपका बयान इनके मुस्लिम नाम होने से आया हो, परंतु  आप एक मुसलमान होने के नाते ये कैसे भूल गये कि कुरआन का कानून मानने वाला ही सिर्फ मुसलमान होता है। जिसकी पहली शर्त मुकम्मल ईमान होना है। कुरआन के कानून के मुताबिक अपने मुल्क से गद्दारी करने वाला बेगुनाहों का कत्ल करने वाला, साझीदार या भाईयों का हक मारने वाला, कमजोर व महिलाओं के साथ अत्याचार व नाईंसाफी करने वाला, गोया किसी भी तरह की हकतलफी करने वाला मुसलमान नही हो सकता। इनके गुनाह तो सारा देश जानता है। ये सैंकडों बेगुनाहों की जान लेने के गुनहगार हं। कुछ समय पहले ही लाजपत नगर दिल्ली की मार्किट में बाजार सजा था तो तभी बाजार में बम ब्लास्ट हो गया, कई बेगुनाह मारे गये। इसकी भयावह तस्वीर टी. वी. पर देखकर ही दिल दहल जाता है। दो वर्ष पहले ही 7-11 को दिल्ली हाईकोर्ट के गेट पर बम ब्लास्ट हुआ। दस लोग मारे गये।  चालीस से अधिक घायल हुये जिनमें कई पूरी तरह अपाहिज हो गये। उसके तुरन्त बाद 26/11 को बॉम्बे में हुये आतंकी हमले में हमने तीन-तीन आई. पी. एस. एक साथ खोये। कई रास्ते चलते बेगुनाह मारे गये। होटल के अन्दर भी कई लोगों के साथ विदेशी भी मारे गये। पूरी दुनिया ने उस भयानक घटनाकांड को टीवी चैनलों के माध्यम से देखा। सारा देश मारे दर्द से कराह उठा। अपनी जान पर खेलकर जवानों ने किस तरह अजमल कसाब को जिन्दा पकड़ा था, संसद पर हुये हमले को भी सारी दुनिया व देश ने टीवी चैनलों के माध्यम से देखा था। किस तरह हमारे जाँबाज जवानों ने हमारे तमाम नेताओं व पूरी संसद को बचाया था, और खुद कई जवान शहीद हो गये थे। हम सलाम करते हैं, उन सभी शहीदों को जिन्होंने देश की इज्जत को अपनी जान देकर बचाया। फारूखी साहब इन आतंकियों व बम ब्लास्ट करने वालों के द्वारा दिये गये दर्द को उन परिवारों से पूछो जिनके लाल हमें बचाने को खुद शहीद हो गये या जिनके परिवार के लोग राह चलते बाजारों में बेगुनाह मारे गये या वो जो विकलांग होकर घर बैठे हैं। टूण्डा व भटकल जैसे देशद्रोहियों व आप जैसे नेताओं द्वारा दिये गये बयानों से ही आज भारत का वफादार मुसलमान संदेह की निगाह से देखा जाता है, वर्ना मुसलमानों की वफादारी से तो देश का इतिहास भरा पड़ा है। देश की आजादी की लड़ाई में मुस्लिम समाज की कुर्बानी कम नही है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ ौज के कमान्डर भी एक मुस्लिम जनरल शाहनवाज थे। जाँबाज शहीद चन्द्रशेखर के साथ अश्फ ाक उल्लाह के साथ ही हजारों नाम और भी हैं जो आजादी के लिये शहीद हो गये। देश आजाद होने से पहले तो मुस्लिम लीग व जमाते इस्लामी भी आजादी की लड़ाई में बराबर की हिस्सेदार थीं। अंग्रेजों की एक चाल को मुस्लिम लीग के संस्थापक मौहम्मद अली जिन्ना समझ नही पाये और देश का बँटवारा हो गया। जिसका दँश भारत का वफादार मुसलमान आज भी झेल रहा है। पाकिस्तान से हुई लड़ाई में वीर अब्दुल हमीद की कुर्बानी भुलाई नही जा सकती। अभी कारगिल युद्ध में मुस्लिम जवानों की शहादत 6 पर्सेन्ट से अधिक है जबकि फ ोर्स में नौकरी डेढ़ पर्सेन्ट है जो ऑन रिकार्ड है। मगर यहाँ सवाल मुस्लिम समाज की वफादारी या अन्य मामलों का नही है।

यहाँ सवाल है मुस्लिम समाज की लीडरशिप व वोटों पर कब्जे का, जिस पर सभी दलों की निगाहें लगी हं। राजनैतिक रूप से लावारिस व नेतृत्व विहीन मुस्लिम समाज किसे अपना नेता माने? मुलायम सिंह यादव की सपा में मुस्लिम वोटों के सबसे बड़े दावेदार हैं आजम खाँ। मुस्लिम रहबर होने के दावेदार इमाम बुखारी सारे देश के मुखिया दिग्विजय सिंह व अन्य कांग्रेसी भी पीछे नही और अब जनाब कमाल फारूखी आप मैदान में आ गये हैं। आखिर हम किस किस को अपना  नेता मानें? इनसे भी आगे बढ़कर एक और दिशा विहीन जमात धर्म को धर्मान्ध बनाने वाले धर्म व समाज के अलम्बरदार मौलाना जिन्हें सियासत का चस्का लग गया है। ये सभी इस समाज को गुमराह कर रहे हैं। इनकी गलत सोच व गुमराह करने वाले फ रेबी बयानों से ही आज मुसलमान परेशान है। कोई मुसलमान आतंकवादी या देशद्रोहियों का हिमायती नही है। हम सरकार से मांग करते हैं कि जिस तरह अजमल कसाब फैसले में देरी हुई, वह इसमें ना हो। टून्डा व भटकल को तुरन्त फांसी पर लटकाया जाये। जिससे शहीदों के परिवार व बेगुनाह मारे गये लोगों के परिवारों को सुकून मिल सके।

(लेखक वरिष्ठ समाजसेवी हैं)

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