युगपुरुषों का नाम न भुनाएँ

गांधी को अपनाएँ, शास्त्री को जानें

– डॉ. दीपक आचार्य 

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आज महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री जयन्ती का दिन है। इस दिन भारतमाता ने दो सपूतों को भारत भाग्य विधाता के रूप में धरा पर भेजा। इनके उच्चतम आदर्शों और कर्मयोग ने भारतभूमि को इतना कुछ दिया है कि युगों तक इनकी पावन सुगंध महकती रहेगी।

आज का दिन महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री दोनों को ही बराबर याद करने का है। दोनों में से कोई कम नहीं थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम से लेकर भारत के विकास तक की यात्रा में इन महापुरुषों और इनके साथियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

खासकर जमीन से जुड़े हुए इन दोनों महानायकों ने भारतीय संस्कृति, संस्कारों और स्वदेशी परंपराओं के साथ अपनी जीवनयात्रा को आगे बढ़ाया। इन्हीं संस्कारों को जीवन में हर मोर्चे पर खुद भी अपनाया और देशवासियों को भी अपनाने के लिए प्रेरित किया। कभी भोग-विलास और ऎश्वर्य, विदेशियों की तड़क-भड़क और अभिजात्य संस्कृति, विदेशी प्रभावों आदि को तवज्जो नहीं दी। यही कारण है कि भारतीय जनमानस आज भी इन दोनों लोकनायकों को पूरी श्रद्धा के साथ याद करता है।

जयंती या पुण्यतिथि पर किसी को याद कर लेना, औपचारिकताओं का निर्वाह कर लिया जाना अलग बात है लेकिन गांधी और शास्त्री के साथ ऎसा नहीं है। इन्हें सभी तरह के लोग मन से याद करते हैं और जन-जन के दिलों में इनके प्रति अगाध आस्था और श्रद्धा का भाव है।

यह श्रद्धा केवल इनकी महानता या लोकप्रियता की वजह से नहीं है बल्कि इनके जीवनादर्शों की वजह से है। भारतीय संस्कृति और संस्कारों के साथ ही देशभक्ति के वटवृक्ष की जड़ों से ये भीतर तक जुड़े रहे हैं और इनका पूरा जीवन आडम्बर से रहित ही रहा, आम आदमी तरह जिये, आम आदमी के बीच रहे, विदेशियों के न कभी निकट रहे, न विदेशियों के प्रभाव में कभी आए। इनकी कथनी और करनी में कहीं कोई अंतर कभी नहीं रहा।

आम आदमी की जिन्दगी से गहरे तक जुड़े हुए दोनों महान नेताओं ने कभी अपने स्वार्थों को नहीं देखा। देश के आम आदमी को सर्वोपरि माना, देश को सबसे पहले माना और जो कुछ किया, वह देश के लिए किया, देशवासियों के लिए किया। और आखिर देश की खातिर ही बलिदान हो गए।

असल में देशवासियों के मन में स्थान वे ही लोग बना पाते हैं जो आम आदमी के हितों और देश का चिंतन करते हैं।  गांधी और शास्त्री सत्य, अहिंसा, सादगी और प्रेम के पर्याय थे जिन्होंने अपने इन नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को मूर्त रूप दिया और कथनी व करनी में कभी कोई भेद नहीं किया।

जो व्यक्ति मन से जितना सच्चा और पाक-साफ होता है, खुद को भुला कर दुनिया के लिए कुछ करता है, उसे ही आने वाली पीढ़ियां याद करती हैं और श्रद्धा भाव दिखाती हैं। किसी की जयंती और पुण्यतिथि के नाम पर आयोजन कर लेना अलग बात है और जिन्दगी भर श्रद्धा से याद रखना अलग बात।

गांधी और शास्त्री को आज प्रत्येक देशवासी दिल से याद करता है। हम जब भी महापुरुषों की बात करते हैं, उनके नाम जयंतियां और पुण्यतिथियां मनाते हैं, लेकिन यह सब आजकल औपचारिकताओं से ज्यादा कुछ नहीं दिखता। हम पिछले कई दशकों से ऎसा करते आ रहे हैं। हर साल संकल्प लेते हैं और फिर अगले दिन से भूल जाते हैं।

असल में हममें से उन लोगों को गांधी या शास्त्री की बातें करने और उनका नाम भुनाने का कोई हक़ नहीं है जो अपने जीवन, कर्म और लोक व्यवहार में इन दोनों महानायकों के उपदेशों व आचरणों का अनुगमन करने में शर्म महसूस करते हैं। जाने क्यों हमारे व्यवहार में दोहराव, छल-कपट और छद्म व्यवहार इतना आ गया है कि जब कभी हम उपदेशों और आदर्शों की बातें करते हैं तो लोगों के जेहन में लाख कोशिशों के बावजूद ये उतर नहीं पाती।

हम बातें तो गांधीवाद और शास्त्री के आदर्शों की करते हैं और काम सारे वे करने लगे हैं जो न गांधी को पसंद थे, न ही शास्त्रीजी को। स्वदेशी चिंतन की बात करते हैं और विदेशी चिंतन मन-मस्तिष्क और जिस्म में भरे होते हैं। अपने देश के प्रति स्वाभिमान भुला बैठे हैं और गुलामी के बीजों की वजह से विदेशियों के गुणगान में सब कुछ सौंप देते हैं।

हम खुद अपने आपका मूल्यांकन करें कि गांधी और शास्त्री के आदर्शों, उपदेशों पर हम कितना खरा उतर रहे हैं और हमारी हकीकत क्या है। आज का दिन हमारे लिए आत्मचिन्तन और स्व मूल्यांकन का है। हम खुद चिंतन करें कि जो हम कर रहे हैं, कह रहे हैं, ऎसा कभी गांधी या शास्त्री स्वप्न में भी कह या कर सकते हैं। सिर्फ एक दिन को ही आधार मानकर हम देखे लें, साफ पता चल जाएगा कि हम कितने झूठे और दोहरे-तिहरे चरित्र से भरे-पूरे हैं।

ईमानदारी से हम सोचे तो साफ पता चल जाएगा कि हम इन महानायकों के साथ कितना बड़ा छल कर रहे हैं। हम वे सारे काम करने में आनंद पा रहे हैं जो इन लोगों ने वर्जित माने थे। हम अहिंसा, अपरिग्रह, शांति, आचरण की शुद्धता, देशभक्ति का चरम जज्बा, सादगी और उन सभी बातों को कितना भुला चुके हैं, यह हमारे आत्म मूल्यांंकन से स्पष्ट झलक ही जाएगा।

महापुरुषों के नामों को न भुनाएं बल्कि उनके जैसा बनकर दिखाएं, उनके आदर्शों और उपदेशों को जीवन में अपनाएं तभी हम समाज और देश के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकेंगे। वरना समाज और देश का अपने लिए उपयोग करने वाली कई जमातें आयी और यों ही चली गई। आज उन्हें याद करने वाला कोई नहीं बचा  है। पत्थरों की मूर्तियां सिर्फ यहां-वहां जरूर मूकदर्शक खड़ी हैं। अपने पाषाणी जिस्म और चट्टानी दिमाग में मानवीय संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा करें और जड़ता छोड़कर समाज तथा देश के लिए खुद भी चेतन हों, औरों में भी चेतना जगाएं।

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