लोकल को ग्लोबल बनाने हेतु प्रयासरत केंद्र सरकार

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देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम, “अमेरिका-भारत स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फ़ोरम के तीसरे लीडरशिप समिट”, को सम्बोधित करते हुए अभी हाल ही में कहा है कि 130 करोड़ भारतीय अब देश को आत्म निर्भर बनाने के मिशन पर निकल पड़े हैं। भारत के आत्म निर्भर बनने की परिभाषा में पूरे विश्व का कल्याण निहित है। भारत ने यह बार बार दोहराया भी है कि हमारा अंतिम उद्देश्य पूरे विश्व में बंधुत्व की भावना का संचार करना एवं समस्त प्राणियों के सुखी होने से है। इसीलिए भारत अब लोकल (स्थानीय) को ग्लोबल (वैश्विक) रूप देना चाहता है।

अब तो विश्व के अधिकतर देशों को प्रबल विश्वास होता जा रहा है कि भारत आने वाले समय में पूरे विश्व में सबसे अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने वाला स्थल बनने जा रहा है। क्योंकि, यहाँ पिछले 70 वर्षों से लगातार लोकतंत्र बहाल रहा है, राजनैतिक स्थिरता का माहौल है, ईज़ आफ़ डूइंग बिजिनेस में लम्बी छलाँग लगाई है, आर्थिक क्षेत्र में हाल ही में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं, रक्षा, फ़ार्मा, रेल्वे, ऊर्जा आदि क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोला जा रहा है, पॉलिसी में स्थिरता है। साथ ही, वर्तमान में केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी की विकराल समस्या का जिस समझ बूझ से मुक़ाबला किया है उसके कारण मौतों की संख्या तुलनात्मक रूप से काफ़ी कम रही है। कोरोना की जाँच के लिए केवल एक टेस्टिंग लेबोरेटरी से शुरुआत कर अल्प समय में ही देश में 1600 से अधिक टेस्टिंग लेबोरेटरी कार्य कर रहीं हैं। कोरोना महामारी के दौरान देश के क़रीब 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ़्त अनाज एवं आर्थिक सहायता की व्यवस्था सफलतापूर्वक की गई। अतः भारत की साख एक ज़िम्मेदार एवं योग्य देश के रूप में पूरे विश्व में स्थापित हुई है। भारत सरकार से इसी प्रकार की समझ बूझ की उम्मीद वैश्विक व्यावसायिक संस्थानों द्वारा भारत में स्थापित किए जाने वाले व्यावसायिक संस्थानों को चलाने के लिए भी की जा रही है, जिससे उनके निवेश भारत में न केवल सुरक्षित रहेंगे ब्लिक़ लाभकारी भी सिद्ध होंगे।

बड़े बड़े विदेशी वैश्विक व्यावसायिक संस्थान दरअसल अब किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहते हैं एवं वे इस सम्बंध अपनी जोखिम को कम अथवा ख़त्म करना चाहते हैं एवं इसलिए वे किसी दूसरे सुरक्षित स्थान की तलाश में हैं। यह स्थिति, भारत के लिए एक अवसर के तौर पर उभर रही है, जिसका पूरा लाभ हमारे देश को लेना चाहिए। विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने एवं विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत के पास कई मज़बूत पक्ष भी हैं, जैसे, हमारे देश में विशाल बाज़ार मौजूद है, हमारे देश में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है जो नए उत्पादों का उपयोग करना चाहता है, इसी युवा वर्ग के पास विभिन्न प्रकार की योग्यताएँ उपलब्ध हैं जिसका उपयोग वैश्विक व्यावसायिक संस्थान आसानी से कर सकते हैं। परंतु हमारी कुछ कमियाँ भी हैं, जैसे, हमारे देश में उत्पादन लागत तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक है। यदि कोई भी विदेशी संस्थान भारत में निवेश करना चाहता है तो वह निश्चित ही उस निवेश पर लाभ अर्जित करना चाहेगा। यदि उत्पाद की लागत अधिक रहेगी तो उसकी लाभ अर्जन क्षमता भी कम हो जाएगी। उत्पादन लागत अधिक होने के कारण ही, कई विदेशी व्यवसाय संस्थान भारत को छोड़कर वियतनाम, फ़िलिपीन, बंगलादेश आदि छोटे छोटे देशों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। हमारे देश में हमें व्यवसाय करने की कुल लागत कम करनी होंगी जिसमें शामिल हैं वित्त की लागत, ज़मीन की लागत, ऊर्जा की लागत, आदि। पूरे विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जो ऊर्जा की लागत को उद्योगों के लिए अधिक रखता है एवं अन्य सामान्य उपभोक्ताओं के लिए कम रखता है। जबकि, विश्व के अन्य अधिकतर देशों में उद्योगों के लिए भी ऊर्जा की लागत कम रखी जाती है। कुल मिलाकर उक्त सभी कारणों से हमारे देश में उत्पाद की लागत बढ़ जाती है एवं वैश्विक स्तर पर वह उत्पाद प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाता है।

भारत में व्यवसाय को स्थानीय से वैश्विक स्वरूप देने के बारे में उच्च स्तर पर दूरदर्शिता एकदम स्पष्ट है। इसे केवल निचले स्तर पर सही तरीक़े से लागू करने की सख़्त आवश्यकता है। इसके लिए देश के सरकारी कर्मचारियों को भी उसी तरीक़े की ईमानदार मेहनत करने की ज़रूरत है जिस प्रकार देश के प्रधानमंत्री कर रहे हैं। केवल सरकारी कर्मचारी ही क्यों आज हम सभी नागरिकों को भी देश की तरक़्क़ी के लिए अपने योगदान को बढ़ाने की आवश्यकता है। जो भी नागरिक जिस प्रकार का भी योगदान जिस किसी क्षेत्र में कर सकता है, उसे उसी क्षेत्र में करना चाहिए। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, निजी क्षेत्र एवं नागरिकों के बीच आज आपसी तालमेल की सख़्त ज़रूरत है। राज्य सरकारों को विदेशों से आ रही कम्पनियों को भूमि अलॉट करने सम्बंधी नियमों एवं व्यवसाय सम्बंधी अन्य नियमों को आसान बनाने की आवश्यकता है, ताकि अधिक से अधिक विदेशी व्यावसायिक कम्पनियाँ अपनी उत्पादन इकाईयों को इन प्रदेशों में स्थापित करें। इस सम्बंध में मुख्यमंत्रीयों को स्वयं लीड लेना अब आवश्यक हो गया है। हर्ष का विषय है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री माननीय श्री योगी आदित्य नाथ जी इस क्षेत्र में व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ बहुत बड़ी विदेशी कम्पनियों ने उत्तर प्रदेश में अपनी विनिर्माण इकाईयों को स्थापित करने की घोषणा की है। केंद्र एवं राज्य सरकारें अपनी ख़ाली पड़ी ज़मीन को विदेशी कम्पनियों को अपने व्यावसायिक संस्थान स्थापित करने के लिए लम्बे समय के लिए लीज़ पर दे सकने के बारे में सोच सकते हैं। उत्पादन इकाईयों को स्थापित करने के लिए 20/30 वर्षों की लम्बी अवधि के लिए वित्त की व्यवस्था भी हमारे देश में करने की आवश्यकता हैं। कई बड़ी बड़ी कम्पनियाँ तो लम्बी अवधि के लिए कम ब्याज की दर पर विदेशों से विदेशी मुद्रा में वित्त की व्यवस्था कर लेती हैं परंतु इस प्रकार की व्यवस्था अब भारत में भी उपलब्ध किए जाने की आवश्यकता महसूस होने लगी है।

भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में पूरे विश्व के लिए एक केंद्र के तौर पर यदि विकसित होना है तो हमें अपनी आर्थिक नीतियों को निवेशकों के अनुरूप सरल बनाना अब ज़रूरी हो गया है। भारत में फ़ार्मा क्षेत्र ने इस सम्बंध में बाक़ी क्षेत्रों के लिए रास्ता दिखाया है। आज भारत से दवाईयों का निर्यात पूरे विश्व में 100 से अधिक देशों को सफलतापूर्वक किया जा रहा है। हमें विदेशी संस्थानों के साथ मिलकर संयुक्त उपक्रमों की स्थापना करनी होगी। विदेशी संस्थान/निवेशक देश में पूँजी का निवेश करेंगे एवं उच्च तकनीकी को अपने देशों से भारत में लाने में सहायता करेंगे परंतु उत्पाद को बेचने के लिए भारतीय कम्पनियों की आवश्यकता होगी। साथ ही भारतीय कम्पनियों को भी एमएनसी के श्रेणी की कम्पनियों के तौर पर विकसित करने की आज महती आवश्यकता है।

वियतनाम, बंगलादेश जैसे देशों में अभी विनिर्माण इकाईयाँ नहीं के बराबर हैं अतः वहाँ पर सबंधित नियमों को विदेशी निवेशकों की समस्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनके अनुरूप बनाया जा रहा है। जबकि भारत में पिछले 70 वर्षों पूर्व बनाए गए नियमों से ही काम चल रहा है। इन पुराने नियमों को बदलने में बहुत कठिनाई का सामना करना होता है। हालाँकि केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से पिछले लगभग 7 वर्षों के दौरान कई पुराने क़ानूनों को या तो समाप्त कर दिया गया है अथवा बहुत बड़ी हद्द तक बदल दिया गया है। श्रम क़ानूनों में भी आमूल चूल परिवर्तन किया जा रहा है। इस सबका परिणाम यह हुआ है कि विदेश निवेशक अब भारत की ओर आकर्षित होने लगे हैं एवं भारी मात्रा में विदेशी निवेश भारत में किया जा रहा है। प्रतिवर्ष अब भारत में लगभग 6,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश हो रहा है।

अब ऐसे क्षेत्रों को भी विकसित किए जाने की आवश्यकता है जिनमें भारतीय एवं विदेशी निवेशक मिलकर कार्य करें। जैसे कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में किया जा रहा है। सरकारी नीतियों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान रहता है। केंद्र सरकार ने ही सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस प्रकार की नीतियाँ बनाई हैं कि विदेशी निवेशक भी इस क्षेत्र में निवेश करने की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी प्रकार फ़ार्मा उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग, आईटी उद्योग, आदि को भी सरकारी नीतियों के कारण ही देश में सफलता की कहानी के तौर पर बताया जा सकता है। अन्य क्षेत्रों को भी वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए इसी प्रकार की नीतियाँ बनाए जाने की आवश्यकता है। आज भारत में ही विनिर्माण इकाईयों को स्थापित करने की आवश्यकता है न कि चीन आदि देशों से उत्पादों का आयात कर हम केवल व्यापारी के तौर पर कार्य करें। हमारे देश का बहुत बड़ा बाज़ार ही हमारे लिए सबसे बड़ी पूँजी है। केंद्र सरकार बड़ी तेज़ी से देश में कई क्षेत्रों में आर्थिक सुधारों को लागू कर रही है ताकि देश के व्यवसाय को स्थानीय से वैश्विक स्तर तक पहुँचाया जा सके। ।

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