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भारतीय संविधान, न्यूनतम मजदूरी और लोक सेवकों के वेतनमान

मनीराम शर्मा
आपको ज्ञात ही है कि सरकारी सेवकों के वेतनमानों में संशोधन के लिए वेतन आयोग के सदस्यगण विदेशों का भ्रमण कर यह पता लगाते हैं कि वहाँ पर वेतनमानों की क्या स्थिति है और भारत में लोक सेवकों को विदेशों के सामान वेतनमान की अनुसंशा की जाती है। गत छठे वेतन आयोग के माध्यम से लोक सेवकों को देय वेतन औसतन 50त्न बढ़ाया गया था। मुझे सखेद निवेदन करना पड़ रहा है कि न्यूनतम मजदूरी के मामले में सरकार ऐसा अध्ययन नहीं करवा रही है और विदेशों में देय न्यूनतम या उचित मजदूरी के समान भारत में मजदूरी नहीं दी जा रही है।
महंगाई की मार से आम आदमी पहले से ही त्रस्त है और अब सातवें वेतन आयोग के माध्यम से उसकी कमर तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत एक समाजवादी व्यवस्था वाला देश है। इस प्रसंग में मैं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले संयुक्त राज्य अमेरिका का उदाहरण देना चाहता हूँ जहाँ एक श्रमिक को लगभग 15000डॉलर (750000 रुपये) वार्षिक उचित मजदूरी दी जाती है और वहाँ पर जिला न्यायाधीश को 25000 डॉलर (1250000 रुपये) वार्षिक वेतन दिया जाता है। इस प्रकार अमेरिका में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में भी एक मजदूर को देय मजदूरी एवं न्यायाधीश को देय वेतन में 2 और 3 का अनुपात है। जबकि समाजवादी भारत में प्रति माह न्यूनतम मजदूरी 5500 रुपये और कनिष्ठतम न्यायाधीश को देय मासिक वेतन 50000 रुपये है अर्थात इनमें 1 और 9 का अनुपात है।
मैं मान्यवर को यह स्मरण करवाने की आवश्यकता नहीं समझता कि आपने यह गरिमामयी पद धारण करते समय संविधान की रक्षा करने की शपथ ली है। भारतीय संविधान की उद्देशिका में कहा गया है कि हम, भारत के लोग, भारत को एक समाजवादी ..गणराज्य ..बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को ..आर्थिक न्याय .. प्राप्त कराने के लिए … दृढसंकल्प होकर … इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। आगे संविधान के अनुच्छेद 38(2) में यह भी कहा गया है कि राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा , सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
राष्ट्र को स्वतंत्र हुए आज 66 वर्ष हो गए हैं। प्रतिष्ठा और सुविधाओं को छोड़ दिया जाये तो भी भारत में पारिश्रमिक की विद्यमान व्यवस्था संविधान के स्पष्टतया प्रतिकूल है। अत: आपसे नम्र निवेदन है कि आप संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का निर्वाह करें और वेतन आयोग का निर्धारण इस प्रकार पुनर्निर्धारण हो कि यूनतम मजदूरी और राजपुरुषों की परिलब्धियों में विषमता में कमी आये और उसमें लिखित उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो सके।

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