अपने आप को खत्म होने से बचाना है तो इस बार जीतना ही होगा

राष्ट्रवादी बार-बार असफल होते हैं ?? क्योंकि..

1 राष्ट्रवादी प्रोपेगेंडा करना नही जानते.
2 राष्ट्रवादियो के पास विमर्श शक्ति नही है.
3 राष्ट्रवादी शीघ्र ही लिब्रल्स के नरेटिव में फंस जाते हैं.

महाभारत में गुरु द्रोण शिष्यों से पूछते है, तुम्हे तोते में क्या दिखाई दे रहा है. किसी को तोते की पूंछ दिखाई देती है, किसी को गर्दन, किसी को पेड़ के पत्ते तो किसी को कुछ. किन्तु तोते की आँख किसी को दिखाई नही देती.

अर्जुन को केवल तोते की आंख दिखाई देती है. वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाता है.

किसी भी वैचारिक लड़ाई में वामपंथियों को मात्र तोते की आंख दिखाई देती है. परन्तु राष्ट्रवादियो को आँख के अतिरिक्त सबकुछ.

इसलिए राष्ट्रवादी प्रत्येक लड़ाई में बंट जाते हैं. वे अतिरिक्त दिमाग लगाकर लिब्रल्स की नरेटिव माया में उलझ जाते हैं.

वामपंथी एक मनोवैज्ञानिक विचारधारा है. वह वायरस की तरह कार्य करती है. जैसे वायरस शरीर के रक्षक श्वेतकण को धोखा देने के लिए स्वयं श्वेतकण में परिवर्तित हो जाते है. तदुपरांत उन्ही के मध्य रहकर उन्हें ही खत्म कर देते हैं. श्वेतकण ठगे जा चुके होते है.

लिब्रल्स आपके दिमाग को पढ़ एक नया नरेटिव सेट कर आपको आपके ही खिलाफ खड़ा कर देते है. आपको लगता है आप अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, किन्तु वास्तविकता में आप उनके ही सैनिक बनकर अपने ही खिलाफ लड़ रहे होते हैं.

वे आपको अपनी ही सेना बनाकर आपके जबड़े से जीत छीन लेते हैं. लेकिन आपको पता ही नही चलता. और जब पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

उदाहरणार्थ:-
केरल में गर्भिनी हथिनी की बर्बर पिशाचिक हत्या पर आप “शाकाहार-मांसाहार” नरेटिव में उलझकर बंट गए. आप एक जीती हुई लड़ाई अपने ही हाथों से स्वयं हार गए.

जबकि आपके पास सुनहरा अवसर था नरेटिव भुनाकर #छद्म_पशु_प्रेमियों के दोगलेपन के पर्दाफाश करने का. उनकी नरेटिव पट्टी भोलीभाली जनता की आंखों से उतार फेंकने का. किन्तु आपने अवसर “शाकाहार-मांसाहार नरेटिव” बहस में फंसकर गंवा दिया. आपने तोते की आंख के अतिरिक्त सबकुछ देखा.

इसे ही कहते हैं #भेड़_नरेटिव जिसे वामपंथी अक्सर लड़ाई में कमजोर पड़ने पर प्रयोग करते हैं. और आपको लक्ष्य से भटकाकर बांट देते हैं.

ऐसे अनेको उदाहरण है.. जिसमे से एक वर्तमान कंगना मुद्दा है. यहाँ भी आपको उसी नरेटिव माया में फंसाया जा रहा है, और आप फंस रहे है. मसलन..

1 कंगना कभी बीफ खाती थी.
2 वकील मुसरीम है.
3 कंगना ने हिमाचल ब्रेंड एम्बेसेडर बनने के लिए करोड़ों मांगे थे.

यहाँ आपको तोते की आंख के अतिरिक्त लिब्रल्स द्वारा सबकुछ दिखाया जा रहा है और आप अतिरिक्त दिमाग लगाकर देख भी रहे हैं. क्योंकि आपके विमर्श की शक्ति गौण है.

कंगना मात्र एक व्यक्ति न होकर एक विचार है, उसे उसी दृष्टिकोण से देखिए. उस विचार को मजबूत पक्ष बनाकर आपके पास अनेक शक्तिशाली वामपंथी नरेटिव ध्वस्त करने का सुनहरा अवसर है. इस बार उसे मत गंवाइए.

ये लड़ाई वैचारिक लड़ाई है. लोकतंत्र बनाम तानाशाही की लड़ाई है. महिला सम्मान की लड़ाई है. Eस्लामिक बॉलीबुड बनाम संस्क्रति की लड़ाई है. ये एक बड़ी लड़ाई है. इसके महत्व को समझने का प्रयास कीजिए.

अतः किन्तु, परन्तु, कदाचित जैसे शब्दों का त्याग कर तोते की आंख पर निशाना साधिए.

इस बार हमें जीतना हो होगा… क्योंकि यहाँ हारने का मतलब खत्म होना है.

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