गतांक से आगे…
29 दिसंबर, 2006 को बकरा ईद के अवसर पर मुंबई के दैनिक उर्दू टाइम्स ने एक चौंका देने वाली रपट प्रकाशित की। इसका शीर्षक था-देवनार बकरा मंडी में कुरबानी के बकरों को शराब पिलाने की घटना। मुंबई के होमियौपैथ डा. फारूख सरखोत और बकरा व्यापारियों के द्वारा बकरों को शराब पिलाने की एक सनसनीपूर्ण घटना सामने आई है। डा. सरखोत ने उक्त जानकारी देते हुए कहा कि जब वे देवनार की बकरा मंडी में बकरों की खरीददारी के लिए गये तो कुछ बकरा व्यापारी बकरों को शराब पिला रहे थे। डा. का कहना था कि बकरा ईद के अवसर पर कुरबानी के लिए अपने मित्र आरिफ अंसारी के साथ वे मंडी में बकरा खरीदने पहुंचे। 28 दिसंबर की घटना है कि उन्होंने वहां एक व्यापारी के हाथ में शराब की बोतल देखी, जो अपने एक बकरे को शराब पिला रहा था। उसके पास दो अन्य व्यापारी भी अपने हाथों में शराब की बोतलें लेकर खड़े थे। जब डा. फारूख सरखोत ने पूछा कि वे बकरे को शराब क्यों पिला रहे हैं? तो उसने कहा-क्या शराब की बोतल में शराब ही होती है? डा. फारूख ने बोतल उससे छीनकर सूंघी तो वास्तव में उसमें शराब ही थी। जब एक व्यापारी को विश्वास में लेकर डा. ने पूछा तो उसने कहा कि आप नही जानते हैं कि शराब पिलाने से बकरे का वजन बढ़ जाता है। वह चुस्त और दुरूस्त लगता है। उसकी उछल कूद से खरीदार प्रभावित हो जाता है और बकरे के मालिक को मुंह मांगे दाम दे देता है। एक बकरा मालिक से जब डॉक्टर और उसके साथी ने पूछा कि तुम यह क्यों करते हो? एक पवित्र काम के लिए तुम शराब जैसी हराम वस्तु का उपयोग करके इसलामी सिद्घांत का खून करते हो और बेचारे भोले भाले व्यापारियों को ठगते हो? तब उस बकरा व्यापारी ने कहा कि साहब, आप पोल्ट्री फार्म पर जाकर देखो, वहां क्या होता है? क्या वे मुरगियों को शराब नही पिलाते? इस रहस्योद्घाटन से वहां जितने मुसलिम बंधु खड़े थे, सब हैरत में पड़ गये। कुरबानी में यदि दशराब पिए हुए बकरे को काटोगे तो आपको पुण्य होगा या पाप, इसका आत्ममंथन कर लेना अनिवार्य है। त्योहार की आड़ में इस तरह से शराब का उपयोग कौन बरदाश्त कर सकता है? लेकिन जब आप पशु पर दया नही दिखा सकते तो सामने वाला आप पर क्यों दया दिखाएगा? धर्म की आस्था को इस प्रकार नीलाम किया जाता है, यह दुख की बात है।
पाकिस्तान में कराची का कत्लेखाना सबसे बड़ा माना जाता है। वहां तो बकरा ईद के नाम पर ऐसी धोखाधड़ी होती है कि सुनने वाला चकित रह जाता है। दो साल पहले कराची में बकरे को लेकर हुई धोखाधड़ी का एक मामला कोर्ट में पहुंचा। एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति ने 42 हजार रूपये में एक बकरा खरीदा। वह खूब मोटा और दिखने में आकर्षक था। खरीददार ने उसके मुंह मांगे दाम दे दिये।
ईद के समय बकरे की खरीदी के लिए भाव ताव नही होता। इस अवसर पर हदिया शब्द का उपयोग होता है। हदिया कह देने के बाद मोल तोल नही होता। बकरे का मालिक जो रकम कहता है जब खरीदने वाला चुपचाप दे देता है। कराची निवासी हदिया देकर बकरा घर ले आया। लेकिन सवेरे जब उठकर देखा तो वह बकरा दिखाई नही पड़ा, जो कल बाजार से लेकर आया था। वह एकदम कमजोर मरियल और बीमार लग रहा था। वह समझा कि रात को उसका अच्छा बकरा कोई चोरी करके ले गया और उसके स्थान पर इस मरियल को बांध गया। बकरे का मालिक पुलिस स्टेशन पहुंचा और उसने अपनी शिकायत दर्ज कराई। कुछ दिनों बाद उसे असलियत मालुम हुई कि बकरा चोरी नही गया था, बल्कि वही था जो बाजार से खरीदकर लाया था लेकिन यह परिवर्तन कैसे हो गया? तब एक निष्पात ने बतलाया कि बकरे के मालिक से नमक का पानी ठूंस ठूंसकर पिलाते हैं, जिससे वह मोटा हो जाता है और अच्छा लगता है। घर पर ले आने के बाद बकरा खूब पेशब करता है, जिसमें वह नमक का पानी निकल जाता है।
क्रमश:
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