दायरों में न बाँधे
विलक्षण प्रतिभाओं को
– डॉ. दीपक आचार्य
दुनिया के हर क्षेत्र में ऎसे लोग होते हैं जो जीवन निर्वाह के लिए भले ही किसी काम-धंधे से जुड़े हुए हों मगर उनके भीतर मौलिक प्रतिभाएं और विलक्षण हुनर इतना अपार होता है कि ये जमाने में बहुत कुछ बदलाव लाने का सामथ्र्य रखते हैं और समाज के लिए ये अपने पूरे हुनर को उण्डेलते हुए दिन-रात कई-कई प्रकार की गतिविधियों में रमे रहते हैं।
आम लोग इनकी ताकत और विलक्षण मेधा को समझ नहीं पाते हैं और इन्हें अपनी ही तरह सीमित दायरों में बाँधकर इनका आकलन करते हैं। जरूरी है कि जिन लोगों में प्रतिभा है उन लोगों को उनके हुनर के मुताबिक काम देकर समाज को इनके ज्ञान तथा अनुभवों से लाभान्वित करना चाहिए।
हर आदमी को उसकी मौलिक व जन्मजात प्रतिभा के अनुरूप काम मिल जाए तो दुनिया ही निहाल हो जाए। संभव है कि आने वाले समय में सेवा क्षेत्रों और कर्मयोग में यह खुलापन आ जाए कि जो आदमी जिस किसी हुनर में दक्ष हो, उसे समान वेतन और श्रेणी के अनुरूप कहीं भी सेवाएं देने की छूट हो जाए। पर इस उदात्त सोच को आकार लेने में अभी वक्त लगेगा। आज हर क्षेत्र में ऎसी महान हस्तियाँ मौजूद हैंं।
बहुत सारे बिरले लोग होते हैं जिन्हें भगवान अपार शक्तियां, महान सामथ्र्य, उद्भट बौद्धिक कौशल और विलक्षण प्रतिभाओं के साथ संसार में भेजता है। इन बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लोगों की मेधा-प्रज्ञा और शक्तियों का लाभ समाज को प्राप्त होना ही चाहिए। इन महान लोगों को किसी एक पेशे या कामकाज से बाँध कर नहीं देखा जाना चाहिए। इनकी प्रतिभाओं से समाज उपकृत होता है, क्षेत्र में रचनात्मक गतिविधियों का विस्तार होता है और अपने क्षेत्र का नाम होता है। क्षेत्र को प्रचार मिलता है तथा प्रदेश-देश में उसकी पहचान बनती है। यह सोच न रखें कि हमारे इलाके की महान हस्तियां किसी कोने में दुबकी रहें। और फिर ऎसे लोग हैं ही कितने।
प्रतिभाओं के ज्वार और विलक्षण मेधावी व्यक्तित्वों को किसी एक जगह बांध कर नहीं रखा जा सकता है। ऎसे लोगों के कारण ही रचनात्मकता बनी हुई है। हर आदमी का फर्ज सामाजिक जागरण और नई पीढ़ी के समग्र उत्थान का है , चाहे उसका तरीका कोई सा हो।
सब प्रकार के लोगों का अपना-अपना अलग नवाचार होता है और यह भी नवाचार ही है कि व्यावहारिक समाज सुधार और सामाजिक एवं रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से लोक जागरण कर नवचेतना का संचार किया जाए। बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न ये लोग समाज के सच्चे सेवक, समाजसुधारक और अनुकरणीय विकास पुरुष ही तो हैं जिन पर हमें गर्व और गौरव होना चाहिए।
इस मामले में हम सभी को सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा और उन सभी लोगों को संबल, प्रोत्साहन, पुरस्कार, सम्मान एवं अभिनंदन से नवाजना होगा जो इस प्रकार की लोकसेवी, समाजसेवी और क्षेत्रीय उत्थान की गतिविधियों में रमे हुए हैं। ये सभी लोग हमारे क्षेत्र की वो अमूल्य धरोहरें हैें जिनसे आने वाली जाने कितनी पीढ़ियों में प्रेरणा का संचार होगा।
यह प्रसन्नता की बात है कि ऎसी चुनिंदा प्रतिभाओं के प्रोत्साहन में वे लोग भी आगे हैं जिनके जिम्मे सामाजिक एवं राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़ी रचनात्मक गतिविधियों और लोक जागरण का जिम्मा है।
यह इन लोगों की पारखी नज़रों का ही कमाल है कि ऎसी प्रतिभाओं को पहचान कर इनका उपयोग कर पाने का भरपूर कौशल ये लोग रखते हैं। हुनरमंद और बौद्धिक सम्पदा से परिपूर्ण लोगों की कद्र हर काल में रही है। अकबर के जमाने में नौ रत्न ही थे। आज जनसंख्या के अनुपात में सभी स्थानों पर प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं दिख रही। इनके उपयोग से आयोजकों और प्रायोजकों का काम भी हलका हो जाता है तथा दूसरे जरूरी एवं लाभदायी कामों के लिए फुरसत भी मिल जाती है।
उन सभी लोगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ श्रद्धा भाव रखें जो समाज की सच्ची सेवा के लिए उन्मुक्त होकर पसरे हुए जन कल्याण की भगीरथी बहा रहे हैं। ये लोग न होते, तो कई इलाके अब तक अपनी पहचान कायम नहीं कर पाते। जहाँ कहीं इस किस्म की हुनरमंद और मेधावी धरोहरें हैं उन पर गर्व करें, श्रद्धा भाव रखें, आदर दें।