कृषि क्षेत्र की देश के विकास में है महती भूमिका
प्रह्लाद सबनानी
वर्तमान ख़रीफ़ 2020 के मौसम में देश में 1095 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बुआई का कार्य सम्पन्न किया जा चुका है जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 1030 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बुआई का कार्य सम्पन्न हुआ था। चावल, दालें, मोटा अनाज, बाजरा तिलहन आदि की बुआई लगभग सम्पन्न हो चुकी है। कोरोना महामारी का ख़रीफ़ की बुआई के कार्य में किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है। यह देश में कृषि क्षेत्र के लिए आगे आने वाले समय के लिए एक अच्छी ख़बर ही कही जाएगी। दरअसल, वित्तीय वर्ष 2020-21 के प्रथम तिमाही में भी कृषि एवं सहायक गतिविधियों के क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर अंकित की गई है। जबकि सकल घरेलू उत्पाद में इसी अवधि में 22.6 प्रतिशत की कमी रही है। कोरोना महामारी से विशेष रूप से भवन निर्माण, व्यापार, होटेल व्यवसाय, यातायात कार्य, सेवा क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र आदि पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा है। परंतु कृषि क्षेत्र पर कोरोना महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा है। इसी प्रकार, मार्च से जून 2020 की तिमाही में देश से कृषि क्षेत्र में निर्यात भी 23.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए रुपए 25,553 करोड़ तक पहुँच गए हैं। केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने देश से कृषि के क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने एवं आयात घटाने की एक वृहद योजना बनाई है। जिसका परिणाम वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही में देखने को मिल रहा है। भारत को आत्म निर्भर बनाने में भी कृषि क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहने वाला हैं। अतः कृषि क्षेत्र से निर्यात को बढ़ाने से न केवल देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी बल्कि किसानों की आय में वृद्धि भी होगी।
अप्रेल से जुलाई 2020 के दौरान राष्ट्रीय फ़र्टिलायज़र लिमिटेड ने फ़र्टिलायज़र की 18.79 लाख मेट्रिक टन की रिकार्ड बिक्री की है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की गई 15.64 लाख मेट्रिक टन की बिक्री से 20 प्रतिशत अधिक है। साथ ही, देश के ग्रामीण इलाक़ों में लगातार बढ़ रही उत्पादों की माँग के चलते बिजली का उपभोग इन इलाक़ों में बढ़ रहा है। मूलतः कृषि आधारित उत्तरी एवं पूर्वी राज्यों में बिजली की माँग में भारी वृद्धि दर्ज की गई है जबकि औद्योगीकृत पश्चिमी एवं दक्षिणी राज्यों में औद्योगिक उत्पादन में कमी के चलते बिजली की माँग में अभी वृद्धि देखने में नहीं आई है। बिजली की माँग कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर से अब 2 अथवा 3 प्रतिशत ही पीछे रह गई है। अतः अब यह स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है कि केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई महत्वपूर्ण निर्णयों के चलते कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में अपनी महती भूमिका निभाने के लिए अब तैयार हो गया है।
कोरोना महामारी के चलते किसानों को कृषि कार्य सम्पन्न करने के लिए वित्त की कमी महसूस नहीं हो, इस बात को ध्यान में रखकर किसानों को बैंकों द्वारा सस्ती ब्याज दरों पर किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए जा रहे हैं। 17 अगस्त 2020 तक समाप्त अवधि तक 1,02,065 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत करते हुए 1.22 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड किसानों को उपलब्ध करा दिए गए हैं। यह क़दम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में एक बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। इसी प्रकार, केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान के 9वें सप्ताह के अंत तक 24 करोड़ दिनों का रोज़गार देश के नागरिकों को उपलब्ध कराया गया है एवं उन्हें 18,862 करोड़ रुपए मज़दूरी के रूप में प्रदान किए गए हैं। इस योजना के अंतर्गत सम्पन्न कराए गए कार्य से 85,000 जल संरक्षण केंद्रों का निर्माण, पशुओं के लिए 18000 से अधिक शेडों का निर्माण, लगभग 12000 तालाबों का निर्माण, एवं 2.63 लाख ग्रामीण आवासों का निर्माण किया गया है। इस प्रकार के लगभग समस्त कार्य ग्रामीण इलाक़ों में सम्पन्न कराए गए हैं।
देश में प्रधान मंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र के लिए आधारिक संरचना विकसित करने के उद्देश्य से एक लाख करोड़ रुपए के फ़ंड को अगले दो वर्षों के दौरान जारी करने का निर्णय लिया है। अतः इस कड़ी में अभी हाल ही में 1300 करोड़ रुपए की लागत के प्रोजेक्ट, जो 2282 प्राइमरी कृषि कोआपरेटिव सोसायटीयों द्वारा चलाए जाएँगे, को स्वीकृति प्रदान की गई। कृषि की पैदावार हो जाने के बाद की आधारिक संरचना के विकास के लिए उक्त प्रोजेक्ट कार्य करेंगे। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी एवं रोज़गार के कई नए अवसर भी विकसित होंगे। हाल ही में भारतीय रेल्वे ने भी, प्रथम किसान रेल, देवलाली से दानापुर के बीच प्रारम्भ कर दी है। किसान रेल चलाने से कृषि उत्पादों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक शीघ्रता से पहुँचाया जा सकेगा जिससे कृषि उत्पाद को ख़राब होने से बचाया जा सकेगा इससे किसानों की आय में बृद्धि दृष्टिगोचर होगी।
ओरगेनिक खेती करने वाले किसानों की संख्या के मामले में भारत पूरे विश्व में अब प्रथम स्थान पर आ गया है एवं ओरगेनिक खेती के क्षेत्र (एरिया) के मामले में भारत पूरे विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत से ओरगेनिक खेती के निर्यात में शामिल हैं फ़्लैक्स बीज, सीसेम, सोयाबीन, चाय, मेडिसिनल प्लांट, चावल एवं दालें।
भारत के निर्यात में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बहुत कम है। अतः अब इसे बढ़ाए जाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। दूध के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है एवं कृषि क्षेत्र में उत्पादन के लिहाज़ से भारत पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर आ गया है। परंतु, भारत से कृषि निर्यात मात्र 1 प्रतिशत है इसमें गेहूँ, दालें, फल आदि मुख्य रूप से शामिल हैं। लेकिन हमारे देश के पास बाग़वानी एवं मसालों आदि का निर्यात करने का जो सामर्थ्य है उसे भुनाया नहीं जा सका है। कृषि उत्पादन में तो हमारे देश ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है एवं इस क्षेत्र में हम लगभग आत्मनिर्भर बन गए हैं परंतु इस क्षेत्र से निर्यात का अच्छा स्तर प्राप्त नहीं हो पा रहा है। अतः शायद देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात नीति की घोषणा की है और उसके अंतर्गत सभी राज्यों को निर्यातोन्मुखी सूत्र में बाँधने की कोशिश की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य स्तर पर समितियों का निर्माण प्रारम्भ किया गया है एवं सीधे किसानों तक पहुँचकर उसे निर्यातकों के साथ जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास में जो भी आधारिक संरचना सम्बंधी कमी दृष्टिगोचर होती है उसे दूर करने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। निर्यात के क्षेत्र में आने वाले अन्य प्रकार के सारे अवरोधकों को चिन्हित कर उन्हें भी दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में आधारिक संरचना विकसित करने के लिए माननीय प्रधान मंत्री महोदय ने कृषि मंत्रालय को एक लाख करोड़ रुपए का एक विशेष पैकेज दिया है। वाणिज्य, उद्योग एवं कृषि मंत्रालय मिलकर इस क्षेत्र में सराहनीय काम कर रहे हैं।
अभी तक हमारे देश में कृषि क्षेत्र में आयात ख़त्म कर आत्म निर्भर बनने का प्रयास किया जा रहा था। अतः स्वयं के उपभोग करने के बाद बचा खुचा उत्पाद ही निर्यात कर पाते थे। परंतु अब केंद्र सरकार ने इस नीति में संशोधन किया है अतः कृषि क्षेत्र में आत्म निर्भरता प्राप्त करने के बाद अब इस क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। जैसे कोरोना महामारी के चलते हल्दी का उपयोग बढ़ा है अतः देश में ही हल्दी के उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है ताकि देश में उपभोग के बाद इसका पर्याप्त मात्रा में निर्यात भी किया जा सके। देश में किसानों को भी अब समझना पड़ेगा कि कृषि क्षेत्र से निर्यात बढ़ाने के लिए ओरगेनिक खेती की ओर मुड़ना ज़रूरी है एवं कृषि उत्पाद की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में भारी सुधार करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय मानदंडो के अनुरूप ही कृषि उत्पादन करना होगा। शीघ्र ख़राब होने वाले कृषि उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की चैन देश के कोने कोने तक फैलाई जा रही है। केंद्र सरकार ने इसके लिए वित्त की व्यवस्था कर दी है एवं सबंधित विभागों को वित्त प्रदान भी कर दिया है। कृषि उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्रता से पहुँचाने के लिए कुछ विशेष रेल गाड़ियाँ भी चलायी जा रही हैं। एपीएमसी क़ानून में संशोधन कर दिया गया है ताकि किसान अपनी उपज को जहाँ चाहें वहाँ आसानी से बेच सकें। साथ ही, कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग पद्धति को भी स्वीकृति दे दी गयी है ताकि भविष्य में किसान किस प्रकार की उपज लेना चाहता है इसका निर्णय वह आसानी से आज ही कर सके। एक ज़िला एक उत्पाद की नीति भी घोषित की गई है, जैसे किसानों को एक एक जिले में विशेष प्रोडक्ट की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिस प्रकार सिक्किम का नाम आते ही ओरगेनिक कृषि का नाम ध्यान आ जाता है एवं केरल का नाम आते ही मसालों का नाम ध्यान आता है। उसी प्रकार देश के हर जिले के नाम पर कोई न कोई विशेष उत्पाद जुड़ जाना चाहिए, ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।