दैवी उपासना का यह जुनून
– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
……. कुछ नहीं यार… अभी नवरात्रि चल रही है…. ऎसा कहने वाले लोग इन दिनों हर कहीं पाए जा रहे हैं। साल भर माँस-मदिरा और व्यभिचार में रमे रहेंगे, स्ति्रयों के प्रति अनादर और अश्रद्धा दिखाएंगे और अनर्गल चर्चाएं करते रहेंगे, हराम की कमाई और मुफतिया माल उड़ाने में दिन-रात लगे रहेंगे, और वे सारे काम करते रहेंगे जिनसे न इंसान खुश हो सकता है, न कोई देवी-देवता।
लेकिन नवरात्रि में दाढ़ी-बाल बढ़ाए, भाल पर जाने कौन-कौन सी किस्म की अष्टगंध के तिलक, कपड़ों पर इंपोर्टेड़ परफ्यूम, गले में जात-जात की मालाओं की भीड़ और पूरी देह ऎसी सँवार देंगे कि किसी ऋषि या साधक की तरह नज़र आए। कई नंगे पाँव, तो कई मन्दिरों के गर्भगृह में माताजी के समीप घण्टों बैठे रहकर जोर-जोर से कानफाड़ पूजा-पाठ और अनुष्ठान करते मिलेंगे।
यह नज़ारा आजकल हर तरफ नज़र आ रहा है। नवरात्रि में व्रतोपवास, दैवी उपासना और भक्ति का ज्वार उमड़ा हुआ है और गरबों की रंगत हर तरफ रंगीन श्रद्धा-भक्ति का समन्दर लहराने लगी है। लेकिन असल में नवरात्रि कौन कर रहा है, यह देखना हो तो नवरात्रि करने वाले लोगों के व्यक्तित्व, व्यवहार और उनके चरित्र को समझना होगा।
हालांकि आज भी खूब सारे साधक ऎसे हैं जो जैसे दिखते हैं वैसे हैं भी, और सच्चे मन, अगाध आस्था, श्रद्धा-भक्ति और विश्वास से भरे पूरे हैं तथा दैवी मैया की कृपा का आस्वादन भी कर रहे हैं। लेकिन इनकी संख्या बहुत कम ही है।
नवरात्रि के नाम पर हम जो कुछ कर रहे हैं, बहुत अच्छी बात है लेकिन हमारी अच्छाइयां, पवित्रता और मन-वचन तथा कर्म की शुचिता व एकरूपता इन नौ दिनों तक ही सीमित रह पाए, तो इस नवरात्रि का कोई अर्थ नहीं है। नवरात्रि जैसी आराधना, श्रद्धा-भक्ति और पवित्रता साल भर बनी रहनी चाहिए, तभी नवरात्रि मनाने का कोई अर्थ है।
नवरात्रि जीवन में अंधकार को समाप्त कर नव प्रभात का संकेत देने के लिए है। यह रोशनी सिर्फ नवरात्रि के नौ दिनों तक के लिए सीमित नहीं है, बल्कि जीवन भर के लिए हमें नया ज्ञान, नई ऊर्जा और शक्ति प्राप्त हो, तभी सार्थकता है। ऎसा अगर नहीं है तो नवरात्रि के नाम पर यह सिर्फ दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता।
नवरात्रि को छोड़ कर साल भर मुफत का माल उड़ाते रहो, पुरुषार्थ की बजाय हराम की कमाई खाते रहो, पराये लोगों पर आश्रित रहकर मौज-मस्ती करो , दारू-माँस का जमकर उपयोग करते रहो और स्ति्रयों को भोग्या मानकर उनका उपयोग करो, उनके बारे में फिजूल टिप्पणियां करते रहो…. आदि आदि का सीधा सा मतलब है कि हम नवरात्रि के नाम पर पाखण्ड और दिखावा ही कर रहे हैं और इस दिखावे से कुछ हासिल नहीं होने वाला, सिवाय इसके कि लोग हमें महान दैवी साधक कहते रहें, श्रद्धा देते रहें और हम लोगों की श्रद्धा को अपने हक में किसी न किसी तरह भुनाते रहें।
हममें से काफी सारे लोग ऎसे हैं जो अपनी माँ-बहन-पत्नी और घर-परिवार या क्षेत्र की स्ति्रयों की इज्जत नहीं करते हैं, उन्हें किसी न किसी प्रकार प्रताड़ित करते हैं, मारपीट करते हैं और उनके प्रति रूखा व्यवहार रखते हैं। इस तरह का व्यवहार रखने वाले लोगों को देवी उपासना का कोई अधिकार नहीं है चाहे वे घण्टों बैठकर पाठ करें या मालाएं जपते रहें।
नवरात्रि मन-बुद्धि और शरीर को पुनः ऊर्जावान और शक्तिवान बनाने का पर्व है और इसे पूरी श्रद्धा के साथ मनाने के बाद भी जीवनचर्या और व्यवहार में सकारात्मक और शुचितापूर्ण बदलाव न आए, तो ऎसे में नवरात्रि के नाम पर समय व्यर्थ गँवाने का कोई औचत्य नहीं है।
नवरात्रि जैसा देवी उपासना का जज्बा साल भर बनाए रखें, इंसानियत से जुड़े मौलिक बिन्दुओं और आचार-विचारों का पालन निरन्तर जारी रखें और अपने आपको ऎसा बनाए कि लोगों के अन्तर्मन से हमारे लिए श्रद्धा और भक्ति भाव की तरंगें उठें और लोग सच्चे मन से हमें साधक नहीं तो कम से कम नेक दिन अच्छे इंसान के रूप में तो स्वीकार कर ही सकें। असल में यही सच्ची भक्ति है। हर उपासना शुद्धि के बाद सिद्धि प्रदान करती है और यह शुचिता केवल दिखावा भर नहीं हो बल्कि आचरण में भी होनी चाहिए।