मनमोहन सिंह नही इन्हें मनमोहन शरीफ कहिए
रज्जाक अहमद
दादरी। इस वक्त देश की राजनीतिक दशा व दिशा बहुत ही गम्भीर हालत में हैं। सत्ता के लिए सभी राजनीतिक पार्टियाँ हर जायज व नाजायज नीति अपना रही हैं। प्रधानमंत्री की कैबिनेट समूह की बैठक में दागियों को बचाने के लिए लाया गया अध्यादेश उपहास का प्रतीक बन कर रह गया, जो अब उसी कैबिनेट ने वापस भी ले लिया है, जिसने उसे भेजा था। जब यह अध्यादेश राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया तो मंजूर करने के बजाय राष्ट्रपति ने सरकार के तीन असरदार व जिम्मेदार मंत्रियों को तलब कर उनसे अध्यादेश लाने का कारण पूछा। तीनों मंत्रियों में से कोई भी ऐसा जबाब नहीं दे सका, जिससे महामहिम संतुष्ट हो सकें। सरकार को लगा कि राष्ट्रपति इसे मंजूरी नहीं देंगे। इससे सरकार की और किरकिरी होगी। सदन में 543 सांसदों में से 163 पर मुकदमें दर्ज हैं। देश में कुल 1058 विधायक दागी हैं। जो सभी पार्टीयों में हैं। इनमें से कुछ सांसद व विधायकों पर बहुत ही गंभीर व संगीन मुकदमे दर्ज हैं। शरीफ व ईमानदार छवि के नेताओं के जीतने की संभावना 2 प्रतिशत है। जबकि आपराधिक छवि के नेताओं की जीतने की संभावना 23 प्रतिशत है। (यह एक सर्वे द्वारा दिया गया अनुमान है।) अब आगे जिसकी सरकार बननी है, उसे उन्हीं दागियों की मदद की जरूरत पड़ेगी। शायद इसी सोच के तहत यह अध्यादेश लाया गया। अब अगर इनसे मदद लेनी है, तो इनकी मदद तो करनी पड़ेगी ही, चाहे कानून बनाकर या कानून से बचाकर। जब देश की संसद व विधायिकाओं को अपराधी चलायेंगे तो फि र देश में अपराध व भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा? विश्व में किये गये एक सर्वे के अनुसार लोग अपने देश के नेताओं पर कितना विश्वास करते हैं? उसमें भारत का नम्बर 115 वें स्थान पर है। इससे साबित होता है कि भारत में लोगों की अपने नेताओं के प्रति विश्वसनीयता कितनी कम हुयी है। राष्ट्रपति का रूख समझते ही विपक्ष ने भी अध्यादेश का विरोध शुरू कर दिया । घबराहट में कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता अजय माकन द्वारा प्रेस क्लब में मीडिया को बुलाया उन्हें इसी सम्बन्ध में बयान जारी करना था। लेकिन अचानक ही वहाँ राहुल गांधी प्रकट हुये। उन्होंने आते ही अध्यादेश के खिलाफ ऐसे बयान दिये जैसे उन्हें इस सम्बन्ध में कोई जानकारी ही न हो। उन्होंने बयान में बकवास व नॉनसैन्स जैसे गैर जिम्मेदाराना शब्दों का इस्तेमाल किया जो उनके पद की गरिमा के खिलाफ हैं। एक दिन पहले तक जो कांग्रेसी व उनके मंत्री इस अध्यादेश का समर्थन कर रहे थे, वे सब एक दम पलट गये। मीडिया के सवाल पूछने पर कहने लगे कि राहुल गांधी जी का बयान ही पूरी कांग्रेस का बयान है। वैसे भी राहुल गांधी का बयान कांग्रेस सरकार के लिए किसी अध्यादेश से कम नही है। जनता में इसका क्या संदेश गया है? इससे इन्हें कोई मतलब नहीं, इस पर सोनिया गांधी ने भी चुप्पी साध ली। राहुल के इस बयान ने विपक्ष के इस आरोप को सही प्रमाणित कर दिया कि प्रधान मंत्री व सरकार से ऊपर भी अन्य कोई सुप्रीम पावर है। अध्यादेश को वापस लेने के श्रेय की जल्दबाजी में राहुल गांधी को अपने कद व पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रहा। उनके इन चन्द शब्दों से प्रधानमंत्री की छवि खराब हुयी है देश को ऐसा लगा है कि जैसे उनकी अपनी कोई हैसियत ही नही है। सोनिया गांधी को इस पर सोचना पड़ेगा अध्यादेश पर राहुल गांधी का विचार अच्छा हो सकता है, लेकिन तरीका गलत रहा। अब राहुल गांधी कहते हैं कि मां ने मुझसे कहा है कि तुमने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया वो गलत हैं। अत: मेरे शब्द गलत हो सकते हैं, लेकिन मेरी भावना गलत नहीं थी। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि देश व दुनिया ने उनके शब्दों को सुना है, भावना को नही। उन्हें इतनी जल्दी क्या थी? जो विदेश गये प्रधानमंत्री के लौटने तक इन्तजार करने की भी जरूरत नहीं समझी। इस बयान से राहुल गांधी ने कांग्रेस में अपनी ताकत व हैसियत का अहसास कराया है, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के अहसान से डर रहे हैं। सोनिया गांधी का ‘त्यागÓ भी एक मिसाल है। देश में पी.एम. की शराफ त व ईमानदारी की एक अलग ही छवि है। विपक्ष ही नहीं सारा देश इसे स्वीकार करता है। राहुल गांधी के बयान के बाद सारा देश पी.एम. के अमेरिका से लौटने के इन्तजार में था कि वे आकर इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे, क्या फैसला लेंगे? लेकिन बड़ा दुख हुआ कि ये देखकर कि पी.एम.ने लौटकर अपने स्वाभिमान से ही समझौता कर लिया। जिसकी देश को कतई उम्मीद नही थी। अब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री तो हैं लेकिन सम्मान के नाम पर क्या कुछ बचा है? आप अमेरिका से लौटकर सीधे अपने घर चले जाते तो आपकी छवि में और चार चांद लग जाते। इतिहास आपको सम्मान से याद करता। अब आपको लोग ईमानदार के साथ गांधी परिवार का वफ ादार तो कहेंगे, लेकिन खुद्दार (स्वाभिमानी) नहीं। प्रधानमंत्री जी एक बात तो आप तय समझ लें कि चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आयी तो भी और ना आयी तो भी आपको तो पूर्व प्रधानमंत्री कहलाना ही है। फि र इस बचे हुये अपने कार्यकाल के चन्द महीनों में आप इस पद से क्या ढूँढ रहे हो? किस वजह से आपने अपने जमीर से समझौता किया है? ये तो आप ही जानें। देश आपको ईमानदार व शरीफ होने की छवि से नवाजता है। वाकई आपके फैसले ने साबित कर दिया कि आप शरीफ तो हैं, पर सिंह नहीं। अब आपका नाम मनमोहन सिंह ना होकर मनमोहन शरीफ लिया जाये, तो वो कितना बेहतर हो। आदरणीय प्रधानमंत्री जी आपका दामन पाक है। इसके बावजूद भी आपकी सरकार का कार्यकाल इतिहास में घोटालों के लिए जाना जायेगा। उपलब्धियों के नाम पर हाथ खाली है।