अन्त में हमारा बलिदानी इतिहास ही जीता
गांधी जी और उनकी कांग्रेस जहाँ ब्रिटिश राजभक्ति के लिए जानी जाती है वहीं मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए भी जानी जाती है। गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की आलोचना करते हुए स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने 1937 में 30 दिसम्बर को अहमदाबाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा के अधिवेशन में अध्यक्ष के पद से भाषण देते हुए कहा था :- “गांधीजी का यह मत कि मुसलमानों को साथ लिए बिना स्वराज्य मिलना असम्भव है , तुष्टीकरण की नीति को बढ़ाने वाला है। मेरा यह स्पष्ट उद्घोष है कि मुसलमानो ! यदि तुम साथ आते हो तो तुम्हें साथ लेकर , यदि तुम नहीं आते हो तो अकेले ही और यदि तुम हमारा विरोध करोगे तो तुम्हारे विरोध को कुचलते हुए हम हिन्दू देश की स्वाधीनता का युद्ध लड़ते रहेंगे।”
सावरकर जी और अनेकों क्रान्तिकारियों की यह स्पष्ट मान्यता थी कि ब्रिटिश शासक जितने हमारे शत्रु हैं उतने ही वे मुगल , तुर्क और उनके वंशज भी हमारे शत्रु हैं जो भारत में रहकर फिर भारतवर्ष पर अपना राज्य स्थापित करने का सपना बुन रहे थे। क्रान्तिकारियों के इस प्रकार के चिन्तन और कार्यशैली से यह बात स्पष्ट थी कि वह देश में महाराणा प्रताप और शिवाजी की राज्य परम्परा को आगे बढ़ाना चाहते थे । जबकि गांधीजी और उनकी कांग्रेस अकबर की परम्परा को आगे बढ़ाकर भी देश की स्वाधीनता मिली हुई समझ रही थी । इसी सोच के चलते कांग्रेस और गांधीजी दोनों मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल खेलते हुए मुस्लिम नेताओं को यह कहकर खुश करते रहे कि तुम हमारे हो और तुम्हें जो भी अधिकार चाहिए , हम तुम्हें देने को तैयार हैं । यदि कांग्रेस का हमारे क्रान्तिकारियों की भांति स्पष्ट चिन्तन होता तो निश्चय ही देश का बंटवारा नहीं होता । अपने दोगले चिन्तन के कारण कांग्रेस अंग्रेजों से रिश्तेदारी का सम्बन्ध निभाती रही और इसी प्रकार मुस्लिमों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाकर उन्हें भी खुश कर उनके भारत विरोधी आचरण पर सर्वथा मौन रही ।
मोपला कांड और कांग्रेस
वास्तव में कांग्रेस की ऐसी मानसिकता उस दब्बू अहिंसा नीति की प्रतीक है जिसने हमें अतीत में बहुत कुछ क्षति पहुंचायी थी। अपनी इसी दब्बूपन की राजनीति और कार्य शैली का परिचय देते हुए कांग्रेस अगस्त 1921 ई0 में हुए मोपला काण्ड पर भी मौन साध गई थी। जिसमें हजारों हिन्दुओं को मुस्लिम अत्याचारों का शिकार होकर अपने प्राण गंवाने पड़ गए थे। यद्यपि डॉ वी.एस. मुंजे और आर्य समाज के महान नेता स्वामी श्रद्धानन्द जैसे लोग उस समय हिन्दुओं के समर्थन में खुलकर मैदान में आए । इसी प्रकार पण्डित मदन मोहन मालवीय व लाला लाजपत राय भी हिन्दू समाज के समर्थन में खुल कर बोल रहे थे । स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज ने इस समय ‘हिन्दू संगठन’ बनाने की तैयारी की । मालाबार में जिन मोपलाओं ने हिन्दुओं का बलात धर्मांतरण कर लिया था , उनकी शुद्धि के लिए भी स्वामी जी ने मालाबार की यात्रा की और उन लोगों के सामने अपनी ओजस्वी वाणी में कहा :-“जिन्होंने हिन्दुत्व की रक्षा की, अपने प्राण त्यागे और जिनके कारण तुम जीवित हो अब तुम्हें शुद्धिकरण द्वारा हिन्दू धर्म की रक्षा करनी होगी । शुद्धि का प्रचार करो और शत्रु के दुष्ट इरादों को विफल कर दो । चलो, कार्य में प्रवृत्त हो जाओ।”
मौलाना हसरत मोहानी का ऐतिहासिक प्रस्ताव
कांग्रेस के एक मौलाना हसरत मोहानी नाम के मुस्लिम सदस्य थे , जो कि विचारों से बहुत राष्ट्रवादी थे । यह पहले ऐसे कांग्रेसी राष्ट्रवादी मुस्लिम थे जिन्होंने पूर्ण स्वाधीनता का संकल्प प्रस्ताव 1922 ई0 में कांग्रेस में प्रस्तुत किया था । राजभक्त कांग्रेस ने उनके इस प्रस्ताव को मानने में भी 8 वर्ष का समय लगा दिया था ।1929 के दिसम्बर में जाकर कांग्रेस ने पूर्ण स्वाधीनता लेने का संकल्प प्रस्ताव पारित किया। तब तक मौलाना साहब प्रत्येक वर्ष अपने इस प्रस्ताव को प्रस्तुत करते रहे थे। देशबन्धु चितरंजन दास जैसे लोग कॉन्ग्रेस से पहले ही अलग हो गए थे । उनके अलग होने का कारण केवल यही था कि कांग्रेस अहिंसा की दब्बू नीति का परिचय दे रही थी। जबकि देशबन्धु चितरंजन दास अंग्रेजों का डटकर मुकाबला करने के लिए विधानसभाओं में प्रवेश पाकर उनके सरकारी कामों में ‘अड़ंगा’ डालने की योजना बनाना चाहते थे । इसी प्रकार गांधीजी के साथ काम करने वाले स्वामी श्रद्धानन्द जी भी अब तक कांग्रेस का साथ छोड़ चुके थे । वह भी कांग्रेस की दब्बूपन की कार्यशैली को पसन्द नहीं करते थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय इतिहास पुनरलेखन समिति